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श्रमिकों को न्यूनतम वेतन की सौगात दे सकती है नरेंद्र मोदी सरकार, जानें क्या है खास

मिथिलेश झा रांची : कामगारों को नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की केंद्र सरकार से बड़ी खुशखबरी मिल सकती है. सरकार वेतन (Salary) विसंगतियों को दूर करने का प्रयास कर रही है. इसके तहत देशभर के श्रमिकों (Labour) के लिए समान न्यूनतम वेतन (Minimum Wage) कानून बनेगा. इसे ‘वेतन संहिता विधेयक (Code on Wages Bill) 2019’ […]

मिथिलेश झा

रांची : कामगारों को नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की केंद्र सरकार से बड़ी खुशखबरी मिल सकती है. सरकार वेतन (Salary) विसंगतियों को दूर करने का प्रयास कर रही है. इसके तहत देशभर के श्रमिकों (Labour) के लिए समान न्यूनतम वेतन (Minimum Wage) कानून बनेगा. इसे ‘वेतन संहिता विधेयक (Code on Wages Bill) 2019’ नाम दिया गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस बिल को अपनी मंजूरी दे दी है. हालांकि, अभी संसद (Parliament) से इस बिल (Bill) का पास होना बाकी है. एक बार यह बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो जाये, तो देशभर के श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा.

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पिछले दो दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार शानदार रहने के बावजूद समान न्यूनतम वेतनमान (Minimum Wages) नहीं होने की वजह से समावेशी विकास (Inclusive Growth) का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका. इसलिए सरकार प्रभावी न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) कानून बनाने जा रही है. सरकार का मानना है कि इससे मिडिल क्लास को मजबूती मिलेगी और समावेशी विकास को बल मिलेगा. सो, सरकार राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम वेतनमान (Minimum Wages) तय करेगी. किसी भी राज्य में उससे कम वेतनमान नहीं होगा. राज्य चाहें, तो उससे ज्यादा पारिश्रमिक देने के लिए स्वतंत्र होंगे.

भारत का वर्तमान न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) कानून बेहद पेचीदा है. इस समय अलग-अलग राज्यों में 1,915 तरह से न्यूनतम वेतनमान (काम की श्रेणी के अनुसार, जिसमें अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल कामगार शामिल हैं) को परिभाषित किया गया है. बावजूद इसके मिनिमम वेजेज एक्ट, 1948 (Minimum Wages Act 1948) में सभी प्रकार के कामगारों को समाहित नहीं किया जा सका है. आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 (Economic Survey 2018-19) बताता है कि भारत में हर तीसरा व्यक्ति न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) कानून के दायरे से बाहर है. यानी उसे इसका लाभ नहीं मिलता. इसलिए देशभर में पारिश्रमिक को तर्कसंगत बनाने के लिए श्रम कानून (Labour Law) में संशोधन की जरूरत महसूस की गयी है.

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सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तय किया है कि ‘वेतन संहिता विधेयक 2019’ (Wages Code Bill 2019) के जरिये देश भर के कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन (Minimum Wages) सुनिश्चित की जाये. सरकार की योजना पुराने कई श्रम कानूनों को सरल करके उनकी जगह सिर्फ चार कानून बनाने की है. इसमें यह पहला कानून होगा. श्रम सुधारों की दिशा में इस विधेयक को मील का पत्थर माना जा सकता है. विधेयक में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार रेलवे और खनन समेत कुछ क्षेत्रों के लिए न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wages) तय करेगी, जबकि राज्य सरकार अन्य श्रेणी के रोजगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे.

पांच साल में श्रम कानून में होगा संशोधन

‘न्यूनतम वेतन संहिता 2019’ के पास हो जाने के बाद कुछ विशेष सेक्टर के सभी लोगों को न्यूनतम वेतन का लाभ मिलेगा. न्यूनतम मजदूरी में हर पांच साल में संशोधित किया जायेगा. वेतन संहिता विधेयक में कर्मचारियों के पारिश्रमिक से जुड़े मौजूदा सभी कानूनों को एक साथ करने और केंद्र सरकार को पूरे देश के लिए एक समान न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार देने का प्रावधान किया गया है.

निवेश आकर्षित करने के लिए श्रम सुधार

देश में कारोबार सुगमता बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने के लिए श्रम क्षेत्र में चार संहिता का सरकार ने प्रस्ताव किया है, जो मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा और कल्याण तथा औद्योगिक संबंधों से जुड़ी होंगी. मजदूरी संहिता उनमें से एक है. मजदूरी संहिता मजदूरी भुगतान कानून, 1936, न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक कानून 1976 का स्थान लेगा.

भारत के न्यूनतम वेतनमान की व्यवस्था को समझें

‘आर्थिक सर्वेक्षण 2019’ के 11वें अध्याय में न्यूनतम वेतन व्यवस्था का विस्तार से जिक्र है. इसमें कहा गया है कि भारत में न्यूनतम पारिश्रमिक बहस का मुद्दा रहा है. विकासशील देशों में भारत पहला देश था, जिसने वर्ष 1948 में मिनिमम वेजेज एक्ट को लागू किया. यह कानून स्थायी और अस्थायी दोनों श्रमिकों के हितों की रक्षा करता है. केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतनमान तय करती हैं. ये वेतनमान पेशे, काम की प्रकृति और स्थान के हिसाब से तय होते हैं. हालांकि, यह कानून न्यूनतम वेतनमान तय करने के नियमों का विवरण नहीं देता.

70 साल में पेचीदा हुई न्यूनतम वेतनमान की परिभाषा

आजादी के 70 सालों में न्यूनतम वेतनमान कानून का इतना विस्तार हो गया कि इसे समझना बेहद क्लिष्ट हो गया है. पहली समस्या इस कानून के कवरेज को लेकर है. आज भारत में करीब 425 तरह के नियोजित रोजगार हैं, तो अकुशल श्रमिकों के लिए 1,915 श्रेणियां हैं. रोजगार की इतनी श्रेणियां बन गयी हैं कि एक ही राज्य में किस तरह के काम के लिए कितना पारिश्रमिक तय किया गया है, बताना मुश्किल हो गया है.

नगालैंड में सबसे कम, तो दिल्ली में सबसे ज्यादा वेतनमान

देश के अलग-अलग भागों में न्यूनतम मजदूरी की दरें अलग-अलग हैं. इसी तरह काम की श्रेणियां भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं. मणिपुर में नियोजित रोजगार की संख्या 3, तो असम में 102 है. न्यूनतम वेतनमान की बात करें, तो नगालैंड में श्रमिकों को सबसे कम प्रतिदिन 115 रुपये मिलते हैं, तो दिल्ली में यह रकम सबसे ज्यादा 538 रुपये है. न्यूनतम और अधिकतम वेतनमान के अंतर में भी राज्यों के बीच भारी अंतर है. नगालैंड में यह अंतर मात्र 16 रुपये है, तो केरल में 905 रुपये.

कैसे तय हो न्यूनतम वेतनमान?

वर्ष 1957 में इंडियन लेबर कॉन्फ्रेंस (आइएलसी) ने सलाह दी कि घर की जरूरत के हिसाब से न्यूनतम वेतनमान तय होना चाहिए.

वर्ष 1988 में श्रम मंत्रियों के सम्मेलन में न्यूनतम वेतन को लिविंग इंडेक्स से जोड़ने की अनुशंसा की गयी, जिसे वर्ष 1991 में अनिवार्य कर दिया गया.

वर्ष 1992 में भारत की सर्वोच्च अदालत ने भी कहा कि न्यूनतम वेतनमान तय करते समय बच्चों की शिक्षा, परिवार की स्वास्थ्य जरूरतों आदि का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.

भारत में राष्ट्रीय न्यूनतम वेतनमान

1969 में पहली बार लेबर कमीशन की स्थापना की गयी. इस कमीशन ने कहा कि देश में राष्ट्रीय न्यूनतम वेतमान लागू करना न तो संभव है, न ही इसकी जरूरत है.

1978 में सरकार ने भूतलिंगम कमेटी की स्थापना की. कमेटी ने सभी कामगारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समान न्यूनतम वेतनमान लागू करने की बात कही. यह भी कहा कि इसमें सभी वर्गों को शामिल किया जाये और सभी राज्यों में अलग-अलग पेशे के लोगों के लिए न्यूनतम वेतन समान होना चाहिए. ये अनुशंसाएं मूल रूप से संगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए थी. भूतलिंगम कमेटी ने अपनी अनुशंसा में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और कृषि श्रमिकों का कोई जिक्र नहीं किया.

1991 में ग्रामीण श्रमिकों पर राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गयी. आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम वेतन की अनुशंसा की, ताकि राज्यों में व्याप्त असमानता को खत्म किया जा सके.

1999 में केंद्र सरकार ने नॉन-स्टैट्यूटरी नेशनल फ्लोर लेवल मिनिमम वेजेज लागू किया. इसके तहत प्रतिदिन 35 रुपये न्यूनतम मजदूरी तय की गयी. महंगाई के आधार पर इस न्यूनतम वेतनमान को समय-समय पर संशोधित किया जाता है. एक जून, 2017 से राष्ट्रीय न्यूनतम वेतनमान 176 रुपये प्रतिदिन तय कर दिया गया.

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