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Thursday, March 28, 2024

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सीवरेज-ड्रेनेज मद का 688 करोड़ पहले ही गंवा चुकी है राज्य सरकार

रांची : राज्य सरकार सीवरेज-ड्रेनेज का 688 करोड़ रुपये गंवा चुकी है. फिलहाल, जारी सीवरेज-ड्रेनेज का काम समय पर पूरा नहीं होने पर फंड की समस्या पैदा हो सकती है. हाइकोर्ट ने सीवरेज-ड्रेनेज योजना को निर्धारित समय में पूरा करने की जिम्मेदारी नगर विकास सचिव और रांची नगर निगम को सौंपी है.केंद्र सरकार ने जवाहरलाल […]

रांची : राज्य सरकार सीवरेज-ड्रेनेज का 688 करोड़ रुपये गंवा चुकी है. फिलहाल, जारी सीवरेज-ड्रेनेज का काम समय पर पूरा नहीं होने पर फंड की समस्या पैदा हो सकती है. हाइकोर्ट ने सीवरेज-ड्रेनेज योजना को निर्धारित समय में पूरा करने की जिम्मेदारी नगर विकास सचिव और रांची नगर निगम को सौंपी है.केंद्र सरकार ने जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन(जेएनएनयूआरएम) के तहत राज्य सरकार के सीवरेज-ड्रेनेज के लिए 600 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी.

हालांकि, राज्य सरकार द्वारा जेएनएनयूआरएम की योजना अवधि में काम शुरू नहीं करने की वजह से केंद्र सरकार ने राशि राज्य सरकार को नहीं दी. केंद्र सरकार ने शहरों के विकास और सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सात साल के लिए जेएनएनयूआरएम शुरू की थी.
इसकी अवधि वर्ष 2005 से 2012 तक थी. राज्य सरकार ने 2006 में सीवरेज-ड्रेनेज की डीपीआर बनाने का काम ओआरजी मार्ग को दिया. विवाद होने पर उससे काम वापस लेकर सिंगापुर की कंपनी मैनहर्ट को दिया. इस कंपनी को काम देने पर भी काफी विवाद हुआ. कानूनी लड़ाई के बाद कंपनी को कंसल्टेंसी का भुगतान हुआ.
2008 में पूरा हुआ डीपीआर बनाने का काम
वर्ष 2008 में डीपीआर बनाने का काम पूरा हुआ. इसके आधार पर केंद्र सरकार ने जेएनएनयूआरएम के तहत सीवरेज-ड्रेनेज की योजना के लिए 688 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी. हालांकि, सीवरेज-ड्रेनेज के टेंडर में विवाद हुआ.
इस विवाद की वजह से सरकार ने सीवरेज-ड्रेनेज योजना का टेंडर रद्द कर दिया. इस योजना के विभिन्न प्रकार के विवादों में उलझने और समय सीमा समाप्त होने की वजह से केंद्र सरकार ने जेएनएनयूआरएम के तहत स्वीकृत राशि विमुक्त नहीं की.
2011 में दायर हुई थी जनहित याचिका
वर्ष 2011 में सीवरेज-ड्रेनेज निर्माण को लेकर हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई. सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने जनवरी 2014 में केंद्र सरकार के नगर विकास विभाग को निर्देश दिया कि वह प्रथम किस्त के रूप में 60.45 करोड़ राज्य सरकार को दे.
न्यायालय के इस आदेश आलोक में केंद्र सरकार ने पैसा देने के लिए कागजी प्रक्रिया शुरू की. इस प्रक्रिया में देर होने की वजह से राशि विमुक्त करने का मामले लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान आचार संहिता के दायरे में फंस गया. हालांकि, चुनाव आयोग की अनुमति के बाद केंद्र सरकार ने 60.45 करोड़ रुपये विमुक्त किया.
2016 में निष्पादित हुई जनहित याचिका
रांची नगर निगम द्वारा सीवरेज-ड्रेनेज की काम शुरू कराये जाने की सूचना दिये जाने के बाद हाइकोर्ट ने इस जनहित याचिका को फरवरी 2016 में निष्पादित किया. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह और न्यायमूर्ति चंद्रशेखर ने याचिका निष्पादित करते हुए यह लिखा कि योजना को समय सीमा में पूरा नहीं होने पर फंड की समस्या पैदा हो सकती है. इसलिए नगर विकास सचिव और नगर निगम की यह जिम्मेदारी है कि वह निर्धारित समय सीमा में योजना को पूरा करायें ताकि फंड की समस्या नहीं हो.
नगर विकास मंत्री ने शहर को नरक बना दिया, ठेका-पट्टा हो रहा : हेमंत
रांची : प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने कहा है कि नगर विकास मंत्री ने राज्य की राजधानी को नरक बना दिया है. इनके विभाग में केवल ठेका-पट्टा हो रहा है. श्री सोरेन ने कहा कि हमने हरमू नदी के विकास के लिए 80 करोड़ दिये थे, कहां गया, किसी को पता नहीं है.
हरमू नदी को नाला बना दिया गया. सीवरेज-ड्रेनेज के नाम पर खेल हाे रहा है. ये पैसे कहां जा रहे हैं, सबको पता है. श्री सोरेन शुक्रवार को विधानसभा में पत्रकारों से बात कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि राज्य में सड़क-बिजली का क्या स्थिति है, किसी से नहीं छिपी है. मुख्यमंत्री ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए खुद डंडा लेकर निकले थे प्राइवेट पुलिस की भूमिका में थे, लेकिन राजधानी की ट्रैफिक व्यवस्था नहीं सुधरी.
राजधानी की व्यवस्था नहीं बदल सके, तो दूसरे शहरों की क्या स्थिति होगी. बिजली की स्थिति सबको पता ही है. सरकार के विकास का पैमाना कागजी है. उन्होंने कहा कि राज्य में आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं. रोज चेन छिनतई, हत्या और सामूहिक दुष्कर्म हो रहे हैं. इस सरकार का नकाब उतर गया है.
रांची की बर्बादी के गुनाहगार कौन?
रांची की बर्बादी के गुनहगार कौन? कॉलम के तहत प्रभात खबर ने अपने सुधि पाठकों से विचार आमंत्रित किये थे. इसके तहत झारखंड सिटीजन के विष्णु राजगढ़िया ने अपने विचार हमें भेजे हैं.
वर्ष 2000 में ही बने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सुनियोजित विकास की तुलना भी रांची को मायूस करती है. एक हद तक राजनीतिक स्थिरता को भी जिम्मेदार माना जा सकता है.
प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की ग्रेटर रांची की परिकल्पना पर काम होता तो यह संकट नहीं दिखता. आरंभ में रांची का दायित्व आरआरडीए पर था. बिहार के समय के पुराने बिल्डिंग बायलॉज में काफी कमियां थीं. कुछ बिल्डर्स तथा आमलोगों ने मनमाने तरीके से बेतरतीब निर्माण किये.
हाइकोर्ट के आदेश पर वर्ष 2005 में आरआरडीए ने सख्ती बरती, तो उसे राजनीतिक दबाव में विफल कर दिया गया. आज भी बिल्डिंग बायलॉज की खामियों का लाभ उठाकर संकरी गलियों में बड़ी इमारतें खड़ी की जा रही हैं. राजधानी में उपलब्ध खाली सरकारी जमीनों का उपयोग पार्क, पार्किंग, खेल के मैदान, सार्वजनिक शौचालय, जल संरक्षण इत्यादि के लिए करने के बजाय मार्केट बनाने की व्यावसायिक प्रवृत्ति हावी रही.
डिस्टिलरी पुल, जयपाल सिंह स्टेडियम, रवींद्र भवन, पुरानी जेल, बारी पार्क, मोरहाबादी मैदान इत्यादि स्थानों पर अंधाधुंध निर्माण ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया. सीवरेज-ड्रेनेज और रिंग रोड जैसी महत्वाकांक्षी योजना की दुर्गति सबके सामने है.
तीन कदमों से बेहतर बन सकती है रांची
1. दिल्ली एनसीआर की तरह ग्रेटर रांची की परिकल्पना हो. रांची शहर की धुरी में लगभग 40 किमी क्षेत्र पतरातू, रामगढ़, बुंडू, अनगड़ा, मांडर इत्यादि को शामिल करें. इन इलाकों में निर्माण अनुमति के कठोर नियम हों.
2. सरकारी जमीनों पर इको फ्रैंडली कार्य हों, खुले स्थान को बढ़ावा दें, पेड़ लगाएं और जल निकाय बनायें.
3. रांची नगर निगम को 74वें संविधान संशोधन के अनुरूप वास्तविक स्वायत्त संस्था बनायें.
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