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रांची : एक बार वन भूमि ली, जानकारी छिपा कर दोबारा भी ठोका दावा

संजय पट्टा के पांच हजार आवेदनों में डुप्लीकेसी का मामला रांची : झारखंड सरकार ने वाइल्ड लाइफ फर्स्ट व अन्य बनाम भारत सरकार के मामले में मुख्य सचिव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दायर कर वन पट्टा मामले की जानकारी दे दी है. उक्त मामले में 24 जुलाई को सुनवाई होनी है […]

संजय
पट्टा के पांच हजार आवेदनों में डुप्लीकेसी का मामला
रांची : झारखंड सरकार ने वाइल्ड लाइफ फर्स्ट व अन्य बनाम भारत सरकार के मामले में मुख्य सचिव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दायर कर वन पट्टा मामले की जानकारी दे दी है.
उक्त मामले में 24 जुलाई को सुनवाई होनी है तथा कोर्ट ने इससे पहले वन भूमि पट्टा के रद्द हुए आवेदन के आवेदकों को सुनवाई (24 जुलाई) से पहले संबंधित स्थल से हटाने तथा लंबित मामले में निर्णय लेने को कहा था. यह शपथ पत्र इसी मामले में दिया गया है. इससे पहले कल्याण विभाग के दो अधिकारी मंगलवार को ही दिल्ली चले गये थे.
सूत्रों के मुताबिक वन पट्टा की अनुशंसा करनेवाली जिला समितियों की रिपोर्ट से पता चला कि वन भूमि पट्टा के लिए लंबित करीब पांच हजार मामले डुप्लीकेसी वाले थे, जिन्हें रद्द कर दिया गया. यह ऐसे आवेदन थे, जो पहले रद्द होने के बाद भी फिर से दिये गये थे.
वहीं कुल 1040 मामले ऐसे हैं, जिनमें वन पट्टा निर्गत होने के बाद फिर से वन भूमि हासिल करने के लिए उसी परिवार के किसी अन्य सदस्य के नाम से आवेदन दिये गये थे. सुप्रीम कोर्ट को वन पट्टा के लिए मिले वैसे रद्द आवेदन की भी जानकारी दी गयी है, जो जिस वन भूमि के लिए आये थे, वहां जमीन थी ही नहीं. ऐसे करीब एक हजार मामले थे. गैर जनजातीय लोगों के कुछ मामले में किसी रैयती भूमि के लिए भी अावेदन दे दिया गया था, जिसे रद्द किया गया. वहीं कोर्ट को वैसे लंबित आवेदन की भी जानकारी दी गयी है, जिसकी जांच डीएफअो के स्तर से हो रही है, कि कहीं वह वन भूमि के अतिक्रमण का मामला तो नहीं है. गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने अब तक राज्य भर में वन भूमि का 61970 पट्टा जारी किया है, जो 104066.01 एकड़ जमीन से संबंधित है.
क्या है मामला
गैर सरकारी संस्था वाइल्ड लाइफ फर्स्ट व अन्य (नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी व टाइगर रिसर्च एंड कंजर्वेशन ट्रस्ट) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका (डब्ल्यूपी 109/2008) दायर कर वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत वन भूमि पर अतिक्रमण व गलत कब्जे के कारण हो रहे वनों तथा वन्य प्राणियों पर पड़ रहे बुरे प्रभाव का मामला उठाया था तथा न्यायालय से वनों तथा वन्य प्राणियों की रक्षा की गुहार लगायी थी.
वाइल्ड लाइफ फर्स्ट व अन्य बनाम भारत सरकार के इस मामले की सुनवाई के दौरान वन भूमि के गलत दावे तथा वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत रद्द किये गये दावों पर निर्णय लेने में राज्यों की अंतहीन प्रक्रिया पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2019 को अपने आदेश में झारखंड सहित कुल 17 राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वह जो दावे रद्द कर दिये गये हैं, वैसे लोगों को अगली सुनवाई (24 जुलाई) से पहले संबंधित वन स्थल से हटाये. वहीं लंबित मामलों पर चार माह के अंदर निर्णय लेकर पूरे मामले में 12 जुलाई से पहले शपथपत्र दायर करने को कहा था.
वनों में रहनेवाले जनजातीय (एसटी) समुदाय के लोग, जो 13 दिसंबर 2005 से पहले से वनों पर निर्भर हैं, उन्हें इस अधिनियम के तहत जीवनयापन के लिए वन भूमि पट्टा देने का प्रावधान है. वहीं उन गैर जनजातीय लोगों को भी पट्टा दिया जाना है, जो 13 दिसंबर 2005 से पूर्व तीन पीढ़ियों (75 वर्षों) से जंगलों में रह रहे हैं.

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