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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पत्नी के फोन कॉल को सीमित करने का आदेश अव्यावहारिक, जानें पूरा मामला

रांची : वैवाहिक संबंधों में विवाद असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस तरह के विवादों से जुड़े मुकदमों में न्यायालयों द्वारा पारित कुछ आदेश असामान्य कहे जा सकते हैं. झारखंड हाइकोर्ट के ऐसे ही एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एसके कौल व जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने याचिका पर सुनवाई की. महिला के […]

रांची : वैवाहिक संबंधों में विवाद असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस तरह के विवादों से जुड़े मुकदमों में न्यायालयों द्वारा पारित कुछ आदेश असामान्य कहे जा सकते हैं.
झारखंड हाइकोर्ट के ऐसे ही एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एसके कौल व जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने याचिका पर सुनवाई की. महिला के रिश्तेदारों के लिए फोन कॉल प्रतिदिन एक घंटे सीमित करने के निर्देश के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि महिला पर इस तरह का अंकुश लगा कर हाइकोर्ट ने अपनी रेखा पार की है. हाइकोर्ट का आदेश अव्यावहारिक है.
कोर्ट वैवाहिक मामलों में सुरक्षात्मक होते हैं, जो शादी को बचाने के लिए दूसरा मौका देने का प्रयास करते हैं, लेकिन इस मामले में झारखंड हाइकोर्ट कुछ ज्यादा ही प्रोटेक्टिव था. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पत्नी पर लगाये गये अंकुश को असामान्य पाया. बेंच ने कहा कि शर्तों को पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इरादा पति व पत्नी दोनों को उनके संबंधित माता-पिता द्वारा वैवाहिक मामलों में हस्तक्षेप करने से रोकना है.
क्या है मामला : पति द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर झारखंड हाइकोर्ट ने फरवरी 2019 में आदेश पारित किया था. हाइकोर्ट ने पति-पत्नी को समझौता के लिए बुलाया और राजी कराया. समझाैते की शर्तों में एक शर्त यह थी कि पति अपनी पत्नी को उसके रिश्तेदारों से रोजाना अधिकतम एक घंटे तक बात करने के लिए मोबाइल फोन प्रदान करेगा. इसके बाद पत्नी अपने साथ कोई व्यक्तिगत/अलग मोबाइल नहीं रखेगी.

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