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पटना : चुनाव परिणाम से छोटी पार्टियों की बढ़ेगी दावेदारी

छोटे दलों को तवज्जो दिये बिना अब बड़े दल मजबूत नहीं हो पायेंगे पटना : पांच राज्याें में आये चुनाव परिणाम से बड़े दल अब छोटी पार्टियों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं. छोटे दलों को तवज्जो दिये बिना अब बड़े दल मजबूत नहीं हो पायेंगे. राज्य में दो बड़े घटक दलों में एनडीए व […]

छोटे दलों को तवज्जो दिये बिना अब बड़े दल मजबूत नहीं हो पायेंगे
पटना : पांच राज्याें में आये चुनाव परिणाम से बड़े दल अब छोटी पार्टियों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं. छोटे दलों को तवज्जो दिये बिना अब बड़े दल मजबूत नहीं हो पायेंगे. राज्य में दो बड़े घटक दलों में एनडीए व महागठबंधन है.
एनडीए से रालोसपा के चले जाने के बाद अब इसमें भाजपा, जदयू व लोजपा शामिल हैं. चुनाव परिणाम आने पर अब उपेंद्र कुशवाहा को लेकर एनडीए भी सोचने को मजबूर होगी. आने वाले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के बड़े दल राजद व कांग्रेस छोटी पार्टियों को शामिल करने को लेकर मंथन कर सकती है.
महागठबंधन में इन दोनों बड़े दलों के अलावा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, लोकतांत्रिक जनता दल सहित वामदल शामिल हैं. माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा भी महागठबंधन के पार्टनर बन सकते हैं. कांग्रेस को भी उपेंद्र कुशवाहा के शामिल होने पर कोई ऐतराज नहीं है. यह दीगर बात है कि उपेंद्र कुशवाहा के शामिल होने से सीटों के बंटवारे में फर्क पड़ेगा.
सभी सीटों को लेकर हो रही तैयारी: एनडीए को शिकस्त देने के लिए महागठबंधन सभी लोकसभा सीटों की तैयारी कर रही है. महागठबंधन में शामिल दल के नेता अपने-अपने तरीके से क्षेत्रों में कार्यक्रम कर रहे हैं. जातीय समीकरण से लेकर सभी चीजों पर मंथन किया जा रहा है, ताकि हर मामले में फिट बैठनेवाले उम्मीदवार को मौका दिया जाये और जीत सुनिश्चित हो सके. इससे अलग महागठबंधन में शामिल दल अपने को आगे रखने की होड़ में भी लगे हैं.
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के अलावा पूर्व मंत्री वृशिण पटेल भी रेस में हैं. लोकतांत्रिक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के अलावा अर्जुन राय भी अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं. सपा के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव व श्रीभगवान प्रभाकर ताक लगाये बैठे हैं.
…जनतंत्र के हित में है यह फैसला
पहले जो संभावनाएं दिखी थीं, वही हुआ. बीजेपी लूज हो गयी है. बीजेपी का प्रभाव घटा है. मोदी की चमक घटी है. यह पहले से ही दिख रहा है. निगेटिव वोट बैंक बढ़ा है. 15-15 साल शासन करने के बाद सत्ता विरोधी वोट पड़े. बदलाव के कारण वोट पड़े.
प्रो एनके चौधरी, अर्थशास्त्री
इस परिणाम से भ्रम दूर हुआ है, मोदी को भी विपक्षी एकता मात दे सकती है. तीन राज्यों के परिणामों से कांग्रेस को संजीवनी मिली है. दो राज्यों में सत्ता विरोधी मत रहा है. इसमें कई चीजों को बीजेपी प्रोजेक्ट नहीं कर पायी. किसानों में नाराजगी व्याप्त है.
डॉ राकेश रंजन, शिक्षक, पीयू पीजी पॉलिटिकल साइंस
परिणाम आने से कई बातें स्पष्ट हैं. इसमें केंद्र सरकार भी काफी दोषी है. मोदी द्वारा युवाओं हेतु की गयी रोजगार गारंटी का पूरा नहीं होना, नोटबंदी के कारण व्यवसाय प्रभावित होना. कई वायदे पूरे नहीं हुए. ये सभी हार के कारण बने. नोटा ने भी बीजेपी को हराने में अधिक भूमिका निभायी है. इसके साथ भाजपा ने जो भी कार्य किया वह जनता के सामने नहीं रख सकी.
– गरिमा श्री, पीयू पीजी पॉलिटिकल साइंस, पूर्व छात्रा
तीन राज्यों में चौंकाने वाले परिणाम आये हैं. बीजेपी के लिए यह एक सबक है. जिस तरह से आम जनता के बीच जाकर कभी हिंदुत्व के नाम तो कभी रिजर्वेशन तो कभी एससी, एसटी एक्ट के नाम पर आम जनता को बांटने का काम किया है.
अंशुमान, पूर्व उपाध्यक्ष, पीयू छात्र संघकांग्रेस की जीत नहीं बल्कि बीजेपी की हार है.
आम मतदाता व लोगों को सरकार संतुष्ट नहीं कर पायी है. जो जनता की नहीं सुनेगा उसका यही हाल होगा.
-डॉ रत्नेश चौधरी, आईजीआईएमएस
चुनाव पर प्रतिक्रिया
लोगों को भाजपा से काफी अधिक उम्मीद हो गयी थी. वह उम्मीद पूरी नहीं हो पायी थी. उसका परिणाम भाजपा को उठाना पड़ा है. जहां तक राजस्थान व मध्य प्रदेश की बात है, तो वहां जीएसटी का असर हो सकता है. 2019 में होने वाली लोकसभा चुनाव का सवाल है, तो इसका असर पड़ सकता है.
पीके अग्रवाल,अध्यक्ष, बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज
आज संपन्न हुए आम चुनाव के परिणाम से लोग हैरान हैं. यह चुनाव परिणाम न किसी की हार है न किसी की जीत. जनता ने गोकशी, हिंदू-मुस्लिम, राम मंदिर एवं दबंगई से माहौल बिगाड़ने वाले को करारा जवाब दिया है. अगले साल होने वाले चुनाव में भाजपा को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.
रमेश तलरेजा, महासचिव, बिहार खुदरा विक्रेता महासंघ
कारण छोटे-छोटे व्यवसायी हैं, जो नोटबंदी और जीएसटी के कारण काफी त्रस्त हैं. यही नहीं किसान को अपनी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है. इसका सीधा असर मध्य प्रदेश व राजस्थान के विधान सभा चुनाव में देखने को मिला है. लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किसानों को वादा पूरा करने में कितना समर्थ होती है.
नवीन कुमार, महामंत्री, बिहार खाद्यान्न व्यवसायी संघ
अगर सरकार अच्छा काम नहीं करेगी तो जनता उसका हिसाब जरूर लेती है. राजस्थान में तो एक पैटर्न के रूप में हर बार सरकार बदलती है. -डॉ सुनील कुमार सिंह, नेत्र रोग विशेषज्ञ.

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