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लद्दाख में विश्व की सबसे ऊंची सड़क को बना रहे हैं झारखंड के 13 मजदूर, सप्ताह में एक दिन मिलता है नहाने व कपड़े धोने को

अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर झारखंड के 13 मजदूर विश्व की सबसे ऊंची सड़क में से एक चांग-ला-पास के समीप की एक सड़क की मरम्मत का काम कर रहे हैं. चांग ला भारत के लद्दाख क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी दर्रा है जो 17,590 फुट (5,360 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है. हड्डी कंपा […]

अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर झारखंड के 13 मजदूर विश्व की सबसे ऊंची सड़क में से एक चांग-ला-पास के समीप की एक सड़क की मरम्मत का काम कर रहे हैं. चांग ला भारत के लद्दाख क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी दर्रा है जो 17,590 फुट (5,360 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है. हड्डी कंपा देने वाली ठंड का कभी अनुभव नहीं रखनेवाले ये मजदूर, वहां के स्थानीय लद्दाखी मजदूरों की सहायता से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं.

लद्दाख के तांग्त्से जिले में इन्हें चार महीने के लिए काम पर रखा गया है, जहां मौसम हमेशा ही खराब बना रहता है. देश में जहां बेरोजगारी की समस्या गंभीर है और झारखंड जैसे राज्यों में माइग्रेशन बहुत बड़ी समस्या है. इन मजदूरों को 40000 रुपये प्रति माह दिये जा रहे हैं. यहां काम कर रहे लोग इस तनख्वाह से खुश हैं. उनका मानना है कि हमारे यहां काम नहीं होने के कारण हम लोग इतनी दूर आये हैं. लेकिन, यहां काम करने में हमें कोई समस्या नहीं है.

सप्ताह में एक दिन मिलता है नहाने व कपड़े धोने को
इन मजदरों को हफ्ते में छह दिन जबर्दस्त ठंड में काम करना पड़ता है. रविवार को इन्हें काम से छुट्टी मिलती है. इस दिन ये अपने सप्ताह भर का पूरा काम निबटाते हैं. पूरे हफ्ते में रविवार को ही ये नहाते हैं, कपड़े धोते हैं, दाढ़ी बनाते हैं और थोड़ा हंसी-मजाक का समय निकालते हैं. बाकी समय आराम करते हैं.
पास में नहीं हैं ग्लव्स, खुले हाथों से तोड़ते हैं पत्थर
कड़कड़ाती ठंड में भी ये खुले हाथ से काम करते हैं. हाथ गर्म रखने के लिए इनके पास ग्लव्स तक नहीं होते. पांच डिग्री से कम तापमान वाले इस जगह पर वे खुले हाथ से ही बेलचा पकड़ कर गिट्टी, बालू ढोने और पुराने मैटेरियल को हटाने का काम करते हैं. बड़े पत्थरों को तोड़ने का काम भी उन्हें ही करना पड़ता है.
घर पर कोई काम नहीं है. मुझे कोई भी काम कठिन नहीं लगता.
सुनील टुडू
यदि काम करने का यहां दोबारा मौका मिले तो मैं वापस यहां काम करना पसंद करूंगा.
सुशील टुडू
घर वापस जाने पर फिर से हमारे पास काम नहीं होगा. खाने-पीने में हमारा सारा पैसा खत्म होगा.
राजशेखर
टेंट में नहीं है बिजली मिट्टी तेल के स्टोव पर बनाते हैं खाना : करीब 18000 फीट की ऊंचाई पर इन्हें एक टेंट में ठहराया गया है. टेंट में बिजली भी नहीं है. किरासन तेल के स्टोव पर खाना बनाना पड़ता है. सुबह में नाश्ते के बाद इन्हें ट्रक से काम पर ले जाया जाता है. रात में खाने में चावल दिया जाता है.

17590 फुट की ऊंचाई पर स्थित है सड़क

04 महीने का है सड़क की मरम्मत का कॉन्ट्रैक्ट
40000 रुपये मिलेंगे प्रत्येक को प्रति महीने
-04 से 05 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहता है तापमान

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