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पटना : सुविधा ही नहीं, ट्रेन रोक कर शौच करने को मजबूर हैं लोको पायलट

प्रभात रंजन सुरक्षित यात्रा कराने वाली ट्रेन खुद सुविधाओं से वंचित, सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम में होती है काफी परेशानी पटना : एक्सप्रेस व इंटरसिटी ट्रेनों में 16 से 22 डिब्बों का समायोजन होता है. इन डिब्बों में डेढ़ हजार से अधिक यात्री सवार होते हैं और यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ट्रेन […]

प्रभात रंजन
सुरक्षित यात्रा कराने वाली ट्रेन खुद सुविधाओं से वंचित, सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम में होती है काफी परेशानी
पटना : एक्सप्रेस व इंटरसिटी ट्रेनों में 16 से 22 डिब्बों का समायोजन होता है. इन डिब्बों में डेढ़ हजार से अधिक यात्री सवार होते हैं और यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ट्रेन इंजन में तैनात लोको पायलट व सहायक लोको पायलट यानी रेल ड्राइवर की होती है. लेकिन, रेल इंजन में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है. इससे सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम में लोको पायलटों को ड्यूटी में असहनीय परेशानी होती है. इसके बावजूद लोको पायलट सुविधाओं की अनदेखी कर सफलतापूर्वक ड्यूटी करते हैं. लेकिन, इंजन में व्याप्त असुविधाओं को दूर करने में रेलवे प्रशासन अब तक नाकाम साबित हो रहा है.
एक्सप्रेस ट्रेनों के लोको पायलटों को होती है ज्यादा परेशानी
पटना-एर्णाकुलम एक्सप्रेस में लोको पायलट की ड्यूटी 5:30 घंटे की होती है. ट्रेनों का ठहराव आधे घंटे की रनिंग टाइम पर पटना साहिब, बख्तियारपुर, मोकामा, किऊल व झाझा में है. लेकिन, किसी स्टेशन पर यह दो मिनट तो किसी स्टेशन पर पांच मिनट ही रुकती है. ऐसे में लोको पायलट को शौच महसूस होने पर ड्यूटी खत्म होने का इंतजार करना पड़ता है. वहीं, पटना-हटिया पाटलिपुत्र एक्सप्रेस में लोको पायलट की ड्यूटी हटिया तक लगती है. लोको पायलट बताते है कि जंग लड़ने जैसी ड्यूटी है. चलती ट्रेन में शौच महसूस होने लगे, तो स्टेशन आने या फिर ड्यूटी खत्म करने का इंतजार करना पड़ता है. कभी-कभी ट्रेन रोक कर शौच करने को मजबूर होते हैं. यह स्थिति सिर्फ पटना-एर्णाकुलम व पाटलिपुत्र एक्सप्रेस की इंजन में तैनात लोको पायलटों की नहीं है, बल्कि राजधानी एक्सप्रेस, संपूर्णक्रांति एक्सप्रेस व दुरंतो एक्सप्रेस ट्रेन के इंजन की भी है.
इंजन में नहीं है टॉयलेट की व्यवस्था : ट्रेन के एसी डिब्बे से लेकर गार्ड के डिब्बे तक टॉयलेट की व्यवस्था की गयी है, ताकि सफर के दौरान यात्रियों को शौच की असुविधा नहीं हो सके. लेकिन, रेल इंजन में टॉयलेट की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. ड्यूटी में तैनात लोको व सहायक पायलट को पेशाब या फिर शौच महसूस होने पर ट्रेन रुकने तक इंतजार करना पड़ता है और वे स्टेशन के शौचालय का उपयोग करने को मजबूर होते हैं.
गर्मी में पांच डिग्री बढ़ जाता है इंजन का तापमान
इलेक्ट्रिक इंजन हो या फिर डीजल इंजन. इन इंजनों में सुविधा के नाम पर सिर्फ दो कुर्सियां और दो छोटे पंखे लगे हैं. गर्मी के दिनों में लोको पायलट की ड्यूटी और असहनीय हो जाती है. इसकी वजह यह है कि बाहरी वातावरण का तापमान और इंजन की गर्मी से लोको पायलट केबिन का तापमान बाहरी तापमान से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है.
तीखी गर्मी से बचने के लिए सिर्फ दो छोटे पंखे लगे हैं, जो पर्याप्त नहीं हैं. वहीं, बारिश के मौसम में सफर के दौरान तेज बारिश शुरू हो गयी, तो छत से पानी का रिसाव होने लगता है और टप-टप पानी गिरने लगता है. इतना ही नहीं, खिड़की से भी पानी के छींटे आने लगते हैं. इस स्थिति में लोको पायलटों का केबिन में खड़ा होना मुश्किल हो जाता है.

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