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पटना : मॉनसून में 25% कम होगी बारिश

बेईमान मौसम. इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी पटना चैप्टर ने जारी किया पूर्वानुमान पटना : बिहार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर इस साल भी आसमानी संकट गहराने जा रहा है. दरअसल अल-नीनो की आहट ने मौसम विज्ञानियों को सकते में डाल दिया है. इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी ने कहा है कि इस साल साल अल-नीनो के सक्रिय होने […]

बेईमान मौसम. इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी पटना चैप्टर ने जारी किया पूर्वानुमान
पटना : बिहार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर इस साल भी आसमानी संकट गहराने जा रहा है. दरअसल अल-नीनो की आहट ने मौसम विज्ञानियों को सकते में डाल दिया है. इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी ने कहा है कि इस साल साल अल-नीनो के सक्रिय होने की पुख्ता संभावना है. इसका सीधा असर मॉनसूनी सक्रियता पर पड़ेगा. इससे बिहार समेत समूचे इस्टर्न गंगेटिक प्लेन में मॉनसूनी बारिश में 25 फीसदी की कमी हो सकती है.
फसल हो सकती है प्रभावित : इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी की रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई से अगस्त तक की बारिश सबसे ज्यादा प्रभावित होगी.
सोसाइटी का यह पूर्वानुमान आइएमडी और साउथ कोरियन मैथमेटिकल मॉडल पर आधारित है. बारिश की इस कमी से बिहार में धान की फसल बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. ऐसी स्थिति में किसानों को अभी अलर्ट किये जाने की जरूरत है. कम पानी वाली फसलों पर फोकस करने की जरूरत पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके. जानकारी हो कि अल-नीनो के प्रभाव से न केवल बारिश में कमी आती है, बल्कि प्रति हेक्टेयर उत्पादन में गिरावट होती है.
इस बार अल-नीनो के सक्रिय होने की पूरी संभावना
अल-नीनो एक मौसमी दशा है, जो प्रशांत महासागर में घटती है. वहां शून्य से एक डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में इजाफा होते ही कुछ खास हवाएं बनती हैं, जो दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून को प्रभावित करती हैं.
इससे कहीं बारिश होती है, तो कहीं सूखा पड़ता है. चूंकि भारत में दक्षिण पश्चिमी मॉनसून को ही मॉनसूनी सीजन कहा जाता है, क्योंकि जून से सितंबर तक 70 फीसदी बारिश इन्हीं चार महीनों के दौरान होती है. लिहाजा भारत में अल-नीनो के कारण सूखे का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. वर्ष 2000 के बाद से सभी चार अल-नीनो वाले सालों ने भारत में बारिश पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. इसमें 2004 में इसका असर सबसे ज्यादा देखा गया था. 2004 में मॉनसूनी बारिश सामान्य से 14 फीसदी कम रही थी. हाल के वर्षों की बात करें, तो 2012 और 2014 में मॉनसून पर इसका असर पड़ा था.
इस साल अल-नीनो के सक्रिय होने के पुख्ता संकेत हैं. आइएमडी कुछ भी कहे, लेकिन मौसमी दशाओं का अध्ययन बताता है कि इस साल 25 फीसदी बारिश कम हो सकती है. इस साल बिहार सहित समूचा पूर्वी गंगेटिक मैदान सबसे ज्यादा प्रभावित होगा. धान की फसल प्रभावित हो सकती है.
डॉ प्रधान पार्थ सारथी, अध्यक्ष इंडियन मेटेरोलॉजिकल सोसाइटी, पटना चैप्टर

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