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वसंत पंचमी विशेष : वर दे, वीणावादिनी वर दे…

वसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना की जाती है. देवी सरस्वती को विद्या, बुद्धि, विवेक, संगीत एवं कला की देवी माना गया है. इस अवसर पर विद्यार्थी, लेखक, कवि, गायक, वादक एवं साहित्य तथा कला जगत से जुड़े लोग […]

वसंत पंचमी का त्योहार माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना की जाती है. देवी सरस्वती को विद्या, बुद्धि, विवेक, संगीत एवं कला की देवी माना गया है.
इस अवसर पर विद्यार्थी, लेखक, कवि, गायक, वादक एवं साहित्य तथा कला जगत से जुड़े लोग देवी की विशेष रूप से आराधना करते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो एकाग्र मन और समर्पित भाव से उनकी आराधना करते हैं, उन पर देवी सरस्वती की कृपा अवश्य ही बरसती है. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें जन्म से ही यह दैवी कलाएं उपहारस्वरूप प्राप्त होती हैं. आज हम आपको मिला रहे हैं ऐसे ही कुछ युवाओं से, जिन्हें जन्म से ही विद्या, बुद्धि और कला की ये विरासत सौगात में मिली है:
कला को समझने के लिए उसे आत्मसात करना जरूरी : पूजा
मूलत: पटना की रहनेवाली पूजा तिजिया एक बेहतरीन वॉल आर्टिस्ट और मधुबनी पेंटर हैं, लेकिन उन्होंने कहीं से इसकी ट्रेनिंग नहीं ली है. यह उनकी गॉड गिफ्टेड क्वॉलिटी है. पूजा की मानें, तो कला कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे सिखा या जा सके. एक कलाकार के अंदर क्रियेटिविटी होनी जरूरी है. अगर आपमें कला के प्रति आंतरिक रुझान नहीं है, तो आप कितना भी सीख लें या पढ़ लें, आपके आर्ट वर्क में वो गहरायी नहीं आ पायेगी, जो लोगों के दिल को छुए.
कला को समझने और उसे आत्मसात करने के लिए उसके प्रति समर्पित होना जरूरी है. पूजा बेहद छोटी उम्र से ही पेंटिंग कर रही हैं. जैसे-जैसे वह बड़ी हुईं उनका यह रुझान बढ़ता चला गया़ पिछले कुछ सालों में पटना में तेजी से लोकप्रिय हो रहे कैफे कल्चर में फायदा उन जैसे कलाकारों की मांग बढ़ी है. आज पटना के फेमस कैफे हाउस में पूजा की बनायी वॉल पेंटिंग देख सकते हैं. कॉलेज लेवल पर पूजा कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार भी जीत चुकी हैं.
नृत्य-संगीत को समर्पित किया जीवन : सुनीता
पिछले 22 वर्षों से संगीत और नृत्य की साधना कर रही सुनीता सरकार और नीलिमा दास रांची शहर के लिए आज की तारीख में कोई अंजाना नाम नहीं हैं. इन दोनों बहनों ने अपनी कला साधना के बलबूते शहर में अपनी एक अलग पहचान बनायी है.
बड़ी बहन सुनीता सरकार ने पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद में संगीत गुरु निरूपमा बनर्जी से शास्त्रीय संगीत में संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल करने के बाद रांची के संगीत विशारद गुरु डॉ संतोष राय से नुसरूल गीती, रवींद्र संगीत, भाव संगीत और सुगम संगीत में भी संगीत प्रभाकर, संगीत विभाकर और संगीत रत्न की शिक्षा हासिल की है.
वहीं छोटी बहन नीलिमा दास को कत्थक, रवींद्र नृत्य, शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य और वेस्टर्न डांस में पारंगत हासिल है़ सुनीता कहती हैं- ‘शुरू से ही हम दोनों बहनों को क्रमश: संगीत और नृत्य के प्रति गहरा लगाव था. एक तरह से कहूं, तो इससे इतर हम अपना अस्तित्व सोच भी नहीं सकते. यही कारण है कि हमने इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का फैसला किया.’ फिलहाल रांची के कांके रोड में सुरछंदम डांस एकेडमी के नाम से आज ये दोनों अपना डांस और म्यूजिक इंस्टिट्यूट चलाती हैं.
कला को सम्मान दिलाने के लिए उसे लोगों की नजर में लाना जरूरी : सिन्नी कुमारी
कहते हैं किसी इंसान में अगर कोई प्रतिभा हो, तो उसे कितना भी दबाना चाहे, वह कहीं-न-कहीं से उभर कर दुनिया के सामने आ ही जाती हैं. कुछ ऐसा ही हुआ पटना निवासी सिन्नी कुमारी के साथ. सिन्नी को बहुत छोटी उम्र से ही मेंहदी लगाने का शौक था, लेकिन उनकी मां के अलावा परिवार में किसी को भी उनका यह काम पसंद नहीं था. सब उन्हें ‘मेंहदीवाली’ कह कर उनका मजाक उड़ाते थे.
घरवालों की इच्छा का मान रखते हुए सिन्नी ने मेडिकल की तैयारी करने लगीं, लेकिन वो कहते हैं न कि वक्त और हालात कब, किसे कहां लाकर खड़ा कर दे, कोई नहीं जानता. तीन बहनों में सबसे बड़ी सिन्नी के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इस कारण उन्हें अपने मेडिकल की तैयारी को बीच में ही ड्रॉप करना पड़ा. उसके बाद सिन्नी ने आर्ट कॉलेज में अप्लायड आर्ट के ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन ले लिया और मेंहदी लगा कर अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला. सिन्नी कहती हैं- ‘शुरुआत में भले मैंने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मेंहदी लगाती थी, लेकिन समय के साथ यह कब मेरा पैशन और प्रोफेशन बन गया, मुझे खुद भी पता नहीं चला.
अब सिन्नी को ‘Design Point’ उनके फेसबुक और इंस्टग्राम पेज के जरिये देश ही नहीं, विदेशों में रहनेवाले बिहारी एनआरआइ भी मंेहद लगाने के लिए एप्रोच करते हैं. आज सिन्नी की पहचान एक ‘मेंहदी आर्टिस्ट’ के तौर पर है और अब उनके पिता भी उन्हें फुल सपोर्ट करते हैं.
सबसे कम उम्र के बिहारी नोवेलिस्ट : दिव्यांशु
जिस उम्र में किशोर अपने सपनों की दुनिया में जी रहे होते हैं, उसी उम्र में दिव्याशु पराशर ने अपने सपनों को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया और यही नहीं अपने इस कदम के साथ ही उन्होंने एक रिकॉर्ड भी कायम कर दिया. जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के कटिहार जिला निवासी 16 वर्षीय दिव्यांशु पराशर की. इतनी कम उम्र में ही दिव्यांशु ने अपना पहला नॉवेल लिख डाला है.
दिव्यांशु बचपन से ही पढ़ने-लिखने में अव्वल रहे हैं.उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में अपने स्कूल में टॉप किया और आगे अपनी मर्जी से 12वीं कक्षा की पढ़ाई दुहराने का निर्णय लिया.
दिव्यांशु को बचपन से ही कहानियां और कविताएं लिखने का शौक रहा. बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने लेखन के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाने का निर्णय ले लिया था. वह हरेक चीज को बेहद संवेदनशील और विश्लेषणात्मक नजरिये से परखने की क्षमता रखते हैं. उनका पहला नोवल उनकी इस पारखी नजर का ही परिणाम है. आज दिव्यांशु बिहार के सबसे उम्र के नोवेलिस्ट के तौर पर पहचाने जाते हैं.
अपने इस पहले नॉवेल में दिव्यांशु ने अपने मुख्य किरदार के जरिये पाठकों को यह बताने का प्रयास किया है कि हमारे जीवन में सफलता और असफलता की प्राप्ति पर किस तरह हमारे नजरिये या दृष्टिकोण का प्रभाव पड़ता है.
टीवी शोज के बाद बॉलीवुड कोिरयोग्राफी में बनानी है पहचान : श्रुति सेनापति
टीवी तथा यूट्यूब देख-देख कर स्तुति ने डांस करना सीखा है. उसके बाद रांची के विभिन्न डांस एकेडमी से शॉर्ट टर्म डांस कोर्स करके अपने हुनर को निखारती गयीं. वर्तमान में श्रुति रांची के एक मशहूर डांस एकेडमी एडीएस, रांची में छोटे बच्चों और महिलाओं को डांस सिखाती हैं. डांस के प्रति अपने पैशन के बलबुते श्रुति ने न सिर्फ स्कूल लेवल पर कई पुरस्कार जीते, बल्कि डांस इंडिया डांस, बुगी-वुगी और इंडियाज गॉट टैलेंट जैसे नेशनल टीवी शोज में भी भागीदारी निभा चुकी हैं. वह इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन-8 के क्वॉर्टर फाइनल राउंड तक पहुंची हैं. आगे बॉलीवुड कोरियोग्राफर के रूप में अपनी पहचान बनाना है.
कलाकार अपने विचारों से अमूर्त चीजों को मूर्त रूप देता है : यामीन
पिछले दो साल से रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज के एनिमेशन एंड ट्रेड विंग डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत यामीन उर्फि को शुरू से ही चित्रकारी का शौक रहा है. वह जब पांच साल के थे, तभी से उन्होंने रंगों से खेलना शुरू कर दिया था.
बड़े होने पर उन्होंने बंगीय संगीत परिषद, कोलकाता से फाइन आर्ट्स में सीनियर डिप्लोमा किया और उसके बाद इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया. यामीन की मानें, तो कलाकार का काम केवल खाली जगहों में रंग भरना नहीं होता. कलाकार वह है, जो अपने विचारों से अनसुलझी पहेलियों को भी रंग भर कर एक खूबसूरत रूप दे सके.
कहने का मतलब यह है कि एक कलाकार के अंदर ही यह काबिलियत होती है कि वह अपने कलात्मक विचारों से अमूर्त चीजों में रंग भर कर उसे मूर्त और खूबसूरत रूप दे सकता है़

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