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झारखंड आंदोलन के प्रणेता करमू महतो पंचतत्व में विलीन

रांची : अनगड़ा क्षेत्र से शिबू सोरेन के करीबी रहे आंदोलनकारी, झारखंड आंदोलन के प्रणेता एवं झामुमो नामकुम प्रखंड के उपाध्यक्ष मुकेश कुमार महतो के पिता करमू महतो का निधन बुधवार को हो गया. इनका अंतिम संस्कार गुरुवार को स्वर्ण रेखा घाट पर किया गया. शवयात्रा उनके आवास ग्राम मानकी ढीपा से निकली, जो टाटीसिलवे […]

रांची : अनगड़ा क्षेत्र से शिबू सोरेन के करीबी रहे आंदोलनकारी, झारखंड आंदोलन के प्रणेता एवं झामुमो नामकुम प्रखंड के उपाध्यक्ष मुकेश कुमार महतो के पिता करमू महतो का निधन बुधवार को हो गया.
इनका अंतिम संस्कार गुरुवार को स्वर्ण रेखा घाट पर किया गया. शवयात्रा उनके आवास ग्राम मानकी ढीपा से निकली, जो टाटीसिलवे स्थित पार्टी कार्यालय होते हुए स्वर्ण रेखा घाट पहुंची. अंतिम यात्रा में शामिल खिजरी विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी अंतु तिर्की ने कहा कि झारखंड राज्य का सपना पूरा करानेवाले एक वीर पुरुष का अंत हो गया. यह एक अपूरणीय क्षति है.
शवयात्रा में झारखंड आंदोलनकारी चिह्नितीकरण के सदस्य एवं आंदोलनकारी सुनील फकीरा, प्रेमचंद महतो, जमल मुंडा, महेंद्र कच्छप, अशोक महतो, मुश्ताक आलम, डॉ हेमलाल मेहता, राम शरण विश्वकर्मा, छोटे लाल महतो, रोशन कुमार, दिलीप ठाकुर, जावेद अख्तर, लखींद्र पाहन, रेजाउल्लाह अंसारी, फैयाज शाह, रिझुवा मुंडा, बिरिस मिंज, बजरंग लोहरा, महादेव मुंडा, डॉ बंशी प्रसाद, अमर महतो, जल धारा चौधरी, जगेश्वर महतो, मनोज भट्टाचार्य, मधु तिर्की, मधुसूदन मुंडा, चामु बेक, विंसेंट तिर्की, विश्वनाथ महतो, अशोक मिश्र, गोपाल महतो समेत कई लोग शामिल थे.
रांची : आदिवासी सरना महासभा द्वारा 20 दिसंबर को कोल विद्रोह (1831- 1832) की 187वीं जयंती मनायी गयी़ संगम गार्डेन, मोरहाबादी में आयोजित कार्यक्रम में पूर्व मंत्री सह महासभा के मुख्य संयोजक देवकुमार धान ने कहा कि कोल विद्रोह में जिन 22 जिलों का नाम आया है, वहां 2019 में पूरे साल प्रखंड व जिला स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा़
जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हर प्रखंड में आदिवासी सेना के एक-एक हजार सदस्य तैयार किये जायेंगे. हर प्रखंड में तीर-धनुष प्रतियोगिता आयोजित की जायेगी़ 20 दिसंबर 2019 को मोरहाबादी मैदान में इस तैयारी का प्रदर्शन किया जायेगा़
डॉ रामेश्वर उरांव, डॉ करमा उरांव, प्रो अनुज लुगुन, महादेव टोप्पो व अन्य ने कहा कि आदिवासियों ने अपनी भूमि व्यवस्था को क्षत-विक्षत होने से बचाने के लिए कई विद्राेह किये थे़ 1789 से 1820 के दौरान विभिन्न मुंडा विद्रोह ने इस बात को रेखांकित किया कि मुंडा जाति इस क्षेत्र में पुरानी भूमि व्यवस्था के विघटन का विरोध कर रही थी़
आदिवासियों में भयानक असंतोष पनप रहा था़ छोटानागपुर के राजा के छोटे भाई हरनाथ साही द्वारा आदिवासियों के कई गांवों के खेत बाहरी ठेकेदारों को देना 1831- 32 के कोल विद्रोह का तात्कालिक कारण बना़ उन्होंने कहा कि इस संघर्ष को बिंदराय मानकी, सिंगराय मानकी, बुधु भगत, सिंगराय मुंडा, सुई मुंडा, तोपा मुंडा, बैजनाथ मांझी, दसई मानकी, कटिक सरदार, मोहन मानकी व सागर मानकी सहित कई आदिवासी वीरों ने नेतृत्व दिया था़
इस विद्रोह के बार साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी का गठन किया गया और इस क्षेत्र को बंगाल के सामान्य कानूनों से अलग रखा गया़ यहां के प्रशासन के लिए रेगुलेशन भी पारित किया गया, जिसमें विल्किंसन रूल द्वारा सुझाये सरल नियम लागू किये गये़ कार्यक्रम में राम चंद्र मुर्मू, जुगल किशोर पिंगुवा, छुनकू मुंडा, नारायण उरांव, बुधवा उरांव सहित अन्य मौजूद थे़

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