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वैश्विक खींचतान

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में बदलाव के अंदेशे अब आकार लेते नजर आ रहे हैं.पिछले सप्ताह वाशिंगटन में आयोजित विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठक में यह साफ दिखा कि अमेरिका और बाकी दुनिया में आर्थिक मुद्दों पर खाई बढ़ती जा रही है. […]

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में बदलाव के अंदेशे अब आकार लेते नजर आ रहे हैं.पिछले सप्ताह वाशिंगटन में आयोजित विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठक में यह साफ दिखा कि अमेरिका और बाकी दुनिया में आर्थिक मुद्दों पर खाई बढ़ती जा रही है. अमेरिका ने इन संस्थाओं के नजरिये पर सवाल खड़ा करते हुए वैश्विक गरीबी उन्मूलन मिशन के लिए पूंजी बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है, जबकि इस बैठक के बयान में जलवायु परिवर्तन के संकट का उल्लेख कर इन वित्तीय संस्थाओं ने अमेरिकी सोच को चुनौती दी है.

ट्रंप प्रशासन की संतुष्टि के लिए अप्रैल की बैठक के बयान में जलवायु परिवर्तन का जिक्र नहीं किया था. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इन संस्थाओं ने दूसरे महायुद्ध के बाद अमेरिकी नेतृत्व में एक आर्थिक उदारवादी विश्व व्यवस्था बनाने में बड़ी भूमिका निभायी है. विश्व बैंक और मुद्रा कोष में हिस्सेदारी बढ़ा कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगे चीन को रोकने की भी कोशिश अमेरिका कर रहा है.

हालांकि जी-20 देशों को ट्रंप के संरक्षणवाद पर आपत्ति है और इसे वैश्वीकरण की प्रक्रिया में बाधा के रूप में देखा जा रहा है, पर इन देशों के साझा बयान में नरमी इस बात का संकेत है कि शेष विश्व अब भी ट्रंप की सोच में बदलाव की उम्मीद कर रहा है. ट्रंप ने ट्रांस-एशिया पैसिफिक और पेरिस जलवायु समझौतों से अमेरिका को अलग कर लिया है. कुछ दिन पहले उन्होंने ईरान परमाणु समझौते पर अमेरिकी जिम्मेदारी वापस ले ली.

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के बजट में कटौती की है. अप्रैल की बैठक में मुद्रा कोष द्वारा संरक्षणवाद पर सवाल उठाने पर अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी. ऐसे कदमों से अमेरिका के परंपरागत सहयोगी नाराज हैं. वैश्विक राजनीति में इस मतभेद के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा एवं वित्त कमेटी ने एक बयान में कहा है कि निवेश, व्यापार और औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है, पर आर्थिक मंदी से उबरने की प्रक्रिया अभी अधूरी है.

ऐसे में किसी तरह की लापरवाह निश्चिंतता खतरनाक हो सकती है. मध्यकालिक आर्थिक चुनौतियों और भू-राजनीतिक तनावों में चढ़ाव पर नीति-निर्माताओं को मुस्तैद रहना होगा. इस संदर्भ में भारत को आंतरिक और बाह्य अस्थिरताओं के बीच विकास की गति को भी कायम रखना है एवं अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में भी दखल देना है.

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