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रांची : फर्जी दस्तावेज के आधार पर झारक्राफ्ट ने किया 18.41 करोड़ रुपये का भुगतान

गरीबों को बांटने के लिए कंबल बनाने के मामले में महालेखाकार ने किया खुलासा रांची : झारक्राफ्ट ने गरीबों के बीच कंबल वितरण के नाम पर फर्जी दस्तावेज के आधार पर 18.41 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. पानीपत से धागा लाकर कंबल बनाने के सिलसिले में झारक्राफ्ट द्वारा तैयार दस्तावेज पर विश्वास नहीं किया […]

गरीबों को बांटने के लिए कंबल बनाने के मामले में महालेखाकार ने किया खुलासा
रांची : झारक्राफ्ट ने गरीबों के बीच कंबल वितरण के नाम पर फर्जी दस्तावेज के आधार पर 18.41 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. पानीपत से धागा लाकर कंबल बनाने के सिलसिले में झारक्राफ्ट द्वारा तैयार दस्तावेज पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. सीएजी ने इस मामले में निगरानी जांच की अनुशंसा की है. हालांकि, सरकार इस मामले में विभागीय जांच समिति बनाकर जांच कर रही है. जांच के परिणामों की जानकारी सीएजी को नहीं है.
प्रधान महालेखाकार (पीएजी) सी नेडुन्चेलियन ने संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी. पीएजी ने कहा कि डेयरी डेवलपमेंट स्कीम का 45.07 करोड़ रुपये बैंकों के पास पड़ा हुआ है. सरकार ने इसे वापस लाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. 2012 से 2016 तक के बीच मिनरल मिक्चर के वितरण आदि से संबंधित कोई दस्तावेज विभाग के पास नहीं है. सीएजी ने इस मामले की निगरानी जांच की अनुशंसा की है.
विधानसभा में सीएजी की दो रिपोर्ट पेश
उन्होंने बताया कि गुरुवार को विधानसभा में सीएजी की दो रिपोर्ट पेश की गयी. एक रिपोर्ट सामाजिक आर्थिक क्षेत्र से संबंधित है. दूसरी रिपोर्ट सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से संबंधित है. रिपोर्ट की चर्चा करते हुए प्रधान महालेखाकार ने कहा कि राज्य में 21 सरकारी उपक्रम कार्यरत हैं.
इनमें तीन अकार्यशील हैं. इनमें कर्णपुरा एनर्जी लिमिटेड, पतरातू एनर्जी लिमिटेड व झार-बिहार कोलियरी लिमिटेड है. इन अकार्यशील लोक उपक्रमों को बंद कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोक उपक्रमों के अॉडिट के दौरान सबसे संवेदनशील मुद्दा झारक्राफ्ट में सामने आया है.
अॉडिट के दौरान केंद्रमें नहीं मिला ऊनी धागा
झारक्राफ्ट में गरीबों को कंबल वितरण के नाम पर 18.41 करोड़ रुपये की गड़बड़ी हुई है. अॉडिट के दौरान झारक्राफ्ट के इरबा स्थित केंद्रीय भंडार की जांच की गयी थी. वहां ऊनी धागा होने का कोई सबूत नहीं मिला था. राज्य में स्थापित हैंडलूम की उत्पादन क्षमता दो लाख कंबल की है. सरकार ने झारक्राप्ट को इससे पांच गुणा अधिक कंबल बनाने का आदेश दिया था. पानीपतसे धागा लाने और कंबल बुननेके बाद उसे फिनिश करने के लिए वापस ले जाने और लाने के लिए निकाले गये टेंडर में गड़बड़ी हुईथी.
धागा और कंबल ढुलाई का काम वैसे लोगों को दे दिया गया था, जिन्होंने टेंडर में हिस्सा ही नहीं लिया था. रांची से पानीपत आने-जाने रास्ते में बने टोल प्लाजा से गुजरने वाली गाड़ियों की जांच की गयी. इसमें यह पाया गया कि झारक्राफ्ट ने 83 ट्रकों के माध्यम से 127 ट्रिप के सहारे 4.10 लाख कंबल झारखंड से पानीपत भेजे जाने का दावा किया था. लेकिन इनमें एक भी गाड़ी किसी टोल प्लाजा से होकर नहीं गुजरी. कुछ गाड़ियां एक ही समय में झारखंड से पानीपत भी जा रही थीं और पानीपत से झारखंड लौटने का भी ब्योरा झारक्राफ्ट के दस्तावेज में पाया गया. वीवर्स सोसाइटी की जांच में यह पाया गया कि कई वीवर्स सोसाइटी ने अपनी उत्पादन क्षमता से अधिक और धागा मिलने से पहले ही कंबल का उत्पादन कर दिया.
एजी आॅफिस में आयोजित प्रेस वार्ता करते प्रधान महालेखाकार सी नेडुन्चेलियन व अन्य.
पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन ने अनुभवहीन को ठेका दिया
पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन ने 4.87 करोड़ रुपये का छह निर्माण कार्य ऐसे चार ठेकेदारों को दिया है, जिन्हें काम करने का अनुभव नहीं है और न ही उनकी इतनी वित्तीय क्षमता है. कंपनी ने भारत सरकार के पैसे को बैंक में रखकर 15.35 करोड़ रुपये का सूद कमाया और इसे कंपनी का लाभ बता कर 5.03 करोड़ रुपये का आयकर भुगतान किया. झारखंड ऊर्जा उत्पादन निगम लिमिटेड ने सिकिदिरी हाइडल के बुशिंग खरीदने में 16 महीने की देर की. इससे 75.73 एमयू ऊर्जा का उत्पादन नहीं हो सका. इतनी बिजली की कीमत 22.79 करोड़ रुपये है.
मिनरल मिक्चर खरीद में निगरानी जांच की अनुशंसा
सरकार ने जनवरी 2016 में बीपीएल वर्ग की महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 90 % सब्सिडी पर दो दुधारू गाय उपलब्ध कराने का फैसला किया.
इसके लिए निर्धारित 5208 के लक्ष्य में से 1553 को रोजगार उपलब्ध कराया जा सका. बीपीएल योजना में 89.49 % लाभार्थियों को टिकाऊ रोजगार नहीं दिया जा सका. वर्ष 2012 से 2016 के दौरान टेक्निकल इनपुट के तहत मिनरल मिक्चर की खरीद पर 43 करोड़ खर्च किये गये हैं. लेकिन इससे संबंधित कोई दस्तावेज विभाग में उपलब्ध नहीं है. सीएजी ने इस मामले में निगरानी जांच की अनुशंसा की है.
65 साल में वन विभाग ने एक भी नोटिफिकेशन जारी नहीं किया
महालेखाकार ने वन विभाग की चर्चा करते हुए कहा कि झारखंड में 23.60 लाख हेक्टेयर रिकाॅर्ड फॉरेस्ट एरिया है. इसमें से 19.185 लाख हेक्टेयर संरक्षित वन के रूप में घोषित है. वन विभाग मुख्यालय के पास वन क्षेत्र के प्रीलिमिनरी नोटिफिकेशन से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं है. वन विभाग को प्रीलिमिनरी नोटिफिकेशन के आलोक में जांच के बाद फाइनल नोटिफिकेशन जारी करना है, लेकिन 65 साल में विभाग ने एक भी फाइनल नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है.
एकरारनामा रद्द नहीं करने से लागत में 3.12 करोड़ की वृद्धि
वर्क्स डिपार्टमेंट के बारे में उन्होंने कहा कि कांट्रैक्टर के साथ किये गये एकरारनामे को निर्धारित समय सीमा में रद्द नहीं किये जाने से बाकी बचे काम की लागत में 3.12 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है.
ठेकेदारों से सरकार ने 2.62 करोड़ रुपये की वसूली भी नहीं की है. नेशनल हाइवे के चीफ इंजीनियर ने एक ठेकेदार को काली सूची में डालने के आदेश के बाद भी उससे काम लिया और उसे 3.60 करोड़ का अनुचित लाभ पहुंचाया. अतिक्रमित क्षेत्र में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए डीपीआर बनाने पर 2.02 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. यह खर्च बेकार साबित हुआ है.

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