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अब नरमी नहीं

सरकार ने रमजान के मुबारक महीने में कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक का एकतरफा फैसला लिया था, ताकि अमन के पैरोकारों को किसी तरह की दिक्कत न हो. लेकिन इस पहल का बेजा फायदा उठाते हुए आतंकी गिरोह सुरक्षाबलों और नागरिकों को निशाना बनाते रहे. अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी […]

सरकार ने रमजान के मुबारक महीने में कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक का एकतरफा फैसला लिया था, ताकि अमन के पैरोकारों को किसी तरह की दिक्कत न हो. लेकिन इस पहल का बेजा फायदा उठाते हुए आतंकी गिरोह सुरक्षाबलों और नागरिकों को निशाना बनाते रहे. अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सेना ने भी युद्धविराम का उल्लंघन करते हुए लगातार गोलीबारी की और घुसपैठियों को भेजने की कोशिश की.
एक महीने में मारे गये नागरिकों, सुरक्षाकर्मियों और आतंकियों की तादाद दर्जनों में है. उपद्रवियों द्वारा सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने की भी घटनाएं हुईं. इस हिंसक माहौल में भी सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान संयम बरतते रहे. जाहिर है कि इस खून-खराबे के बाद भी कार्रवाई रोकने के फैसले को जारी रखने का कोई मतलब नहीं था. इस महीने की 28 तारीख से अमरनाथ यात्रा भी शुरू हो रही है. ऐसे में सुरक्षा को लेकर किसी तरह की नरमी बरतना उचित नहीं है.
रमजान के महीने में सरकार के फैसले से लोगों को बहुत राहत मिली थी. सेना द्वारा घेराबंदी और खोजबीन करने की कार्रवाई रोक देने के कारण आम जन अपने काम पर अधिक ध्यान देने लगे थे. कार्यालयों और विद्यालयों में उपस्थिति बढ़ी. तीन सालों में पहली बार इस मौसम का पहला फल- चेरी- समय पर निर्यात हो सका. अनेक इलाकों में जन-प्रतिनिधि और राजनीतिक कार्यकर्ता भी आसानी से लोगों से संपर्क कर सके. अमन-चैन बहाल करने की दिशा में सरकार द्वारा की गयी इस ठोस पहल पर अगर अलगाववादी संगठनों तथा पाकिस्तान ने सकारात्मक रवैया अपनाया होता, तो घाटी की तस्वीर बदल सकती थी.
यह बेहद दुखद है कि उन्होंने कश्मीर के भविष्य और शांति-सुरक्षा को दांव पर लगाकर इस मौके को बर्बाद कर दिया. आखिर युद्धविराम या कार्रवाई रोकने जैसे फैसलों की कामयाबी के लिए जरूरी है कि दूसरा पक्ष भी सहयोग करे. आंकड़ों को देखें, तो 17 अप्रैल से 17 मई तक 18 आतंकी घटनाएं हुई थीं, जबकि रमजान के महीने में यह संख्या 50 से भी अधिक हो गयी. इस दौरान पत्थरबाजी की करीब 65 घटनाएं हुईं. सुरक्षाबलों की कार्रवाई रोकने के निर्णय का आधार केंद्र सरकार के विशेष प्रतिनिधि दिनेश्वर शर्मा की रिपोर्ट थी, जिसमें कहा गया था कि मारने और मुठभेड़ से अपेक्षित परिणाम नहीं निकल रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी इसकी मांग की थी. पिछले साल कार्रवाई रोकने का फैसला नहीं होने के बावजूद अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमला हुआ था. यदि इस बार आतंकवादियों की घेराबंदी और खोजबीन रोक दी जाती, तो इससे उन्हें शह ही मिलती. गृहमंत्री ने उचित ही कहा है कि आतंकी किसी धर्म, जाति या समुदाय के नहीं होते. रमजान में जिस तरह से घाटी को खून से सराबोर करने और अफरा-तफरी मचाने की कवायद हुई है, उसे देखते हुए आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई फिर से जारी रखने का फैसला जायज है.

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