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Friday, March 29, 2024

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रांची : डॉन अखिलेश को हाइकोर्ट ने अंतिम सांस तक जेल में सजा काटने का फैसला सुनाया

रांची : घाघीडीह सेंट्रल जेल, जमशेदपुर के जेलर उमाशंकर पांडेय की हत्याकांड में सजायाफ्ता जमशेदपुर के डॉन अखिलेश सिंह को राहत नहीं मिल पायी. हाइकोर्ट ने उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए जीवन की अंतिम सांस तक जेल में सजा काटने का फैसला सुनाया. साथ ही सरकार को अखिलेश सिंह को किसी प्रकार का […]

रांची : घाघीडीह सेंट्रल जेल, जमशेदपुर के जेलर उमाशंकर पांडेय की हत्याकांड में सजायाफ्ता जमशेदपुर के डॉन अखिलेश सिंह को राहत नहीं मिल पायी. हाइकोर्ट ने उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए जीवन की अंतिम सांस तक जेल में सजा काटने का फैसला सुनाया.
साथ ही सरकार को अखिलेश सिंह को किसी प्रकार का रिमिशन नहीं देने का निर्देश दिया. निचली अदालत में सुनवाई के दाैरान होस्टाइल गवाह पर कार्रवाई के लिए मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया. अखिलेश सिंह की अोर से दायर क्रिमिनल अपील याचिका को खारिज कर दिया.
जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने उक्त फैसला सुनाया. पूर्व में खंडपीठ ने सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. राज्य सरकार की अोर से अधिवक्ता पंकज कुमार ने प्रार्थी की दलील का विरोध किया था. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी अखिलेश सिंह ने क्रिमिनल अपील याचिका दायर कर जमशेदपुर की निचली अदालत के उम्रकैद संबंधी फैसले को चुनाैती दी थी.
निचली अदालत ने जेलर उमाशंकर पांडेय की हत्या मामले में दोषी पाने के बाद तीन जनवरी 2006 को उम्रकैद की सजा सुनायी थी. इस मामले में अखिलेश सिंह को हाइकोर्ट से जमानत मिली थी. उपेंद्र सिंह व अमित सिंह की हत्या के बाद हाइकोर्ट ने अखिलेश सिंह की जमानत को रद्द कर दिया था.
तपोवन मंदिर का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के आदेश को किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के आदेश को किया खारिज
जमीन विवाद की सीबीआइ जांच का आदेश निरस्त
रांची : राजधानी रांची स्थित श्रीश्री राम जानकी जी स्थान (तपोवन मंदिर की जमीन) की खरीद-बिक्री की जांच अब सीबीआइ नहीं करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाइकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसके तहत सीबीआइ जांच का निर्देश दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य में पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में होनेवाले अपराध की जांच करे. हाइकोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी मामले में सीबीआइ को जांच का आदेश दे सकता है, लेकिन अपराध की प्रवृति व जटिलताओं की जांच किये बगैर हाइकोर्ट को अपने इस अधिकार का प्रयोग रूटीन मामले में नहीं करना चाहिए.
श्रीश्री राम जानकी जी स्थान तपोवन मंदिर ट्रस्ट की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई के बाद जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश दिया. अदालत ने कहा कि यह मामला ट्रस्टी के अधिकार और उसके द्वारा धार्मिक ट्रस्ट या देवी-देवता की संपत्ति की खरीद-बिक्री से जुड़ा है. यह सिविल विवाद का मामला है.
लगता है कि सीबीआइ जांच का आदेश करते समय हाइकोर्ट खुद गलत रास्ते में भटक गया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि हाइकोर्ट का यह कहना कि देवी-देवता की जमीन का हस्तांतरण किसी हालत में नहीं किया जा सकता है, सही नहीं है.
आदेश करते समय हाइकोर्ट भटक गया : सुप्रीम कोर्ट
हाइकोर्ट ने दिया था आदेश
झारखंड हाइकोर्ट ने सात जून, 2017 को तपोवन मंदिर की जमीन की खरीद-बिक्री की जांच का आदेश सीबीआइ को दिया था. सीबीआइ को छह माह के अंदर जांच प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था.
हाइकोर्ट के इस फैसले को श्रीश्री राम जानकी जी स्थान तपोवन मंदिर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी. सितंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश पर रोक लगा दी थी. इसके बाद से इस मामले में सुनवाई चल रही थी.
क्या है मामला : हाइकोर्ट में अतीश कुमार सिंह ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि तपोवन मंदिर जहां स्थित है, वह जमीन भगवान राम के नाम पर निबंधित पट्टा के माध्यम से वर्ष 1948 में खरीदी गयी है. जमीन तपोवन मंदिर ट्रस्ट के नाम पर नहीं है, इसलिए उसे बेचने या फ्लैट बनाने के लिए बिल्डर को देने का अधिकार नहीं है.
याचिका में इस मामले की सीबीआइ जांच कराने और संलिप्त लोगों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया गया था. इधर, मंदिर ट्रस्ट का कहना था कि जमीन मंदिर ट्रस्ट की है. वर्ष 1987 में नया डीड बना था. इसमें प्रावधान किया गया है कि राज्य हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड की अनुमति और कोर्ट के आदेश से जमीन बेची जा सकती है. इससे होनेवाली आय ट्रस्ट के पास जमा होगी. ऐसा करने के लिए न्यास बोर्ड और सक्षम कोर्ट से अनुमति ली गयी है.
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