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कर-संग्रह संतोषजनक

अर्थव्यवस्था में गिरावट की चिंताओं के बीच वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का संतोषजनक संग्रहण राहत की खबर है.हालांकि अगस्त में वसूली गयी 90,669 करोड़ की रकम जुलाई की तुलना में 3.6 फीसदी कम है, लेकिन इस रकम में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की उम्मीद है. वित्त मंत्रालय का कहना है कि इसमें 10 लाख से अधिक […]

अर्थव्यवस्था में गिरावट की चिंताओं के बीच वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का संतोषजनक संग्रहण राहत की खबर है.हालांकि अगस्त में वसूली गयी 90,669 करोड़ की रकम जुलाई की तुलना में 3.6 फीसदी कम है, लेकिन इस रकम में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की उम्मीद है. वित्त मंत्रालय का कहना है कि इसमें 10 लाख से अधिक ऐसे छोटे करदाताओं की देनदारी शामिल नहीं हैं, जिन्होंने तिमाही भुगतान प्रणाली का चयन किया है. जो 68 लाख करदाता हैं, उनमें से आधे से कुछ अधिक ने ही निर्धारित तारीख तक ब्यौरा जमा किया है. लेकिन, एक बड़ी चिंता की बात यह है कि जो लोग पहले अपने व्यवसाय का ब्यौरा देते थे, उनमें से एक संख्या ऐसे लोगों की भी है, जिन्हें जीएसटी के तहत कर नहीं देना है.
ऐसे में करदाता कम हो सकते हैं. जानकारों का कहना है कि सरकार को भली-भांति विश्लेषित करना चाहिए कि जो लोग अभी तक अपना विवरण नहीं दे सके हैं, उन्हें क्या कोई सचमुच की दिक्कत है या फिर उन्हें तिमाही प्रणाली में स्वतः ही डाल दिया गया है और इस कारण उन्हें आखिरी तारीख तक जानकारी देने की जरूरत नहीं है.
जीएसटी को लागू हुए अभी तीन महीने भी पूरे नहीं हुए हैं. कर-संग्रहण की व्यवस्था और करदाताओं में ठीक से स्थिरता आने में कुछ समय लगना स्वाभाविक है. परंतु, सरकार को भी लगातार मुस्तैद रहने की जरूरत है और बाधाओं को दूर करने में उसे तत्परता दिखानी चाहिए.
जीएसटी के जरिये अधिक कर वसूली न सिर्फ राजनीतिक फायदे और सरकार की जेब में बड़ी रकम होने के मद्देनजर महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी सफलता से राज्यों को भी तेजी से इसे लागू करने और विस्तार देने के लिए हौसला मिलेगा. कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कर-प्रणाली के अच्छी तरह से काम करने से पेट्रोलियम उत्पादों को इसके तहत लाने के विचार को मजबूती मिलेगी. सरकार की राय में ऐसा करने से इनके दाम कम होंगे, क्योंकि अभी पेट्रोल और डीजल पर कई तरह के शुल्क लगते हैं.
करदाता व्यवसायी सहूलियत के साथ कर-प्रणाली में शामिल हो सकें, इसके लिए सरकार की ओर से कुछ राहतें दी गयी हैं, जिनसे करदाताओं की संख्या में बढ़त की उम्मीद की जा सकती है.
फिलहाल अर्थव्यवस्था में जो कमजोरी दिख रही है, उसे समय रहते पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती भी सरकार के सामने है. यदि आर्थिक वृद्धि, उत्पादन और निवेश में ग्राफ का रुख नीचे की ओर बना रहा, तो आनेवाले महीनों में इसका सीधा नकारात्मक असर जीएसटी वसूली पर होगा.

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