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Friday, March 29, 2024

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गरीबी की चुनौती

दुनिया में 1.30 अरब लोग फिलहाल भयानक गरीबी के चंगुल में हैं. अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक, यह तादाद रोजाना सवा डॉलर से भी कम में अपना गुजारा करती है. इसका पांचवां हिस्सा (करीब 27 करोड़ लोग) भारत में बसता है. बहरहाल, इस भयावह सच का एक संतोषजनक पहलू यह भी है कि मौजूदा सदी के […]

दुनिया में 1.30 अरब लोग फिलहाल भयानक गरीबी के चंगुल में हैं. अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक, यह तादाद रोजाना सवा डॉलर से भी कम में अपना गुजारा करती है. इसका पांचवां हिस्सा (करीब 27 करोड़ लोग) भारत में बसता है.

बहरहाल, इस भयावह सच का एक संतोषजनक पहलू यह भी है कि मौजूदा सदी के बीते डेढ़ दशक में गरीबों की दशा को सुधारने की कोशिशें एक हद तक कामयाब हुई हैं और बड़ी संख्या में लोग गरीबी के चंगुल से बाहर निकले हैं. एक मुश्किल यह भी है कि गरीबों की कुल तादाद को लेकर अलग-अलग आकलन सामने आये हैं. साल 2012 में केंद्र सरकार ने कहा था कि गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले भारतीयों की संख्या हमारी आबादी में 22 फीसदी है, जबकि विश्व बैंक ने आकलन की नयी पद्धति के आधार पर यह तादाद 23.6 फीसदी बतायी थी. संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में चल रहे सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी) कार्यक्रम में यह आंकड़ा 21.9 फीसदी है.

तेंदुलकर समिति का आकलन (2011-12 के लिए) 29.6 फीसदी रहा था, जबकि रंगराजन समिति का आंकड़ा इससे कुछ ज्यादा था. एक अहम बात यह भी है कि ये आंकड़े पुराने पड़ चुके हैं, सो बगैर किसी नये अध्ययन के सटीक आकलन मुश्किल है. फिर भी, इन आंकड़ों के आधार पर कुछ अनुमान लगाये जा सकते हैं और मौजूद चुनौतियों के मद्देनजर नीतियां बनायी जा सकती हैं.

मिसाल के लिए, विश्व बैंक के आंकड़े संकेत करते हैं कि 21वीं सदी के पहले दशक में वंचित तबकों के सशक्तीकरण के प्रयासों से देश में गरीबों की संख्या 38.9 फीसदी से घटकर 21.2 फीसदी हो गयी है. साल 2004 से 2011 के बीच लगभग 16 करोड़ लोग भयानक गरीबी की दशा से बाहर निकल सके हैं. यह तथ्य इस खास जरूरत की निशानदेही करता है कि सशक्तीकरण की दिशा में की जा रही कोशिशों में तेजी लाने की दरकार है.

इस संदर्भ में सौ दिन के गारंटीशुदा ग्रामीण रोजगार के कार्यक्रम मनरेगा के अंतर्गत हुए प्रयासों को देखा जा सकता है. अनेक अध्ययनों का निष्कर्ष है कि कई कमियों के बावजूद मनरेगा गरीबों के लिए जीविकोपार्जन का बड़ा सहारा साबित हुआ है.

यही बात सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीब परिवारों को अत्यंत अनुदानिक मूल्य पर अनाज मुहैया कराने के कार्यक्रम के बारे में भी कही जा सकती है. बेहद सस्ता राशन, दोपहर का भोजन, आंगनबाड़ी पोषाहार आदि से एक बड़ी आबादी को भुखमरी की दशा से निकालने और उसकी सेहत सुधारने में तो मदद मिली ही है, साथ ही हाशिये के तबके के लिए रोजगार के मौके भी बने हैं.

बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तथा देश के स्तर पर अनुसूचित जाति और जनजाति के बीच गरीब लोगों की तादाद अपेक्षाकृत ज्यादा है. अब तक के प्रयास बहुत उत्साहवर्द्धक हैं. उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें गरीब और वंचित तबकों के लिए अपने कार्यक्रमों में ज्यादा तेजी लायेंगी.

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