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बच्चों की सुरक्षा अहम

विद्यालय परिसर में एक बच्चे की जघन्य हत्या और एक बच्ची से दुष्कर्म जैसे हालिया वाकयों पर व्यापक जनाक्रोश हमारी व्यवस्था पर सवाल करते-करते कुछ समय बाद खुद ही शांत पड़ जाता है. फिर, तंत्र उसी ढर्रे पर लौट आता है, जहां किसी अनहोनी का खतरा लगातार बना रहता है. बात जब बच्चों की होती […]

विद्यालय परिसर में एक बच्चे की जघन्य हत्या और एक बच्ची से दुष्कर्म जैसे हालिया वाकयों पर व्यापक जनाक्रोश हमारी व्यवस्था पर सवाल करते-करते कुछ समय बाद खुद ही शांत पड़ जाता है. फिर, तंत्र उसी ढर्रे पर लौट आता है, जहां किसी अनहोनी का खतरा लगातार बना रहता है. बात जब बच्चों की होती है, तो बेहतर भविष्य का सपना मां-बाप ही नहीं, पूरा देश देखता है.

दशकों पहले 1974 में बच्चों के लिए राष्ट्रीय नीति को घोषणा करते हुए उन्हें ‘सर्वोच्च राष्ट्रीय संपत्ति’ करार दिया गया था. लेकिन, लंबे अरसे के बाद जब सर्वेक्षण बताते हैं कि देश में 70 फीसदी बच्चे शारीरिक और 50 फीसदी बच्चे यौन दुर्व्यवहार के शिकार हैं, तो स्पष्ट हो जाता है कि बच्चों की सुरक्षा पर हम कभी गंभीरता से चेते ही नहीं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखें, तो पिछले तीन वर्षों में बच्चों पर होनेवाले अपराधों के मामले 89,423 से बढ़ कर 1,05,785 पर पहुंच गये. चाइल्डफंड एलाइंस द्वारा किये गये सर्वे के मुताबिक स्कूलों में हर तीन में से एक बच्चा खुद को असुरक्षित महसूस करता है.

मोटी फीस वसूलने वाले ज्यादातर स्कूल बच्चों की सुरक्षा के मसले पर बेपरवाह नजर आते हैं. प्रद्युम्न हत्या मामले पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तलब किये जाने के बाद केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसइ) ने बच्चों की सुरक्षा के लिए विद्यालयों की जिम्मेदारी तय करने की बात कही है. संस्था ने आदेश जारी कर स्कूलों को दो महीने के भीतर शिक्षकों, गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों, ड्रा‌इवर, कंडक्टर समेत सभी कर्मियों का मनोमितीय परीक्षण करने को कहा है.

प्रत्येक बच्चा जिस परिवेश में पढ़ाई कर रहा है, वहां वह सुरक्षित महसूस करे, यह बच्चे का मौलिक अधिकार है. बच्चा किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना से मुक्त हो, यह जिम्मेदारी स्कूल को तय करनी होगी. स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर वर्ष 2014 में मानव संसाधन मंत्रालय ने निर्देश जारी कर विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए शिक्षकों व छात्रों को प्रशिक्षित करने और ड्राइवर व अन्य सहयोगी कर्मियों के पृष्ठभूमि की जांच सुनिश्चित करने को कहा था. बच्चों की सुरक्षा तय करने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल व संरक्षण), अधिनियम, शिक्षा का अधिकार, पीओसीएसओए एक्ट समेत तमाम नीतिगत प्रावधान हैं.

लेकिन, कानूनी बाध्यता नहीं होने के कारण स्कूल प्रबंधन और सरकारी अधिकारी लापरवाही बरतते हैं. ऐसे में जरूरी है कि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये तथा शिक्षा के अधिकार कानून में इस मुद्दे को प्रमुखता से शामिल किया जाये. इन उपायों से ही हम देश के भविष्य को बचा सकेंगे.

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