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Friday, March 29, 2024

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कुपोषण मुक्ति की दिशा में पोषण पखवाड़ा आज से

ज्योति कांत आठ मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझनू में प्रधानमंत्री ने की थी अभियान की शुरुआत भारत सरकार द्वारा नाटापन, दुबलापन एवं कुपोषण की दर में कमी लाने तथा गर्भवती एवं धात्री महिलाओं व 0-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के पोषण स्तर में सुधार के लिए पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) शुरू किया […]

ज्योति कांत
आठ मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझनू में प्रधानमंत्री ने की थी अभियान की शुरुआत
भारत सरकार द्वारा नाटापन, दुबलापन एवं कुपोषण की दर में कमी लाने तथा गर्भवती एवं धात्री महिलाओं व 0-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के पोषण स्तर में सुधार के लिए पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) शुरू किया गया है. यह अभियान झारखंड के 24 जिलों के सभी 38432 आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये संचालित हो रहा है. पोषण अभियान की पहली वर्षगांठ के अवसर पर आठ से 22 मार्च तक विभिन्न विभागों के समन्वय व सहभागिता से पोषण पखवाड़ा का आयोजन होगा.
उल्लेखनीय है कि पोषण अभियान की शुरुआत अाठ मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझनू में प्रधानमंत्री ने की थी. इस अभियान का मकसद तकनीक व समावेशन के जरिये कुपोषण, रक्त हीनता व बच्चों में कम वजन की समस्या दूर करना है. साथ ही किशोरी बालिकाओं तथा गर्भवती व धात्री महिलाओं पर फोकस करते हुए उनमें कुपोषण मुक्ति के लिए सामूहिक प्रयास किया जाना है. अभियान के तहत अगले कुछ वर्षों के लिए कुछ खास लक्ष्य भी तय किये गये हैं.
पोषण पखवाड़ा के दौरान समाज कल्याण निदेशालय नुक्कड़ नाटक, लोक गीत, पोषण मेला, गांवों में स्वास्थ्य, स्वच्छता व पोषण दिवस, साइकिल रैली, किशोरियों के लिए जागरूकता शिविर तथा आंगनबाड़ी सेविकाओं द्वारा गृह भ्रमण जैसे कार्यक्रम आयोजित करेगा. सामुदायिक गतिविधियों में पुरुषों की सहभागिता भी बढ़ायी जायेगी तथा पंचायत व जन प्रतिनिधियों का भी सहयोग लिया जायेगा. दरअसल पोषण अभियान कार्यक्रम न होकर जन आंदोलन है, जो सबके सहयोग से ही सफल होगा.
झारखंड की स्थिति : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)-चार की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में पांच वर्ष से कम उम्र वाले 45.3 फीसदी बच्चे नाटे, 29 फीसदी दुबले, 11.4 फीसदी अत्यधिक दुबले, 48 फीसदी बच्चे कम वजन वाले तथा 68 फीसदी एनिमिया ग्रस्त हैं. दूसरी ओर राज्य की 65.2 फीसदी महिलाएं भी एनिमिया पीड़ित हैं. ताजा रिपोर्ट से इन आंकड़ों में कुछ कमी आ सकती है, पर स्थिति अब भी दयनीय है.
(लेखिका समाज कल्याण निदेशालय में पोषण अभियान की स्वास्थ्य एवं पोषण परामर्शी हैं)
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