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पटना : दबाव बढ़ा तो गलत जानकारी देकर रेरा को गुमराह करने लगे बिल्डर

जांच कर होगी कार्रवाई, अलग-अलग विभागों के अफसरों की बनेगी टीम पटना : रजिस्ट्रेशन का दबाव झेल रहे बिल्डरों ने अब बिहार रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) को गुमराह करने का नया तरीका ढूंढ़ निकाला है. एेसे बिल्डर रजिस्ट्रेशन के वक्त सौंपे जाने वाले कागजात में जानकारियां ही गलत दे रहे हैं, ताकि तत्काल कार्रवाई […]

जांच कर होगी कार्रवाई, अलग-अलग विभागों के अफसरों की बनेगी टीम
पटना : रजिस्ट्रेशन का दबाव झेल रहे बिल्डरों ने अब बिहार रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) को गुमराह करने का नया तरीका ढूंढ़ निकाला है. एेसे बिल्डर रजिस्ट्रेशन के वक्त सौंपे जाने वाले कागजात में जानकारियां ही गलत दे रहे हैं, ताकि तत्काल कार्रवाई से बचा जा सके.
हाल ही में जांच के दौरान पाया गया कि एक रियल इस्टेट कंपनी ने प्रोजेक्ट से संबंधित जो बैंक
खाता नंबर बताया था, उसका अस्तित्व ही नहीं है. इस मामले में कार्रवाई करते हुए प्रोजेक्ट की बुकिंग व बिक्री पर तत्काल रोक लगा दी गयी है. ऐसे मामलों से निबटने के लिए अथॉरिटी अब विभिन्न विभागों के अधिकारियों की टीम बना कर प्रोजेक्ट की भौतिक जांच कराने पर विचार कर रहा है. जांच में गड़बड़ी पाये जाने पर तत्काल कार्रवाई की जायेगी.
मैनपावर की कमी
गठन के बाद से ही बिहार रेरा मैनपावर व संसाधनों की कमी से जूझ रहा है. इसके चलते बिल्डरों द्वारा जमा कराये गये कागजातों का फिजिकल वेरिफिकेशन संभव नहीं हो पाता. इससे प्रोजेक्ट के क्लियरेंस में भी दिक्कत होती है.
बिल्डरों द्वारा दिये गये कागजातों के झोल की वजह से ही वर्तमान में ऑनलाइन हुए 550 से अधिक आवेदन में से तीन चौथाई स्वीकृति के इंतजार में पड़े हुए हैं. मैनपावर की कमी को दूर करने के लिए रेरा ने करीब चार महीने पहले ही नगर विकास एवं आवास विभाग को चिट्ठी लिखी थी, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं हो सकी.
बैंक पासबुक की जगह लगा रहे डीडी
रजिस्ट्रेशन के वक्त बिल्डरों को लगभग दो दर्जन कागजात जमा कराने की आवश्यकता होती है. इसमें कंपनी का पिछले पांच साल की प्रोजेक्ट हिस्ट्री, बैंक अकाउंट पासबुक की फोटो कॉपी, मंजूर बिल्डिंग प्लान, प्रोजेक्ट की जानकारी, ड्राफ्ट एग्रीमेंट, गैरेज, पार्किंग आदि डिटेल शामिल हैं.
लेकिन बिल्डर चालाकी करते हुए बैंक अकाउंट पासबुक की जगह डिमांड ड्राफ्ट (डीडी) लगा दे रहे हैं, जिससे उनका खाता नंबर वेरिफाई नहीं हो पा रहा है. बैंक खाता इसलिए अनिवार्य है, क्योंकि प्रोजेक्ट की 70 फीसदी राशि इसी में रखा जानी है. साथ ही प्रोजेक्ट हिस्ट्री में बिल्डर अधूरे प्रोजेक्ट को भी पूरा बता रहे हैं.
उनके द्वारा कंपलीशन या ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है. रेरा रजिस्ट्रेशन में पार्किंग संबंधित जानकारियां भी गलत दी जा रही है. आमतौर पर अपार्टमेंट में ग्राहकों को पार्किंग स्पेस अलग से बेचा जाता है, लेकिन बिल्डर रजिस्ट्रेशन में इसे फ्लैट के साथ ही दिये जाने की बात कही जा रही है.

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