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प्रभात खबर से बोले गुरु जी, झारखंडियों की हालत देख कर दु:ख होता है

आनंद मोहन शिबू सोरेन 75 वर्ष के हो गये़ झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा और राजनीति की धुरी हैं गुरु जी़ उम्र ढल रही है, लेकिन झारखंडी संवेदना और हालात को लेकर वह सचेत है़ं वह डिजिटल इंडिया के इस बदलते दौर में भी खेती-किसानी से सरोकार रखते हुए आगे बढ़ने की बात करते है़ं […]

आनंद मोहन
शिबू सोरेन 75 वर्ष के हो गये़ झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा और राजनीति की धुरी हैं गुरु जी़ उम्र ढल रही है, लेकिन झारखंडी संवेदना और हालात को लेकर वह सचेत है़ं वह डिजिटल इंडिया के इस बदलते दौर में भी खेती-किसानी से सरोकार रखते हुए आगे बढ़ने की बात करते है़ं झारखंड के विकास का इनका फॉर्मूला खेत-खलिहान, पहाड़ों और नदियों के संरक्षण से ही निकलता है़
वह कुरीतियों को दूर कर सामाजिक बदलाव के पैरोकार है़ं शिबू हर दिन सुबह पांच बजे उठ जाते है़ं ठंड है, तो बाहर नहीं निकलते़ घर के अंदर ही योगाभ्यास करते है़ं फिर खेतों में लगी सब्जियों और फसलों की चिंता के साथ बाहर निकलते है़ं राजनीति पर भी निगाहें रहती है़
प्रभात खबर ने उनके जन्मदिन पर विशेष बातचीत की़ आंदोलन के पुराने दिनों पर चर्चा की. झारखंड राज्य के संघर्षों के विभिन्न पहलुओं को टटोला. पिछले 18 वर्षों में झारखंड के हालात व वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर चर्चा हुई़ शिबू सोरेन ने भी लंबे अरसे बाद बेबाक हो कर अपनी बातें रखी़ं अपनी चिंता बतायी़
रांची : झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन कहते हैं कि जब झारखंड अलग हुआ, तो हम खुश थे़ मेरी तरह पूरा झारखंड खुश था़ लग रहा था कि झारखंडियों के दिन बदलेंगे़ आदिवासी- मूलवासी खुशहाल होंगे़, लेकिन अलग राज्य का सुख भूल गया. अब तो झारखंडियों का हाल देख कर ज्यादा दुख होता है़ जिसके लिए लड़ा, उनको कुछ हासिल नहीं हुआ़
आज भी जंगल में रहनेवालों की स्थिति नहीं सुधरी़ झारखंड के मजदूर बाहर भेजे जाते है़ं इनके पास खेत है, लेकिन पानी नहीं है़ बेबाक शिबू बोलते हैं: मुख्यमंत्री को अफसर लोग फाइल में उलझा कर रखते है़ं सुबह नाश्ता करके अफसर सचिवालय आ जाते हैं, फिर दिन भर फाइल बनाते रहते है़ं
ये फाइल से झारखंड नहीं सुधरनेवाला़ अफसरों को जंगल में भेजना होगा़ दो-चार गांव हर महीने पैदल घूमे़ं स्कूलों में जा कर देखे कि मास्टर है कि नही़ं मास्टर है, तो पढ़ने वाला है कि नही़ं अस्पताल में दवा है कि नही़ं, लेकिन यह सब झारखंड में नहीं हो रहा है़ आदिवासी-मूलवासी के गांव में अफसर-मंत्री को रात- दिन गुजारना होगा़ इनका दर्द समझना होगा़ हम भी सीएम थे, तो दिन भर फाइल में साइन कराता था़
अभी भी मुख्यमंत्री से सुबह से शाम तक फाइल साइन करा रहा है़ मीटिंग कराता है़ शिबू कहते हैं : झारखंडियों के लिए कानून बनना चाहिए़ केंद्र सरकार काे विशेष मदद करना होगा़ हम चुप नहीं बैठेंगे, झारखंडियों की चिंता करनी होगी़ यहां के आदिवासियों को शिक्षित करना होगा़ वह भावुक बात भी करते है़ं शिबू कहते हैं: आंदोलन के दिनों के हमारे साथी लोग झारखंड के लिए जान देने के लिए तैयार थे़ बहुत बलिदान हुआ है़ कई लोग मुझसे पहले चले गये़ एक दिन मैं भी चला जाऊंगा़ यह आने-जाने की धरती है़, लेकिन झारखंड की चिंता तो करनी होगी़ हमेें आनेवाले लोगों को तैयार करना होगा़ वह कहते हैं : सरकार नियम-कानून बनाती है़ लोगों को भी आगे आना होगा़
सरकार नहीं समझ रही यहां के लाेगों का दर्द : सरकार झारखंडियों का दर्द नहीं समझ रही है़ बड़ी-बड़ी बात हो रही है़ केवल योजना बन रही है़
गांव के लिए योजनाएं बनानी होगी खनिज-खदान से कुछ नहीं होने वाला़ खेती पर जोर देना होगा़ झारखंडी लोगों को भी बदलना होगा़ मजदूरी कर लेंगे, लेकिन खेती नहीं करेंगे़ खनिज-खदान से यहां के लोग केवल उजड़े है़ं धनबाद में सौ साल पहले से कोयला निकल रहा है़ आगे भी सौ साल तक निकलता रहेगा़ कोयला निकालते-निकालते गिरिडीह, धनबाद, बोकारो सब उजड़ गया़ यहां के लोगों को कुछ नहीं मिला है़ खेती बारी भी कम है़ कंपनी के लोग कोयला निकालें, लेकिन गरीब की भी चिंता करे़ं यूरेनियम, अबरख, लोहा, तांबा की सबने चिंता की़ गरीब छूट गया़
अगला चुनाव लड़ेंगे : झामुमो सुप्रीमो ने कहा कि वह अगला चुनाव लड़ेंगे़ जनता को नहीं छोड़ सकते है़ं यही खेती है़ चुनाव कैसे छोड़ सकते है़ं मेरे साथ जनता है़
हम जनता को मायूस नहीं कर सकते है़ं चुनाव में पूरा झारखंड घूमेंगे़ केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार धंसेगी़ भाजपा की सरकार ने झारखंड के लोगों को कुछ नहीं दिया़ नौकरी भी बाहर के लोगों को दिया गया़ भाजपा मेरे लिए कोई चुनौती नहीं है़ हमने अपनी राजनीति में बहुत कुछ देखा है़ बहुत कुछ सहे है़ं शिबू सोरेन ने बहुत संघर्ष किया है़ झारखंड की जनता ने हमेशा मेरा साथ दिया है़
…हाथ में चेंज पैसा थमा दिया : शिबू सोरेन का गांव-देहात से जुड़ाव रहा है़ बातचीत में वह कहते हैं : एक बार चुनावी दौरे में वह संताल परगना गये़ सभा के बाद एक महिला आयी़ उसने अपने हाथ को आगे बढ़ा कर मेरी हथेली में कुछ रख दिया़ वह 10-15 रुपये चेंज पैसा देकर गयी़
इसी तरह फिर तीन-चार महिलाएं आयी, उसने भी पैसा दिया़ उनको लगा कि मैं उनके गांव आ तो गया हूं, लेकिन जाऊंगा कैसे़ आंदोलन के दिनों में भी लोग मुझे लौटने का भाड़ा देते थे़ उन महिलाओं को लगा कि गुरुजी को लौटने के पैसे की जरूरत होगी़ शिबू कहते हैं : वे नहीं जानती थीं कि मैं वहां हेलीकॉप्टर से आया हू़ं पुराने दिनों की ही याद थी़ उनकी श्रद्धा है, मैं लौटा भी नहीं सकता़
भात कम, मांड़ ज्यादा पीओ : शिबू सोरेन कहते हैं कि आंदोलन के दिनों खाने-पीने का भी संकट रहता था़ भर पेट भोजन मुश्किल था़ गांव में लोगों के घर खाता था़ लोग खुद गरीब थे, क्या खिलाते़ कम्युनिस्ट के नेता एके राय पढ़े लिखे थे़ मजदूर के नेता थे़ वे हमें कहा करते थे कि मांड़ ज्यादा पीजिए, भात कम खाना पड़ेगा़ हम मांड़ पीते थे़ जंगल-जंगल घूमते थे़ गोलियों से डर नहीं लगता था़
ब्राह्मण भी गरीब पैदा हो सकता है
सवर्णों के आरक्षण के मुद्दे पर शिबू ने कहा : मैं भी अखबार में पढ़ रहा हूं, उंची जाति को आरक्षण दिया है़ ब्राह्मण भी गरीब पैदा हाे सकता है़ ठीक हो रहा है़ गरीबों को आरक्षण दिया है़

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