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2019 लोकसभा चुनाव : भाजपा के लिए चुनौतियां और अवसर, विपक्ष के बिखराव का लाभ उठाने की कोशिश में भाजपा

विजय बहादुरबीस साल बाद ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों को देखें, तो स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा ने ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और केरल में अभी से पूरी ताकत झोंक दी है. इसकी वजह भी है. हाल ही में ओड़िशा में संपन्न हुए पंचायत चुनाव […]

विजय बहादुर
बीस साल बाद ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों को देखें, तो स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा ने ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और केरल में अभी से पूरी ताकत झोंक दी है. इसकी वजह भी है. हाल ही में ओड़िशा में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया. कांग्रेस का प्रदर्शन और खराब हुआ. वहीं, पश्चिम बंगाल उपचुनाव में भी उसके प्रत्याशी को लोगों का जबरदस्त समर्थन मिला.

भाजपा को लगता है कि 17 वर्षों से ओड़िशा में नवीन पटनायक की सरकारके लिए आनेवाले दिन मुश्किल भरे हो सकते हैं. 2019 में होनेवाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नवीन के बीजू जनता दल(बीजद) को एंटीइन्म्बेंसी (सरकार विरोधी रुझान) का सामना करना पड़ सकता है. यही वजह है कि भाजपा बेहद उत्साहित है. उसे लग रहा है कि यदि उसने अभी से कोशिश की, तो ओड़िशा में उसका प्रदर्शन बेहतर रह सकता है. यहां बताना प्रासंगिक होगा कि पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए उपचुनाव में कांथी सीटपर भाजपा ने मजबूत उपस्थिति दर्जकरायी. यह सीट भले तृणमूलजीत गयी, लेकिन भाजपा प्रत्याशी को जो मत मिले, साबित करते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस या वामदल में तृणमूल की जगह लेने की क्षमता नहीं रही.

इससे पहले, देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में मिली भारी-भरकम जीत के बाद भाजपा के हौसले बुलंद हैं. उसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव मेंफिरसे सत्ता में लौटनेकेपूरे आसार नजर आ रहे हैं. लेकिन, वह वर्ष 2004 के अति आत्मविश्वास को दोहराना नहीं चाहती. यही वजह है कि उसने अभी से एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है.जहांभी उसेसंभावनादिख रही है,वहपूरी मेहनत कर रही है. वह अटल बिहारी वाजपेयी के ‘इंडिया शाइनिंग’ कैंपेन के बाद मिली जबरदस्त हार को दोहराना नहीं चाहती.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से 282 सीटेंजीत कर केंद्र में सरकार बनायी थी. कई बड़े राज्यों में भाजपा और उसके घटक दलों ने 90%सीटें जीती थीं. यूपी और उत्तराखंड की 85 में 78 सीटें, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की कुल 94 में 79 सीटें भाजपा ने जीतीं. राजस्थान और गुजरात की 51 में 51 सीटें एनडीए की झोली में गयीं. महाराष्ट्र की 48 में 41, कर्नाटक में 28 में से 17 सीटें भाजपा और उसके साथी दलों ने जीतीं. इतना ही नहीं, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल जैसे छोटे राज्यों में भी एनडीए का प्रदर्शन शानदार रहा.

भाजपा को वर्ष 2014मेंमिली जबरदस्त सफलता को दोहराना वर्ष 2019 में उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि इस प्रदर्शन को दोहराना आसान नहीं होगा. यह तो तय है कि 2019 का चुनाव भाजपा प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही लड़ेगी. उनकी देशव्यापी लोकप्रियता को भुनाने कीभी पूरी कोशिश होगी, लेकिन स्थानीय स्तर पर एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर से निपटना आसान नहीं होगा. चूंकि, सबसे ज्यादा सांसद भाजपा और उसके घटक दलों के हैं, इसलिए सत्ताविरोधी लहर से निबटनाआसान नहीं होगा.

दिल्ली और बिहार को छोड़ कर जिस तरह भाजपा ने नरेंद्र मोदी और अमित साह की अगुवाई में लगातार कई राज्यों के विधानसभा चुनावजीतेहैं, उसने कुछ राज्यों में विपक्षी दलों के अस्तित्व को ही चुनौती दे दी है. इन दलों को पता हैकि भाजपा ने अपने मत प्रतिशत को उस स्तर तक बढ़ा लिया है,जहां कोई भी दल अकेले उसका मुकाबला करने में सक्षम नहीं है. वर्ष 2014 में आम चुनाव में बिहार में राजद और जदयू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. इन्हेंक्रमश: चार और दो सीटेंमिलीं.इन्हींदोनों दलों ने कांग्रेस के साथ मिल कर महागंठबंधन बनायाभाजपा को धूल चटा दी. यहां भी गौर करनेवाली बात है कि भाजपा को यहां 34प्रतिशतमत मिले.

यूपी चुनाव के नतीजों के बाद से क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ कांग्रेस भी चिंतित है. इनके अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है. सपा, बसपा और कांग्रेसको समझ आ गयाहैकिअलग-अलगचुनाव लड़ कर 2019में मोदी कामुकाबला नहीं कर पायेंगे. यूपी विधानसभा के बाद बिहार की तर्ज पर इस प्रदेश में भी महागंठबंधन के कयास लगने लगे हैं. मायावती और अखिलेश यादव के हालिया बयानों ने महागंठबंधन की संभावना को बल भी दिया है.

सपा में मुलायम और शिवपाल युग के अवसान के बाद सपा-बसपा का गंठबंधन बहुत मुश्किल नहीं दिख रहा. पिछले विधानसभा चुनाव के मत प्रतिशत को देखें, तो इन दोनों दलों का कुल मत प्रतिशत 50फीसदी के आसपास था. यदि दोनों दल मिल कर लड़ेंऔर बिहार मेंमहागंठबंधनकायम रहे, तो भाजपा के लिए सत्ता में वापसी करना इतना आसान नहीं रह जायेगा,क्योंकि महाराष्ट्र में शिव सेना उसके लिए अलगसे मुश्किलें खड़ी कर रहा है.

इन राज्यों में होनेवाले नुकसान की आशंका के मद्देनजर ही भाजपा ने उन राज्यों पर ध्यानकेंद्रित करना शुरू कर दिया है, जहां अब तक उसका प्रदर्शन बढ़िया नहीं था, लेकिन अब संभावनाएं दिख रही हैं. ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में पार्टी का पूरी ताकत झोंक देना इसी रणनीति का हिस्सा है.भाजपा की सोच यह है कि यदि उत्तर के दो बड़े राज्यों में कोई नुकसानहो,तो पूर्वांचल के दो बड़े राज्यों से उसकी भरपाई हो जाये.

दक्षिणमेंदिखरहीउम्मीदें, संगठनकोमजबूतकरेंगे पांचलाखकार्यकर्ता

भाजपा को तमिलनाडु में भी अपने लिए उम्मीदें दिख रही हैं. यहां जयललिता की मृत्यु के बाद एआईएडीएमके आपसी विवाद के कारणलगातारकमजोर हो रही है. भाजपा इसबार देश की उन 120 सीटों पर भी नजर गड़ाये है, जहां अब तक उसे कभी जीत नहीं मिली. इसमें केरल और उत्तर-पूर्वी भारत की सीटें भीहैं. इसके लिए भाजपा ने संगठनको मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तर्ज पर लगभगपांच लाख पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को इन इलाकों में संगठन मजबूत करने में लगा दिया है.

मोदी की स्वच्छ छवि ने दिलायी थी जीत, अब बदली रणनीति
वर्ष 2014 का चुनाव भाजपा ने मोदी की छवि, विकास के एजेंडे को सामने रखकर और कांग्रेस के खिलाफ देशव्यापी नकारात्मक माहौल को भुना कर जीता था. लेकिन, लगता है कि वर्ष 2019 में भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति बदल दी है. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के बल पर बहुसंख्यक ध्रुवीकरण उसकी रणनीति का अहम हिस्सा होगा. योगी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यही संकेत देने की कोशिश की है.

विपक्ष के बिखराव का लाभ उठाने की कोशिश में भाजपा

भाजपा के पक्ष में जो सबसे बड़ी बात है,वह यह कि नरेंद्र मोदी विपक्ष के बिखराव का लाभ उठाने की कोशिश में भाजपाऔर अमित शाह के नेतृत्व में समय रहते 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी जाये. विपक्ष बिखरा हुआ है.उसकेपास कोई सर्वमान्य नेता भी नहीं है. इसलिए, इससे पहले कि विपक्ष का गंठबंधन आकर ले, भाजपा अपने पक्ष में माहौल बना लेना चाहती है. 2014 के चुनाव का विश्लेषण करें, तो भाजपा ने बहुत ही चतुराई से इसे नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी का चुनाव बना दिया था. 2019 का चुनाव भी नरेंद्र मोदी बनाम बाकी सभी के आधार परहोनेकी उम्मीद है.ऐसा हुआ, तो लाभ भाजपा को ही होगा.

अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण के बल पर चुनावी जीत का मिथक ध्वस्त
विचारों के स्तर पर भी विपक्ष ऊहापोह की स्थिति में है. बहुसंख्यक हिंदुओं के भाजपा के पक्ष में गोलबंद होने के बाद अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण के बल पर चुनावी जीत का मिथक भी ध्वस्त हो गया है. भाजपा लोगों कोयह समझाने में सफल हो रही हैकि वही बहुसंख्यक समाज की हितैषी है. बाकी सभी दल बहुसंख्यक की कीमत पर अल्पसंख्यकोंका तुष्टिकरण करते हैं.

इसलिए अगर विपक्ष अकेले अकेले चुनावी समर में जाता है, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला की बात सही लगती है कि वर्ष 2019 के चुनाव में विपक्ष के लिए कोई संभावना नहीं है. उसे 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी करनी चाहिए.

2014 में भाजपा+ ने किस राज्य में कितनी सीटें जीतीं

राज्य कुल सीटें भाजपा+

यूपी+उत्तराखंड 85 78

बिहार, झारखंड, मप्र, छत्तीसगढ़ 94 79

राजस्थान+गुजरात 51 51

महाराष्ट्र 48 41

कर्नाटक 28 17

हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल जैसे छोटे राज्यों में भी एनडीए का प्रदर्शन शानदार रहा.

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