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इंजीनियरिंग के इस कमाल को सलाम

रांची समेत झारखंड के विभिन्न जगहों पर कुछ एेसे निर्माण कार्य हुए हैं, जिससे राष्ट्र पटल पर राज्य की साख बढ़ी है. रांची के रिंग रोड, गिरिडीह का कोनार डैम को इसमें शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा एचइसी में हाल ही में बनायी गयी हाइड्रोलिक एक्सवेटर मशीन से कंपनी की प्रतिष्ठा में इजाफा […]

रांची समेत झारखंड के विभिन्न जगहों पर कुछ एेसे निर्माण कार्य हुए हैं, जिससे राष्ट्र पटल पर राज्य की साख बढ़ी है. रांची के रिंग रोड, गिरिडीह का कोनार डैम को इसमें शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा एचइसी में हाल ही में बनायी गयी हाइड्रोलिक एक्सवेटर मशीन से कंपनी की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ है. हाइड्रोलिक एक्सवेटर को उद्योग मंत्रालय से भी प्रशंसा मिल रही है.

रिंग रोडः वाटर हार्वेस्टिंग वाली देश की पहली सड़क
रिंग रोड फेज सात (तिल्ता-सुकुरहुटू-करमा) में इंजीनियरिंग और वाटर हार्वेस्टिंग का समन्वय है. इंजीनियरों ने रिंग रोड में ऐसा सिस्टम बनाया है, जिससे बारिश का पानी सड़क के नीचे धरती में समा जाता है. इसमें नाली तो बनायी गयी है, लेकिन बारिश के पानी को बाहर ले जाने के लिए नहीं, बल्कि वाटर हार्वेस्टिंग के जरिये सड़क के अंदर संरक्षित करने के लिए. तिल्ता से करमा तक (23 किमी) छह लेन की सड़क बनायी गयी है. इसमें 14 जगहों पर वाटर हार्वेस्टिंग है. यह संभवतः देश की एकमात्र सड़क है, जिसमें वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है.
पथ विभाग ने बनवाया था डीपीआर
पथ निर्माण विभाग के केंद्रीय निरुपण संगठन (सीडीअो) ने रांची रिंग रोड में वाटर हार्वेस्टिंग का डिजाइन तैयार कराया था. मुख्य अभियंता की हैसियत से रास बिहारी सिंह ने डिजाइन बनवाया. फिर इसे सड़क बनानेवाली एजेंसी जेएआरडीसीएल को दिया. जेएआरडीसीएल ने इसे मूर्त रूप दिया. श्री सिंह बताते हैं कि इसकी सफलता के बाद अब अन्य बड़ी परियोजनाअों में इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है.
नयी तकनीक का नमूना है हाइड्रोलिक एक्सवेटर
एचइसी में पहली बार लेटेस्ट तकनीक ने हाइड्रोलिक एक्सवेटर को खास बना दिया है. पहले एचइसी में इलेक्ट्रिक एक्सवेटर बनता था. इसके निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले इंजीनियर अरविंद डॉस ने कहा कि उन्होंने प्रयोग के तौर पर हाइड्रोलिक एक्सवेटर बनाया. करीब तीन महीने तक स्टडी की.
फिर टीम के साथ हाइड्रोलिक एक्सवेटर का निर्माण शुरू किया. यह पूरी तरह से कंप्यूटराइज मशीन है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम है. इससे लीकेज, किसी तरह की गड़बड़ी का पता तुरंत चल जाता है. गड़बड़ी दूर करने के लिए मशीन बंद नहीं करनी पड़ती है. अरविंद कहते हैं : इस तकनीक की स्वीकृति भारी उद्योग मंत्रालय ने दे दी है.
एचइसी में 2015 में दिया योगदान अरविंद डॉस ने
चेन्नई के रहनेवाले अरविंद डॉस ने एचइसी में 2015 में बतौर डिप्टी मैनेजर अपना योगदान दिया. अभी माइनिंग डिपार्टमेंट रिसर्च एंड प्रोडक्ट डेवलपमेंट में सेवा दे रहे हैं. कहा कि हाइड्रोलिक एक्सवेटर की तकनीक पूरी तरह से स्वदेशी है और मेक इन इंडिया की तर्ज पर बनायी गयी है. जरूरतमंद कंपनियां पहले इसे विदेश से मंगाती थीं. एचइसी में बनी यह मशीन सस्ती, मजबूत व टिकाऊ है. इस मशीन का उपयोग खनन क्षेत्र में किया जायेगा.
कोनार डैमः ढलाई में लोहे के खंभे का किया इस्तेमाल
को नार डैम के उद्घाटन के बाद इसके कैनाल का एक हिस्सा बह गया था. लेकिन कोनार डैम के निर्माण में जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, वह अनोखा है. झारखंड में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है.
इसका टनल 6.1 मीटर गहरा है. टनल की ढलाई में लोहे के रड के स्थान पर लोहे के पिलर इस्तेमाल किया गया है. इसके निर्माण के समय ऑक्सीजन नीचे भेजा जाता था. इस प्रोजेक्ट से जुड़े के अधिकारी बताते हैं कि झारखंड में पहली बार 6-7 मीटर का ही टनल बना है. इतना गहरा टनल आसपास के राज्यों में भी कम ही है. इसको बनाने के लिए पांच बार टेंडर हुआ.

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