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सरकार की नियोजन नीति पर हाइकोर्ट ने लगायी रोक

मामला लार्जर बेंच में ट्रांसफर रांची : झारखंड हाइकोर्ट में बुधवार को सरकार की नियोजन नीति व संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के विज्ञापन को चुनाैती देनेवाली याचिकाअों पर सुनवाई हुई. एक्टिंग चीफ जस्टिस हरीश चंद्र मिश्र और जस्टिस दीपक राैशन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की अधिसूचना […]

मामला लार्जर बेंच में ट्रांसफर
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में बुधवार को सरकार की नियोजन नीति व संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के विज्ञापन को चुनाैती देनेवाली याचिकाअों पर सुनवाई हुई.
एक्टिंग चीफ जस्टिस हरीश चंद्र मिश्र और जस्टिस दीपक राैशन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की अधिसूचना 5393, दिनांक 14 जुलाई 2016 के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी. साथ ही संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति की चल रही प्रक्रिया पर भी रोक लगाने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने अगले आदेश तक के लिए उक्त रोक लगायी है. खंडपीठ ने विस्तृत सुनवाई के लिए मामले को लार्जर बेंच (बड़ी पीठ) में ट्रांसफर कर दिया.
मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने चार नवंबर की निर्धारित निर्धारित की.इससे पूर्व प्रार्थी की अोर से राजस्थान हाइकोर्ट के अधिवक्ता विज्ञान शाह, अधिवक्ता ललित कुमार सिंह और मेल प्रकाश तिर्की ने पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार की नियोजन नीति पूरी तरह से असंवैधानिक है. किसी भी रूप में निवास या जन्मस्थान के नाम पर शत-प्रतिशत सीटों को आरक्षित नहीं किया जा सकता है. सरकार की नीति से माैलिक अधिकारों का हनन हो रहा है. सरकार की नियोजन नीति व संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के विज्ञापन को निरस्त करने का आग्रह किया.
सरकार की नीति का बचाव कियाः वहीं सरकार की अोर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने प्रार्थियों की दलील का विरोध करते हुए सरकार की नीति का बचाव किया. उन्होंने कहा कि 14 जुलाई 2016 को जारी अधिसूचना संवैधानिक है तथा सरकार ने संविधान के दायरे में उसे लागू किया है.
राज्य सरकार ने पूरी वैधानिक प्रक्रिया के बाद 13 अनुसूचित जिलों के तृतीय व चतुर्थवर्गीय पदों को उसी जिले के स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित किया था. यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की अोर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल, अधिवक्ता राकेश रंजन, अधिवक्ता प्रिंस कुमार ने बताया कि सरकार की अधिसूचना व अधियाचना के आलोक संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था. नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है.
अधिकतर विषयों में नियुक्ति हो चुकी है. हाइस्कूल शिक्षक के 17,572 पदों में से लगभग 12,000 शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है. यह भी बताया गया कि तीन जनवरी 2019 को खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित कर कहा था, इस तिथि के बाद इस विज्ञापन से सरकार द्वारा की गयी नियुक्ति अंतिम आदेश से प्रभावित होगी. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी पलामू निवासी सोनू कुमारी ने याचिका दायर की है.
उन्होंने संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति विज्ञापन 21/2016 व राज्य सरकार की अधिसूचना 14-01/2015/स्थानीयता नीति-5938, दिनांक 14.7.2016 (नियोजन नीति) व मेमो नंबर 5939/14.7.2016 को चुनौती दी है. कई याचिकाकर्ताअों ने अलग-अलग विषयों में जिलावार मेरिट बनाने को भी चुनाैती दी है. मामले में दर्जनों हस्तक्षेप याचिका भी दायर की गयी है. वहीं नियुक्त हो चुके अभ्यर्थियों की अोर से भी याचिका दायर की गयी है. सभी याचिकाअों पर सुनवाई साथ-साथ चल रही है.
क्या है अधिसूचना में : राज्य सरकार की अधिसूचना संख्या 5393 दिनांक 14 जुलाई 2016 में कहा गया है कि झारखंड के 13 अनुसूचित जिलों में होनेवाली वर्ग तीन और वर्ग चार की नियुक्तियों के संबंध में उक्त जिलों के पिछड़ेपन को देखते हुए 10 वर्षो तक स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित रहेगी. 11 गैर अनुसूचित जिलों को अनुसूचित जिलों के लोगों सहित देश के योग्य अभ्यर्थियों के लिए खुला रखा गया.
अनुसूचित जिला : रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहेबगंज.
गैर अनुसूचित जिला : पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा व देवघर.
संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रशिक्षित हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया पर अगले आदेश तक रोक
सरकार की नियोजन नीति के आलोक में हाइस्कूल शिक्षक नियुक्ति के लिए प्रकाशित विज्ञापन (21/2016, 28.12.2016) में कहा गया है कि राज्य के 11 गैर अनुसूचित जिले के अभ्यर्थी 13 अनुसूचित जिलों में नियुक्ति के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं. 13 अनुसूचित जिलों के स्थानीय अभ्यर्थी अपने मूल जिले में ही आवेदन कर सकेंगे. प्रार्थी सोनी कुमार का कहना था कि 13 अनुसूचित जिलों में शत-प्रतिशत आरक्षण दिया जाना असंवैधानिक है. जस्टिस एस चंद्रशेखर की एकल पीठ ने 12 दिसंबर 2018 को मामले में संवैधानिक पहलुअों को देखते हुए उसे खंडपीठ में स्थानांतरित कर दिया था.

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