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एक और धोखाधड़ी

बैंकों पर बढ़ते बैड लोन के बोझ और घाटे की खबरों के बीच हीरा कारोबारी नीरव मोदी की धोखाधड़ी का गंभीर मामला सामने आया है. इस रसूखदार व्यवसायी पर पंजाब नेशनल बैंक से 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है. इस मामले ने करीब दो दशक पहले के केतन पारेख घोटाले […]

बैंकों पर बढ़ते बैड लोन के बोझ और घाटे की खबरों के बीच हीरा कारोबारी नीरव मोदी की धोखाधड़ी का गंभीर मामला सामने आया है. इस रसूखदार व्यवसायी पर पंजाब नेशनल बैंक से 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है. इस मामले ने करीब दो दशक पहले के केतन पारेख घोटाले की याद ताजा करा दी है. वर्ष 2001 में पारेख द्वारा बैंकों के पे-ऑर्डर का इस्तेमाल कर शेयर बाजार में कारोबार करने का मामला सामने आया था. आरोप है कि इसी तर्ज पर नीरव मोदी ने बैंक के लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के जरिये बिना किसी गारंटी या जमा पूंजी के पैसे निकाले हैं.
इस मसले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पिछले कुछ सालों से बैंकों के डूबे हुए कर्ज को लेकर इतनी चर्चा हो रही है तथा सरकार और रिजर्व बैंक वसूली को लेकर चिंतित हैं, एक कारोबारी हजारों करोड़ रुपये निकालने में कामयाब कैसे हो गया. वर्ष 2016 की आखिरी तिमाही में पंजाब नेशनल बैंक ने बैंकिंग इतिहास का सबसे अधिक घाटा दिखाया था और पिछली तिमाही में उसे जो मामूली फायदा हुआ है, वह परिसंपत्तियों को बेचने का नतीजा है. सरकार बैंकों को राहत देने के लिए पूंजी निवेश कर रही है और इस बैंक को मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार से 5,473 करोड़ मिलनेवाले हैं.
यह भी याद किया जाना चाहिए कि पिछले साल पंजाब नेशनल बैंक की शिकायत पर केंद्रीय जांच ब्यूरो नीरव मोदी द्वारा 280 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप पर पहले से ही जांच कर रही है. नये मामले में मोदी के साथ नामजद बड़े हीरा कारोबारी मेहुल चौकसे की एक कंपनी के साथ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का भुगतान को लेकर पहले ही विवाद हो चुका है.
इस पृष्ठभूमि में बिना वसूली और अदायगी की थाह लगाये बैंक द्वारा मोदी को भुगतान की सुविधा देना यह संकेत भी करता है कि हमारे बैंकिंग प्रबंधन पर कारोबारियों के एक ताकतवर लॉबी का प्रभाव है. वित्तीय जानकारों का आकलन है कि चालू वित्त वर्ष में बैंकों के मुनाफे में 30 हजार करोड़ से अधिक की चपत लग सकती है और सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकतर बैंकों के घाटे का सिलसिला जारी रहेगा.
ऐसे में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि फंसे हुए कर्जे बढ़ते रहने और हजारों करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े की हालत में सरकार द्वारा बैंकों को पूंजी मुहैया कराने का फायदा किस हद तक देश की अर्थव्यवस्था को मिल सकेगा.
बहुत संभव है कि कई अन्य मामलों की तरह इस फर्जीवाड़े में भी कुछ निचले स्तर के अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर तथा आरोपित कारोबारी से कुछ वसूली कर बैंक और जांच एजेंसियां अपने कर्तव्य की इति-श्री कर लें, पर ऐसे रवैये से धोखाधड़ी के सिलसिले पर रोक लगा पाना मुमकिन नहीं है. उम्मीद है कि न सिर्फ इस मसले की त्वरित जांच की जायेगी और दोषियों को सजा दी जायेगी, बल्कि ऐसे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए ठोस नियम बनाये जायेंगे.

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