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रांची : तीन राज्यों के आदिवासियों ने दिखायी एकजुटता, धर्म कोड के लिए आदिवासी धर्म के नाम पर जतायी गयी सहमति

रांची : देश भर के आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर मोरहाबादी मैदान में आयोजित महासम्मेलन में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग जुटे. महासम्मेलन में झारखंड की 32 जनजातियों के अलावा मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. साथ ही गुजरात के प्रतिनिधियों ने भी संदेश दिया. […]

रांची : देश भर के आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर मोरहाबादी मैदान में आयोजित महासम्मेलन में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग जुटे. महासम्मेलन में झारखंड की 32 जनजातियों के अलावा मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. साथ ही गुजरात के प्रतिनिधियों ने भी संदेश दिया.

इस अवसर पर आदिवासी धर्मकोड के नाम पर सहमति बनी. कहा गया कि देश के अन्य राज्यों के आदिवासियों के बीच भी इस नाम को लेकर सहमति बनायी जायेगी. महासम्मेलन का आयोजन आदिवासी सरना महासभा, पड़हा परिषद झारखंड, आदिवासी सरना प्रार्थना सभा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था.

हर प्रदेश के आदिवासी अपनी पहचान बनाये रखें : मध्यप्रदेश के गोंड आदिवासी समुदाय के गुलजार सिंह मरकाम ने कहा कि देश के सभी आदिवासियों को अलग धर्मकोड मिले, इसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं. अभी हमारी गिनती हिंदू धर्म के साथ जोड़ कर की जाती है.
हम चाहते हैं कि हर प्रदेश के आदिवासी अपनी क्षेत्रीय पहचान बनाये रखें. जिस तरह हिंदू समाज में कई जातियां उपजातियां हैं, उसी तरह सरना, गोंड, भील अौर अन्य आदिवासी जातियां अपनी अलग विशिष्टताअों को बनाये रखे अौर आदिवासी धर्म के रूप में उनकी पहचान बने. एक नाम पर सहमति बनेगी तो सरकार को भी झुकना होगा. हम राजनीतिक शक्ति के रूप में भी अपनी पहचान बनाना चाहते हैं.मध्यप्रदेश के संजय यादव ने कहा कि यह बड़ी बात है कि अब देश भर के आदिवासी एक मंच पर इकट्ठे हो रहे हैं. सिख अौर जैन समुदाय की संख्या हमसे काफी कम होते हुए भी उन्हें अलग धर्मकोड मिला हुआ है. आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
एक होकर अपनी आवाज उठानी होगी
देवकुमार धान ने कहा कि देश भर में आदिवासी लंबे समय से अलग-अलग नामों से धर्म कोड के लिए प्रयास कर रहे थे, जिसकी वजह से सफलता नहीं मिल पा रही थी. अंग्रेजों के समय में पहली जनगणना 1871 से लेकर अब तक आदिवासियों को अलग-अलग नामों से पुकारा गया. हमलोगों ने 14 राज्यों का दौरा किया अौर आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड के लिए एक नाम पर सहमति बनाने के लिए पहल की है. हमें एक होकर अपनी आवाज उठानी होगी.
एक धर्म कोड के बैनर तले आयें आदिवासी
शिक्षाविद अौर सामाजिक कार्यकर्ता डॉ करमा उरांव ने कहा कि अलग धर्मकोड आदिवासियों की पहचान, अस्तित्व की रक्षा व जीवन शैली के लिए जरूरी है.
सरना, भील, गोंड सहित अन्य आदिवासी समुदाय अपनी पहचान बनाये रखें लेकिन एक आदिवासी धर्मकोड के बैनर तले आयें. यह दुखद है कि लंबे समय से मांग के बाद भी सरकारों ने हमारी मांगों को नहीं माना है. पर अब देश के आदिवासी जाग चुके हैं. छत्रपति शाही मुंडा ने कहा कि 2021 की जनगणना में आदिवासी अपनी अलग पहचान से वंचित न रहें, इसलिए हम आदिवासियों के अलग धर्म कोड की लड़ाई लड़ रहे हैं. विभिन्न राज्यों के आदिवासियों के बीच अब धीरे-धीरे सहमति बन रही है.
गुजरात के भील समुदाय के लालू भाई बसावा ने महासम्मेलन के दौरान मोबाइल के जरिये संदेश दिया कि गुजरात के भील आदिवासी धर्म के नाम पर सहमत हैं. हम इस नाम के तहत अलग धर्म कोड की मांग का समर्थन करते हैं. महासम्मेलन को देवेंद्रनाथ चंपिया, रामेश्वर उरांव, नारायण उरांव, विनोद भगत सहित अन्य ने भी संबोधित किया.

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