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सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन का मामला: टीएसी की बैठक के बाद बोले सीएम, कृषि भूमि की प्रकृति बदलने का प्रस्ताव निरस्त

रांची: सीएनटी- एसपीटी एक्ट में सरकार के प्रस्तावित संशोधन के बीच सोमवार को ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) की बैठक हुई. प्रोजेक्ट भवन में आयोजित बैठक में आदिवासी की कृषि योग्य जमीन की प्रकृति बदलने का सरकार का प्रस्ताव छाया रहा. बैठक के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा, सीएनटी की धारा 21 व एसपीटी की […]

रांची: सीएनटी- एसपीटी एक्ट में सरकार के प्रस्तावित संशोधन के बीच सोमवार को ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) की बैठक हुई. प्रोजेक्ट भवन में आयोजित बैठक में आदिवासी की कृषि योग्य जमीन की प्रकृति बदलने का सरकार का प्रस्ताव छाया रहा. बैठक के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा, सीएनटी की धारा 21 व एसपीटी की धारा 13 में प्रस्तावित उस संशोधन को सरकार निरस्त करेगी, जिसमें कृषि भूमि की प्रकृति बदलने की बात कही गयी है.

उन्होंने कहा : सरकार ने अपनी भावना से ट्राइबल एजवाइजरी काउंसिल के सदस्यों को अवगत करा दिया है. टीएसी सदस्यों ने राज्यपाल की ओर से भेजी गयी आपत्तियों पर अध्ययन के लिए एक माह का समय मांगा है. इस कारण टीएसी की अगली बैठक तीन अगस्त को बुलायी गयी है. सरकार संशोधन बिल को लाने में किसी प्रकार की हड़बड़ी नहीं करने जा रही है. राज्यपाल की ओर से आपत्तियों के साथ संशोधन विधेयक लौटाये जाने के बाद मुख्यमंत्री पहली बार पत्रकारों से बात कर रहे थे.

कैबिनेट में होगा सत्र पर फैसला: यह पूछे जाने पर कि सीएनटी-एसपीटी संशोधन बिल को विधानसभा में कब पेश किया जायेगा, मुख्यमंत्री ने कहा : इस पर चार जुलाई को होनेवाली कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया जायेगा. सरकार मॉनसून सत्र की तिथि में फेरबदल कर सकती है या फिर इसके लिए विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता है.

मुख्यमंत्री ने कहा : टीएसी की अगली बैठक में सीएनटी की धारा 71 (ए) के उस प्रावधान पर चर्चा की जायेगी, जिसमें एसएआर कोर्ट को समाप्त करने की बात कही गयी है. साथ ही सीएनटी की धारा 49 के उस प्रावधान पर भी विमर्श किया जायेगा, जिसमें सरकारी प्रायोजन के लिए जमीन अधिग्रहण की बात कही गयी है.

सरकार ने सुझाव के बाद उठाया फैसला : मुख्यमंत्री ने कहा : सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक वापस होने के बाद सांसद, विधायक, भाजपा के आदिवासी नेता और विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक संगठनों से सुझाव लिया गया है. इनके सुझाव के बाद ही सरकार ने कृषि भूमि की प्रकृति बदलने के प्रस्ताव को निरस्त करने का फैसला लिया है. इनके सुझाव का सारांश था कि विकास विरोधी शक्तियों ने सीएनटी की धारा 21 व एसपीटी की धारा 13 को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है. सरकार की नीति व नियत साफ है. उन्होंने कहा, पिछली बार सरकार की ओर से संशोधन लाया गया था, तब विपक्ष ने गैर जिम्मेदाराना भूमिका निभायी. बिल पर बहस नहीं की गयी. अगर बिल पर बहस होती, तो हो सकता है, यह संशोधन पहले ही निरस्त हो जाता. लेकिन विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया.

अरबों खर्च, पर नहीं बदला आदिवासियों का जन जीवन : मुख्यमंत्री ने कहा : आजादी के बाद से आदिवासियों के कल्याण को लेकर सरकार अरबों रुपये खर्च कर चुकी है. लेकिन अब तक उनके जन-जीवन में सुधार नहीं हुआ है. सरकार की मंशा साफ है कि जनहित के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया जायेगा, जिससे आदिवासी का अहित हो. विरोध सुधार के लिए होना चाहिए.

टीएसी की बैठक में कौन-कौन थे मौजूद: मुख्यमंत्री रघुवर दास, मंत्री नीलकंठ सिंह, लुईस मरांडी, अमर बाउरी, विधायक मेनका सरदार, हरे कृष्ण सिंह, शिवशंकर उरांव, ताला मरांडी, विमला प्रधान, सुखदेव भगत, हेमलाल मुरमू, रतन तिर्की, जेबी तुबिद, सदस्य सचिव कल्याण विभाग की सचिव हिमानी पांडेय.

जो बैठक में नहीं आये : विधायक विकास सिंह मुंडा, गीता कोड़ा व चमरा लिंडा.

सरकार व राज्यपाल के बीच का मामला : यह पूछे जाने पर कि राज्यपाल ने एक माह पहले ही आपत्तियों के साथ संशोधन विधेयक लौटा दिया था, पर इसे गुप्त क्यों रखा गया, मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा, यह सरकार व राज्यपाल के बीच का मामला था.

टीएसी की अगली बैठक तीन अगस्त को होगी

क्यों : टीएसी के सदस्यों ने राज्यपाल की आपत्तियों का अध्ययन करने के लिए एक माह का समय मांगा है

क्या संभव : मुख्यमंत्री ने बताया, इस बैठक में एसएआर कोर्ट को समाप्त करने और सरकारी प्रायोजन के लिए जमीन अधिग्रहण करने के प्रस्ताव पर चर्चा होगीमॉनसून सत्र में फेरबदल कर सकती है सरकार

क्यों : तीन अगस्त को टीएसी की अगली बैठक है. इसके बाद सरकार संशोधन को विधानसभा में लायेगी

क्या संभव : मुख्यमंत्री ने कहा है कि सरकार संशोधन को विधानसभा में लाने के लिए विशेष सत्र भी बुला सकती है. ऐसी स्थिति में मॉनसून सत्र पहले हो सकता है. इसका फैसला चार जुलाई को होनेवाली कैबिनेट की बैठक में होगा.

सीएनटी का उल्लंघन करने वालों पर होगी कार्रवाई

मुख्यमंत्री ने कहा : सीएनटी-एसपीटी एक्ट का उल्लंघन करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. सरकार के संज्ञान में आने पर ठोस कदम उठाया जायेगा. इसे लेकर गठित एसआइटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इस रिपोर्ट का अध्ययन राजस्व विभाग कर रहा है. इसके बाद आगे की कार्रवाई की जायेगी.

कर्ज नहीं चुकानेवाले आदिवासी की जमीन की नीलामी उन्हीं के बीच हो

रांची. झारखंड सरकार जल्द ही राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र भेज कर इस बात की सहमति लेगी कि बैंकों का कर्ज नहीं चुका पानेवाले आदिवासी कर्जदारों की जमीन की नीलामी आदिवासियों के बीच हो. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बताया, इस मुद्दे को लेकर मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गयी थी. कमेटी ने इसकी अनुशंसा की है. लेकिन एक मामले में त्रिपुरा हाइकोर्ट ने कर्ज नहीं चुका पानेवाले आदिवासी कर्जदारों की भूमि की नीलामी आम लोगों के बीच करने का फैसला सुनाया है. इसे लेकर भ्रम की स्थिति बन गयी है. इसके लिए अलग से प्रावधान करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, झारखंड में एससी, एसटी समुदाय के स्टूडेंट्स ने विभिन्न बैंकों से लगभग 68 करोड़ रुपये शिक्षा लोन के रूप में लिये हैं. सरकार सात लाख रुपये एजुकेशन लोन दे रही है. आदिवासियों को लोन देने के लिए सरकार की ओर से 50 करोड़ रुपये के बजट का उपबंध किया गया है.

चमरा लिंडा नेदियाइस्तीफा

झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने टीएसी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. बताया कि पार्टी के निर्देश पर उन्होंने इस्तीफा दिया है. टीएसी की बैठक में भी वह शामिल नहीं हुए थे. पार्टी ने उन्हें मना िकया था. इससे पहले झामुमो विधायक दीपक बिरुआ व जोबा मांझी भी टीएसी से इस्तीफा दे चुके हैं. टीएसी में अब झामुमो का कोई भी विधायक शामिल नहीं है.

विकास का इस्तीफा स्वीकार नहीं

सीएम ने कहा : आजसू विधायक विकास सिंह मुंडा का टीएसी सदस्य के पद से दिया गया इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है.

राजभवन की आपत्तियों पर सरकार के जवाब

एक्ट में संशोधन के लिए भेजे गये विधेयक को राजभवन ने विभिन्न संगठनों से प्राप्त आपत्तियों के साथ सरकार को लौटा दिया था. इस पर विचार करने और विधानसभा में फिर से चर्चा कराने का सुझाव दिया था. राजभवन को विभिन्न संगठनों ने आवेदन देकर मुख्यत: नौ प्रकार की आपत्तियां की थी. सरकार ने एक-एक अापत्तियों का जवाब बना कर टीएसी की बैठक में सदस्यों के समक्ष रखा.

राजभवन के सवाल और सरकार के जवाब

1 संशोधन विधेयक के उपस्थापन की वांछनीयता, लक्ष्य और उद्देश्य स्पष्ट नहीं है.

संशोधन की वांछनीयता, लक्ष्य और उद्देश्य स्पष्ट है, फिर भी इसे और स्पष्ट किया जा रहा है. कृषि भूमि पर रैयतों को कृषि के अलावा अन्य कार्य करने का अधिकार नहीं है. वे गैर कृषि कार्य यथा संरचना निर्माण नहीं कर सकते हैं. इस कारण उन्हें काफी नुकसान होता है. संशोधन से रोजगार के नये अवसर उत्पन्न होंगे.

2 कल्याणकारी परियोजनाओं के लिए भू-स्थानांतरण के संशोधन का प्रस्ताव केवल सीएनटी में है, एसपीटी में प्रस्तावित नहीं है.यह प्रत्यक्षत: विसंगति है.

सीएनटी की धारा 49 की तर्ज पर एसपीटी एक्ट 1949 में संशोधन संभव नहीं है.

3 सीएनटी की धारा 71 ए की भांति एसपीटी की धारा 20(5) में संशोधन का प्रस्ताव नहीं है.

एसपीटी की धारा 20 से आच्छादित बसौड़ी भूमि के अलावा अन्य जमीन की खरीद-बिक्री प्रतिबंधित है. संताल-परगना में कृषि योग्य भूमि का दखल-कब्जा धारा 42 में वापस करने का प्रावधान है तथा धारा 20(5) में भी भूमि वापसी का प्रावधान होने के कारण भू-वापसी के नगण्य मामले उपस्थित रहते हैं.

क्या है संगठनों की आपत्तियां और क्या है सरकार का जवाब

आपत्ति संख्या 01. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन सुरक्षित कृषि योग्य भूमि, गैर कृषि योग्य भूमि होते ही असुरक्षित हो जायेगी. संविधान के अनुच्छेद 31 (ख) के प्रावधान के अनुसार विधानमंडल की नौवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषय को निरसित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है.

सरकार का जवाब : सीएनटी एक्ट 1908, एसपीटी एक्ट 1949 की सुसंगत धाराओं में संशोधन के लिए तैयार विधेयक पर विधि विभाग की सहमति प्राप्त की गयी है. विधि विभाग ने विधेयक में किसी प्रकार की असंवैधानिकता का उल्लेख नहीं किया है.

आपत्ति संख्या 02. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन से एक्ट की मूल भावना प्रभावित हुई है, क्योंकि कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यों के लिए छूट दी गयी है. कृषि भूमि संरक्षित रहे यह एक्ट की आत्मा है. इसमें छेड़छाड़ करने की छूट संविधान नहीं देता है.

सरकार का जवाब : सीएनटी की धारा 21 और एसपीटी की धारा 13 के प्रावधानों के तहत रैयतों को जमीन पर कृषि कार्य का अधिकार प्राप्त है. परंतु उक्त भूमि का गैर कृषि उपयोग करने पर रैयत से गैर कृषि लगान वसूलने का प्रावधान देश के अधिकतर राज्यों में पहले से है. बिहार से अलग होने के बाद झारखंड राज्य बना और बिहार में कृषि भूमि (गैर कृषि उपयोग के लिए परिवर्तित) अधिनियम 2010 की धारा 4(1) के समान झारखंड राज्य में सीएनटी व एसपीटी एक्ट की धारा 21 और 13 में भी भूमि का गैर कृषि उपयोग करने पर अधिकतम एक प्रतिशत का लगान निर्धारित करने से संबंधित संशोधन प्रस्तावित है. रैयतों को कानूनी उलझन से बचाने व उनके तीव्र विकास और रोजगार का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से यह संशोधन प्रस्तावित है. प्रकृति बदलने से रैयत का मालिकाना हक नहीं बदलेगा, वह सुरक्षित रहेगा.

आपत्ति संख्या 03. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन कर एसटी, एससी, ओबीसी की जमीन भारी मात्रा में उद्योगों को उपलब्ध कराने की सरकार की मंशा है. संशोधन से बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होगी. एसटी, एससी, ओबीसी व गरीबों की जमीन जबरन छीन ली जायेगी. सीएनटी-एसपीटी एक्ट के लागू रहने के दौरान 30 लाख जनजाति विस्थापित हो चुके हैं. उच्च न्यायालय के निर्णय व राष्ट्रपति द्वारा गठित यूएन ढेबर कमीशन के प्रतिवेदन का अवलोकन किये बिना संशोधन किया जा रहा है, इससे आदिवासी झारखंडी मूल रैयतों का मालिकाना हक अपनी जमीन से समाप्त हो जायेगा.

सरकार का जवाब : प्रस्तावित संशोधन के उपरांत रैयतों का हित संरक्षण और मजबूती से हो सकेगा. उन्हें अनावश्यक कानूनी उलझनों से बचाया जा सकेगा. उनके स्वनियोजन और आर्थिक सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा. रैयत का हित और स्वामित्व प्रभावित नहीं होगा. जमीन पर मालिकाना हक बना रहेगा. उनकी जमीन कोई नहीं छीन सकेगा.

आपत्ति संख्या 04. महाराष्ट्र सरकार द्वारा लैंड रेवन्यू कोड की धारा 36(ए) को संशोधित कर यह स्पष्ट किया गया है कि एसटी की भूमि ग्राम सभा की सहमति के बिना कलेक्टर द्वारा गैर एसटी को नहीं दी जा सकती है.

सरकार का जवाब : सीएनटी एक्ट की धारा 49 में रैयतों की सहमति के बाद ही उद्योगों के लिए जमीन हस्तांतरित करने का प्रावधान है. प्रस्तावित संशोधन में यह प्रावधान किया गया है कि हस्तांतरण के बाद पांच साल तक जमीन का इस्तेमाल नहीं करने पर जमीन रैयत को वापस हो जायेगी और मुआवजे का रकम भी रैयत से वापस नहीं ली जायेगी.

आपत्ति संख्या 05. सीएनटी-एसपीटी एक्ट आदिवासियों के जल, जंगल जमीन की सुरक्षा से जुड़ी है. इसका उल्लंघन कर एक्ट में संशोधन किया जा रहा है. संविधान के अनुच्छेद 31 बी के तहत सीएनटी-एसपीटी एक्ट को नौवीं अनुसूची में संरक्षित किया गया है. इसका उल्लंघन कर संशोधन किया जा रहा है.

सरकार का जवाब : अनुसूचित जनजाति के कल्याण एवं भूमि की रक्षा के लिए भारतीय संविधान की अनुसूची पांच के तहत जनजातीय परामर्शदातृ परिषद को फैसला करने का अधिकार है. प्रस्तावित संशोधन प्रस्ताव पर जनजातीय परामर्शदातृ परिषद का अनुमोदन प्राप्त है.

आपत्ति संख्या 06 : संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल को प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए संशोधन प्रस्ताव पर रोक लगाया जाये.

सरकार का जवाब : कोई टिप्पणी नहीं

आपत्ति संख्या 07 : सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन कर कृषि भूमि को गैर कृषि कार्य के लिए छूट देना एक्ट की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ है. पेसा अधिनियम 1966 के तहत यह संशोधन अनुकूल नहीं है.

सरकार का जवाब : सीएनटी के तहत पेसा एवं ग्राम सभा अधिकारों के संबंध में महाधिवक्ता की राय मांगी गयी. सीएनटी के प्रावधानों में पेसा व ग्राम सभा की कोई भूमिका नहीं होने की राय उन्होंने दी है.

आपत्ति संख्या 08 : विधानसभा में बिना बहस किये बिल पास कराया गया जो असंवैधानिक है.

सरकार का जवाब : विधानसभा से संबंधित विधेयक विधिवत पारित किया गया है.

आपत्ति संख्या नौ में स्थानीयता पर सवाल था. इसके जवाब में सरकार ने कहा है कि यह मामला सीएनटी-एसपीटी से संबंधित नहीं है.

इन प्रमुख लोगों ने दर्ज करायी थी आपत्तियां

नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत, रामेश्वर उरांव, दयामनी बारला, झारखंड आदिवासी संघर्ष मोर्चा, डॉ करमा उरांव, राम चंद्र साहिस, बागुन सुब्रइ, रानी मरांडी, भुवनेश्वर केवट, मुमताज अहमद खान, विकास कुमार मुंडा, देवकुमार धान, सालखन मुर्मू, सूर्य सिंह बेसरा, प्रेमचंद मुर्मू, सोमा सिंह मुंडा, टाना भगत समुदाय,

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