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Chhath Puja 2018: व्रतियों ने उदीयमान सूर्य को दिया अर्घ्‍य, 4 दिन का छठ महापर्व संपन्‍न

रांची : छठ के चौथे दिन बुधवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्‍य दिया गया. इसके साथ ही चार दिन का छठ महापर्व समाप्‍त हो गया. इस पर्व को लेकर झारखंड-बिहार सहित देश के कई हिस्‍सों में भक्ति व उत्‍साह चरम पर रहा. छठ को लेकर नदियों और तालाबों को खासतौर से सजाया गया था […]

रांची : छठ के चौथे दिन बुधवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्‍य दिया गया. इसके साथ ही चार दिन का छठ महापर्व समाप्‍त हो गया. इस पर्व को लेकर झारखंड-बिहार सहित देश के कई हिस्‍सों में भक्ति व उत्‍साह चरम पर रहा. छठ को लेकर नदियों और तालाबों को खासतौर से सजाया गया था और श्रद्धालुओं के आवागमन के लिए सड़कों को साफ-सुथरा किया गया था. इस महापर्व में छठ व्रती 36 घंटे का कठिन उपवास रखते हैं. इस दौरान मन और शरीर की शुद्धता की बड़ी अहमियत है.

ऐसी मान्‍यता है कि छठी मइया की बच्चों पर विशेष कृपा होती है. इसलिए संतान की सलामती का आशीर्वाद पाने के लिए भी इस व्रत की बड़ी अहमियत है. इस पर्व में पूरा परिवार एकसाथ घाट जाकर सूर्य को अर्घ्‍य अर्पित करते हैं.

वर्तमान में यह पर्व न केवल बिहार, बल्कि प्रत्येक राज्य तथा विदेशो में भी बड़े स्तर पर मनाया जा रहा है. हमारे समाज में अधिकतर पर्व महिलाओं के द्वारा किये जाते हैं. परंतु ‘छठ पर्व’ बड़ी संख्या में पुरुषों के द्वारा भी किया जा रहा है, यह पर्व न केवल एक त्योहार के रूप में, बल्कि यह पर्व प्रकृति के अधिक अनुकूल लगता है. क्योंकि, इसमें अराध्य देवता सूर्य की उपासना की जाती है, जो प्रकृति देवता के रूप में जाने जाते हैं.

बिना किसी पंडित, पुरोहित आदि की मदद लिए सूर्य देवता की आराधना की जाती है. जल स्त्रोतों से मानव का जुड़ाव और उन पर निर्भरता का भी परिचायक है यह पर्व. किसानों के लिए यह पर्व खुशियां लेकर आता है, फसलों की कटाई और मौसमी फलों का प्रसाद के रूप में वितरण आदि. यह पर्व बिना किसी भेद-भाव के, चाहे वह प्राकृतिक स्तर पर हो, समाजिक स्तर पर हो, पुरुष-स्त्री का भेद-भाव के बिना ही यह पर्व एक साथ एक ही स्थान पर मनाया जाता है.

छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी और पवित्रता है. भक्ति ,अध्यात्म और प्रकृति के त्रयी से परिपूर्ण यह पर्व सामाजिक समरसता का अद्भुत नमूना है. इसकी अभिव्यक्ति छठ के गीतों में भी खूब देखने को मिलती है. इस व्रत में घर-परिवार पूजा व आराधना में पूरी श्रद्धा से जुटा रहता है. घर की बहुएं एवं बेटियां जहां प्रसाद बनाने में मग्न होती हैं. वहीं,पुरुष छठ घाट की सफाई से लेकर लीपने-पोतने तक की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं.

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