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लखनऊ : पहले भी भाजपा के शीर्ष नेताओं को घेरने की हुई कोशिश, 1991-2004 तक लगातार अटल वाजपेयी यहां से जीतते रहे

अनुज कुमार सिन्हा लखनऊ से देश के गृहमंत्री और भाजपा के बड़े नेता राजनाथ सिंह चुनाव मैदान में हैं. उन्हें घेरने के लिए समाजवादी पार्टी ने शत्रुघन सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को उतारने का फैसला किया है. पूनम सिन्हा 1968 में मिस यंग इंडिया रह चुकी हैं. फिल्म में काम कर चुकी हैं. चुनाव […]

अनुज कुमार सिन्हा
लखनऊ से देश के गृहमंत्री और भाजपा के बड़े नेता राजनाथ सिंह चुनाव मैदान में हैं. उन्हें घेरने के लिए समाजवादी पार्टी ने शत्रुघन सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को उतारने का फैसला किया है. पूनम सिन्हा 1968 में मिस यंग इंडिया रह चुकी हैं. फिल्म में काम कर चुकी हैं. चुनाव लड़ने के लिए वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुकी हैं. इधर शत्रुघन सिन्हा पटना साहिब से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
लंबे समय तक शत्रुघन सिन्हा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे. नाराज हो कर पार्टी छोड़ी और अब भाजपा के खिलाफ मोर्चा ले चुके हैं. समाजवादी पार्टी को किसी ऐसे प्रत्याशी की तलाश थी जो राजनाथ सिंह को मात देने में सक्षम हो और उसने पूनम सिन्हा को चुना. बड़ी चुनौती है. लखनऊ लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ है. राजनाथ सिंह की खुद की लोकप्रियता भी कम नहीं है. यह वह सीट है जहां 1991 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी लगातार जीतते रहे हैं.
उसके बाद 2009 में लखनऊ से लालजी टंडन और 2014 में राजनाथ सिंह विजयी हुए. यानी 1991 से भाजपा यहां हारी नहीं है. यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं, कायस्थ मतदाता हैं. इसी पर समाजवादी पार्टी की नजर है. यह कोई पहला मौका नहीं है जब लखनऊ में भाजपा प्रत्याशियों को हराने के लिए ऐसी रणनीति बनी है.
वाजपेयी को हराने के लिए विपक्ष ने एक से एक दिग्गज प्रत्याशी दिया, फिल्मी जगत से जुड़ी हस्तियां भी वाजपेयी के खिलाफ लड़ी लेकिन वाजपेयी जीतते गये. कहा को यह जाता है कि वाजपेयी को बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता भी पसंद करते थे. जीत का अंतर तो यही बताता भी है. 1996 के चुनाव में वाजपेयी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी ने फिल्म अभिनेता राज बब्बर को मैदान में उतारा था. राज बब्बर का क्रेज भी कम नहीं था लेकिन वाजपेयी तो वाजपेयी थे. वाजपेयी को 394865 वोट मिले थे जबकि राज बब्बर को 276194 वोट.
वाजपेयी एक लाख से ज्यादा वोट से जीते थे. राज बब्बर की हार के बावजूद समाजवादी पार्टी ने हार नहीं मानी और अगले चुनाव यानी 1998 के चुनाव में फिल्मी दुनिया की एक और हस्ती मुजफ्फर अली को उतारा. वाजपेयी की जीत का अंतर और बढ़ गया. वाजपेयी को 431738 वोट मिले जबकि मुजफ्फर अली को 215475 वोट. समाजवादी पार्टी ने 1996 और 1998 दोनों में मुस्लिम प्रत्याशी दिया था जो पहले से चर्चित थे, फिर भी वाजपेयी को जीत से रोक नहीं सके. 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने एक और बड़ा नाम दिया. वह नाम था राजा कर्ण सिंह का. कांग्रेस को भरोसा था कि मुस्लिम वोट तो उसे मिलेगा ही, साथ में अन्य वर्गों का भी उसे समर्थन मिलेगा.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कर्ण सिंह भी एक लाख से ज्यादा वोट से वाजपेयी से हारे. 2004 का जब चुनाव आया तो वाजपेयी के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने मधु गुप्ता को उतारा लेकिन एक और बड़ा नाम था राम जेठमलानी का. जेठमलानी वाजपेयी के खिलाफ निर्दलीय उतर गये. उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. 2014 के चुनाव में मोदी लहर थी और प्रत्याशी थे राजनाथ सिंह. समाजवादी पार्टी ने वही पुराना फार्मूला अपनाया था. यानी मुस्लिम प्रत्याशी और वह भी फिल्मी-ग्लैमर की दुनिया से. उसने राजनाथ सिंह के खिलाफ नफीसा अली को उतारा. मैदान में कांग्रेस की ओर से रीता बहुगुणा भी थी.
बहुगुणा ने तो कुछ टक्कर भी दी थी लेकिन नफीसा अली काफी पिछड़ गयी और उन्हें सिर्फ 61447 वोट मिले थे. इस बार समाजवादी पार्टी की पूनम सिन्हा राजनाथ सिंह को टक्कर देने उतर रही है. लखनऊ सीट का जो इतिहास रहा है, उसका निचौड़ यही है कि भाजपा के इस किले में सेंध मारना असंभव नहीं तो बहुत कठिन जरूर है.
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