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बिहार : गैंगरेप व हत्या मामले में तीन को फांसी की सजा, एक-एक लाख का जुर्माना भी

अभियुक्तों पर लगाया गया एक-एक लाख का जुर्माना पूर्णिया कोर्ट : प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश सत्येंद्र रजक ने नाबालिग छात्रा की गैंगरेप के बाद हत्या के मामले में गुरुवार को तीन अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनायी है. न्यायाधीश ने इसे विरल से विरलतम अपराध करार देते हुए मामले के अभियुक्त बड़हरा थाने के गुलाब […]

अभियुक्तों पर लगाया गया एक-एक लाख का जुर्माना
पूर्णिया कोर्ट : प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश सत्येंद्र रजक ने नाबालिग छात्रा की गैंगरेप के बाद हत्या के मामले में गुरुवार को तीन अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनायी है. न्यायाधीश ने इसे विरल से विरलतम अपराध करार देते हुए मामले के अभियुक्त बड़हरा थाने के गुलाब टोला मलडीहा के प्रशांत कुमार मेहता, लक्ष्मीपुर भिट्ठा के सोनू कुमार तथा रूपेश कुमार मंडल को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाने का निर्देश दिया जब तक उनकी मौत नहीं हो जाती है.
साथ ही तीनों को अलग-अलग एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. न्यायाधीश ने जुर्माने की राशि नहीं चुकाने की स्थिति में उनकी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया है. मामला सत्रवाद संख्या 965/12 से संबंधित है. न्यायालय द्वारा सजा सुनाये जाने के बाद मृतका के पिता जगदीश मंडल ने कहा कि जिसने घटना को अंजाम दिया और न्यायालय ने जो फैसला दिया है उससे वे पूरी तरह संतुष्ट हैं.
वर्ष 2012 में हुआ था दुष्कर्म व हत्या
मामला छह वर्ष पुराना है. इस मामले में मृतका के पिता ने बड़हारा थाना कांड 99/12 दर्ज करवाया था. उनकी 13 वर्षीया लड़की 11 मई, 2012 को सुबह छह बजे स्कूल गयी थी, लेकिन वह वापस नहीं लौटी. इसी बीच पता चला कि गांव में मक्के के खेत में एक लड़की की लाश पड़ी है.
उस वक्त परिजन खेत में पहुंचे लेकिन मृतका की पहचान नहीं हो पायी. देर रात फिर जब परिजन उक्त स्थल पर पहुंचे तो उसकी पहचान हुई. गैंगरेप के बाद छात्रा के शव को क्षत-विक्षत कर दिया गया था. मृतका के गले में बांस को घुसेड़ दिया गया था. इस पूरे घटनाक्रम को एक चश्मदीद बालक ने देखा था, जिसने बाद में 164 के तहत बयान दर्ज कराया था.
बयान के अनुसार छात्रा को ट्यूशन पढ़ाने वाले प्रशांत कुमार मेहता और अन्य बरगला कर खेत तक ले गया था. जहां उसके साथ पहले दुष्कर्म और फिर हत्या हुई.
न्यायाधीश ने कहा ऐसे अपराधी को समाज में रहने का हक नहीं
मामले में वरीय अपर लोक अभियोजक रमाकांत ठाकुर ने सरकार के तरफ से पक्ष रखते हुए न्यायालय में 18 गवाहों का परीक्षण करवाया. जिसमें डॉक्टर तथा अनुसंधानकर्ता भी शामिल थे. उन्होंने न्यायालय में कहा कि इस प्रकार की घटना निर्भया कांड से कम नहीं है तथा यह विरलतम मामला है. जिसमें अभियुक्तों को जितनी भी सजा दी जायेगी वह कम होगी. उन्होंने कोर्ट से ज्यादा से ज्यादा कठोर सजा देने की मांग की. उन्होंने उल्लेख भी किया कि यह घटना 2012 की है.
जो मई में हुई जबकि निर्भया कांड भी दिसंबर 2012 को ही हुआ था. जिसमें पूरा देश आंदोलनरत हो गया था. न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मामला एक बच्ची के साथ न केवल दुष्कर्म की घटना की है बल्कि उसके साथ अमानवीय व्यवाहार भी किया गया है. इन अपराधियों को समाज में रहने का कोई औचित्य नहीं है. अत: इन्हें फांसी की सजा सुनायी जाती है. बल्कि इनको फंदे पर तब तक झुलाया जाय जब तक इनकी मृत्यु न हो जाय. न्यायालय ने पीड़िता के पिता को क्षतिपूर्ति के लिए विधिक सेवा प्राधिकार को भी लिखा है.

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