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कैसे बदला चुनाव : जातिगत समीकरण बैठाना टिकट तय करने में सबसे बड़ी चुनौती

चुनाव में पहले नहीं था जातीय समीकरण का गणित , बदलता गया फॉर्मूला अनुज कुमार सिन्हा रांची : भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत लगभग सभी प्रमुख दलों को प्रत्याशियों के चयन में जातिगत समीकरण बैठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जहां तक भाजपा का सवाल है, गिरिडीह सीट आजसू को दे […]

चुनाव में पहले नहीं था जातीय समीकरण का गणित , बदलता गया फॉर्मूला
अनुज कुमार सिन्हा
रांची : भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत लगभग सभी प्रमुख दलों को प्रत्याशियों के चयन में जातिगत समीकरण बैठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
जहां तक भाजपा का सवाल है, गिरिडीह सीट आजसू को दे देने और वहां से चंद्रप्रकाश चौधरी (महतो) के आजसू प्रत्याशी बनने की खबर, गिरिडीह से रवींद्र पांडेय (ब्राह्मण) का पत्ता साफ होने से भी यह चुनौती और बढ़ी है. इसके अलावा उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल की एक सीट पर प्रत्याशी बदलने की भी चर्चा चल रही है. इस सीट पर राजपूत सांसद हैं. ऐसे में समीकरण बैठाना मुश्किल हो रहा है.
खास कर भाजपा के लिए. झारखंड में इस समय भाजपा के 12 सांसद हैं. इनमें रांची और जमशेदपुर में महतो सांसद (रामटहल चौधरी और विद्युतवरण महतो) हैं. यह चुनौती इसलिए और अधिक है, क्योंकि झारखंड की कुल 14 सीटों में दुमका, राजमहल, लोहरदगा, खूंटी और सिंहभूम अनुसूचित जनजाति और पलामू सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. यानी 14 में छह सीट आरक्षित हैं.
यानी शेष आठ सीटों पर बाकी सभी जातियों को प्रतिनिधत्वि देना होगा. रांची, जमशेदपुर और गिरिडीह में महतो प्रत्याशी होने के बाद बाकी के लिए पांच सीटें बचेंगी. इसी समस्या से अन्य दलों को भी जूझना पड़ रहा है.
झारखंड मुक्ति मोरचा और जेवीएम को इस जातीय समीकरण से बहुत लेना-देना नहीं है. कोडरमा से बाबूलाल मरांडी और गोड्डा (अगर सहमति होती है) से प्रदीप यादव का लड़ना तय है. झामुमो को अगर चार सीट दी जाती है, तो संताल की सीटों पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. दुमका से शिबू सोरेन और राजमहल से विजय हांसदा का लड़ना तय है.
बाकी दो सीटों (अभी के अनुसार एक गिरिडीह और दूसरा जमशेदपुर) में चयन के वक्त उसे जातिगत समीकरण को देखना होगा. गिरिडीह सीट पर महतो प्रत्याशी के बीच ही मुकाबला होने की संभावना है. लेकिन झामुमो को भी देखना होगा कि वह चार सीटों में बंटवारा किस आधार पर करता है. दो सीट आरक्षित है, लेकिन बाकी दो में भी उसे समीकरण देखना होगा. जमशेदपुर सीट पर उसे भी परेशानी होगी, क्योंकि गिरिडीह सीट पर जगन्नाथ महतो का खड़ा होना लगभग तय है (अगर कोई तकनीकी अड़चन नहीं आती है, तो).
वैसे में जमशेदपुर में चयन आसान नहीं होगा, क्योंकि वहां से इस बात की अधिक संभावना है कि भाजपा विद्युत वरण महतो को ही उतारेगी. जमशेदपुर से इससे पहले दो बार शैलेंद्र महतो (झामुमो), दो बार आभा महतो (भाजपा) और एक-एक बार सुनील महतो (झामुमो) और सुमन महतो (झामुमो, उपचुनाव में) चुनाव जीत चुके हैं.
रांची सीट पर सभी की निगाहें हैं. हाल के चुनावों में यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला होता आया है. अभी भले ही प्रत्याशियों के चयन में महतो, गैर महतो की बात उठती है, लेकिन एक समय था, जब रांची सीट पर मुसलिम और पारसी प्रत्याशी भी जीतते थे. 1952 के पहले चुनाव में रांची से अब्दुल इब्राहिम कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुए थे.
1957 में झारखंड पार्टी ने पारसी प्रत्याशी एमआर मसानी (मुंबई) को उतारा था और वे चुनाव जीत गये थे. सबसे रोचक परिणाम 1962 से 1971 तक हुआ था. रांची में बंगालियों की आबादी अच्छी खासी रही है.
अब रांची सीट पर मुख्य दल बंगालियों को भले ही टिकट न दें (लोकसभा चुनाव में) लेकिन इसी रांची सीट पर एक बंगाली नेता प्रशांत कुमार घोष लगातार तीन बार (1962, 1967, 1971) विजयी रहे थे. पहली बार स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर और दूसरी-तीसरी बार कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर.
रांची सीट पर हुए 16 चुनावोें में पांच बार (1991, 1996, 1998, 1999, 2014) भाजपा के रामटहल चौधरी (महतो) और 11 बार गैर-महतो विजयी रहे हैं.
गैर-महतो में तीन बार बंगाली, दो बार साहू (1980, 1984) और तीन बार कायस्थ (सुबोधकांत सहाय, 1989, 2004, 2009) प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. सुबोधकांत सहाय ने पहली बार जनता दल और बाद का दोनों चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता. ऐसे भी अवसर आये हैं, जब रांची सीट पर दो-दो महतो रामटहल चौधरी (भाजपा) और केशव महतो कमलेश (कांग्रेस) आपस में टकरा चुके हैं. ऐसा 1996 और 1998 के चुनाव में हो चुका है. लेकिन 2004 से 2014 तक रांची में रामटहल चौधरी और सुबोधकांत सहाय ही आपस में मुकाबला करते रहे हैं.
सिर्फ रांची, जमशेदपुर ही नहीं, गिरिडीह और हजारीबाग सीटों पर भी जब निर्णय होता है, तो सबसे पहले जातिगत समीकरण पर गौर किया जाता है. जब तक टिकट का बंटवारा नहीं हो जाता, नये-नये नाम आते रहेंगे, टिकट मिलने और टिकट कटने की चर्चा (अफवाह) बनी रहेगी़
रांची सीट
1952 अब्दुल इब्राहिम (कांग्रेस)
1957 एमआर मसानी (झारखंड पार्टी)
1962 प्रशांत कुमार घोष (स्वतंत्र पार्टी)
1967 प्रशांत कुमार घोष (कांग्रेस)
1971 प्रशांत कुमार घोष (कांग्रेस)
1977 रवींद्र वर्मा (बीएलडी)
1980 शिव प्रसाद साहू (कांग्रेस)
1984 शिव प्रसाद साहू (कांग्रेस)
1989 सुबोध कांत सहाय (जनता दल)
1991 रामटहल चौधरी (भाजपा)
1996 रामटहल चौधरी (भाजपा)
1998 रामटहल चौधरी (भाजपा)
1999 रामटहल चौधरी (भाजपा)
2004 सुबोध कांत सहाय (कांग्रेस)
2009 सुबोध कांत सहाय (कांग्रेस)
2014 रामटहल चौधरी (भाजपा)

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