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दागी नेताओं के मामले

देश की राजनीति में अपराध और भ्रष्टाचार की गहरी पैठ है. इसका खामियाजा आखिरकार आम जनता और लोकतंत्र को भुगतना पड़ता है. जिन नेताओं पर आपराधिक आरोप हैं, उन्हें न्यायिक देरी का फायदा मिलता है तथा उनका राजनीतिक जीवन निर्बाध जारी रहता है. दागी जन-प्रतिनिधियों पर दर्ज मामलों की सुनवाई में देरी पर कुछ हद […]

देश की राजनीति में अपराध और भ्रष्टाचार की गहरी पैठ है. इसका खामियाजा आखिरकार आम जनता और लोकतंत्र को भुगतना पड़ता है. जिन नेताओं पर आपराधिक आरोप हैं, उन्हें न्यायिक देरी का फायदा मिलता है तथा उनका राजनीतिक जीवन निर्बाध जारी रहता है.

दागी जन-प्रतिनिधियों पर दर्ज मामलों की सुनवाई में देरी पर कुछ हद तक लगाम लगने की उम्मीद जगी है. केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर कहा है कि वह सालभर के भीतर सुनवाई पूरी करने के लिए 12 विशेष अदालतों का गठन करेगी. सरकार के मुताबिक, नियत अवधि में मौजूदा 1,581 मामलों का निपटारा करना संभव है. परंतु यह संख्या सांसदों और विधायकों से जुड़े उन मामलों की है, जिनमें वे अभियोग का सामना कर रहे हैं. कुल आपराधिक मामलों की संख्या 13.5 हजार है. यह भी विडंबना ही है कि सरकार ने जो संख्या बतायी है, वह एक गैर-सरकारी संस्था के आंकड़ों पर आधारित है.

सरकार और चुनाव आयोग के पास पूरी सूचना तक नहीं है. अगर 13.5 हजार की संख्या के लिहाज से देखें, तो एक प्रस्तावित अदालत के पास औसतन 1,125 मामले होंगे और 242 कामकाजी दिनों के हिसाब से उसे रोजाना 4.6 मामलों का निपटारा करना होगा. ऐसे में सालभर के भीतर मुकदमे की कार्यवाही पूरी कर पाना बहुत मुश्किल काम होगा. मौजूदा लोकसभा के 184 सदस्यों ने अपने खिलाफ आरोप दर्ज होने की जानकारी दी है.

ऐसे विधायकों की संख्या हजार से ऊपर है. बहरहाल, यह बड़े संतोष की बात है कि दागी निर्वाचित नेताओं पर कार्रवाई की प्रक्रिया एक कदम आगे बढ़ी है. इस दिशा में त्वरित गति से काम करने की जरूरत है और आगे आवश्यकतानुसार अदालतों की संख्या में समुचित बढ़ोतरी करने पर विचार किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावी अभियान में नेताओं के मामलों के निपटारे सालभर के अंदर करने का वादा भी किया था. इस वादे को अमली-जामा पहनाने के लिए देर से ही सही, केंद्र सरकार ने एक पहल की है.

इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के कठोर रवैये ने भी सकारात्मक भूमिका निभायी है. विशेष अदालतों के गठन का एक लाभ यह भी होगा कि अधीनस्थ अदालतें नेताओं के मामलों से मुक्त हो जायेंगी और अपना समय अन्य मुकदमों पर दे सकेंगी, जिनकी संख्या लाखों में है. इन अदालतों में नेता अपने रसूख का इस्तेमाल कर मुकदमों को टाले रखने में भी कामयाब हो जाते हैं. कुछ मामलों में बड़े नेताओं को सजा मिलने के उदाहरणों का कोई खास असर दागी नेताओं पर नहीं पड़ा है.

मुकदमों के जल्दी निपटारे के साथ चुनाव सुधार, नियमन और चुनाव आयोग को अधिकार-संपन्न करने जैसे उपाय भी महत्वपूर्ण हैं. उम्मीद है कि सरकार, आयोग और न्यायालय विशेष अदालतों की स्थापना के साथ पूरी प्रक्रिया को बेहतर और पारदर्शी करने के लिए पहल करेंगे.

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