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देश भर ने झुमरीतिलैया से सीखी है कलाकंद बनाने की कला!

संजय ‘टेस्ट ऑफ झारखंड’ पर शोध करेगा डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान रांची : झारखंड सिर्फ घने जंगलों, सुंदर पहाड़ियों, जल प्रपात, झील, नदियों, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-खनिज, वन्यप्राणी अभयारण्य, खुशनुमा मौसम, हरियाली तथा उद्योग-धंधों सहित मोहक सांस्कृतिक विरासत का घर भर नहीं है. दरअसल यह घर लजीज पकवान व मिठास पैदा करने वाली अपनी […]

संजय
‘टेस्ट ऑफ झारखंड’ पर शोध करेगा डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान
रांची : झारखंड सिर्फ घने जंगलों, सुंदर पहाड़ियों, जल प्रपात, झील, नदियों, प्राकृतिक सौंदर्य, खान-खनिज, वन्यप्राणी अभयारण्य, खुशनुमा मौसम, हरियाली तथा उद्योग-धंधों सहित मोहक सांस्कृतिक विरासत का घर भर नहीं है. दरअसल यह घर लजीज पकवान व मिठास पैदा करने वाली अपनी रसोई के लिए भी मशहूर है. इसलिए जैव विविधता वाले राज्य झारखंड को खाद्य विविधता वाले राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए शोध का सहारा लिया जायेगा.
इसके जरिये जाने-पहचाने मौजूदा पकवानों को न सिर्फ व्यावसायिक चलन में लाने के रास्ते तलाशे जायेंगे, बल्कि इससे गुमनाम खाद्य व पकवान की फेहरिस्त भी बन सकेगी. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान, मोरहाबादी यह काम करेगा.
पुरानी कहावत है कि इनसान के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है. झारखंड में अपने खाद्य व पकवान की बदौलत किसी के दिल में उतर जाने की ताकत है. माना जाता है कि कलाकंद बनाने की कला देश भर ने झुमरीतिलैया से सीखी. यह मिठाई सबसे पहले यहीं बनी. बाद में देश के दूसरे राज्यों में चलन में आया. उसी तरह संताल परगना का हंसडीहा सोन पापड़ी के लिए मशहूर है. यहां इसकी 50 से अधिक दुकानें हैं.
वहीं देवघर-बासुकीनाथ मार्ग पर स्थित घोरमारा का पेड़ा तो हर दिल अजीज है ही. वहीं हजारीबाग का चौपारण खीर मोहन के लिए प्रसिद्ध है. स्वाद पसंद लोग गुलाब जामुन खाने टाटीझरिया (हजारीबाग-बगोदर रोड) भी चले जाते हैं. झारखंड के खान-पान की यही अकेली विरासत नहीं है.
हमारी जनजातीय आबादी भी अपने पारंपरिक पकवान से खान-पान के शौकीन लोगों को पूरी तरह तृप्त करने का माद्दा रखती है. चावल, दाल, सब्जी व कंदमूल झारखंड के प्रमुख आहार हैं. वहीं चिरका रोटी, पिठा, मालपुआ, ढुसका, अरसा रोटी, लिट्टी-चोखा, रुगड़ा (मशरूम का एक प्रकार) तथा बांस के मुलायम तने भी यहां बड़े चाव से खाये जाते हैं. ढुसका गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा व खूंटी इलाके में खासा मशहूर है. वहीं महुआ लट्टा व महुआ लड्डू पलामू की पहचान है.
अामतौर पर सराय लट्टा (सखुआ व इमली बीज के साथ महुआ का फूल मिला पकवान) चावल, उड़द दाल की छिलका रोटी, मडुआ का लड्डू, गोंदली (एक खास किस्म की घास से निकलने वाला दानानुमा अनाज),चावल व दूध से बना केरा तथा मुनगा व कोयनार वृक्ष के कोमल पत्तों से बनी साग का इस्तेमाल झारखंड का जनजातीय समाज कमोबेश करता है. शोध से इस सूची में पर्व-त्योहार या खास मौकों पर बनाये जाने वाले अन्य पकवानों के नाम भी जुड़ सकते हैं.

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