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नीति आयोग को झुठला रही बिहार की रफ्तार, पिछले डेढ़ दशक में सभी क्षेत्रों में तेजी से हुआ विकास

पिछले डेढ़ दशक में सभी क्षेत्रों में तेजी से हुआ विकास बिहार में पिछले डेढ़ दशक में हुआ विकास नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के इस बयान को गलत साबित करता है कि बिहार के कारण भारत पिछड़ा हुआ है. अंग्रेजों के समय से चले आ रहे भेदभाव के बावजूद बिहार ने पिछले करीब […]

पिछले डेढ़ दशक में सभी क्षेत्रों में तेजी से हुआ विकास
बिहार में पिछले डेढ़ दशक में हुआ विकास नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के इस बयान को गलत साबित करता है कि बिहार के कारण भारत पिछड़ा हुआ है.
अंग्रेजों के समय से चले आ रहे भेदभाव के बावजूद बिहार ने पिछले करीब डेढ़ दशक के दौरान सभी क्षेत्रों में तेजी से विकास किया है. चाहे शिक्षा हो या स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा हो या महिला सशक्तीकरण, विकास दर हो या प्रति व्यक्ति आय, सभी क्षेत्रों में स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है. राज्य की विकास दर हाल के वर्षों में काफी ऊंची रही है.
कुछ वर्षों में विकास दर तो दो अंकों में रही है. राज्य के प्रति व्यक्ति विकास व्यय में 2011-12 से 2016-17 के बीच लगातार ऊपर जाने का रुझान रहा है. बिहार में हाल के वर्षों में स्वास्थ्य संबंधी मानकों में काफी सुधार हुआ है. सरकारी अस्पताल पहुंचने वाले रोगियों की औसत मासिक संख्या 13 हजार तक पहुंच गयी है.
सरकारी अस्पतालों पर भरोसा बढ़ा है. संस्थागत प्रसव की संख्या 2016-17 में बढ़कर 15.45 लाख हो गयी है. राज्य में पिछले दशक की तुलना में साक्षरता में भी सुधार हुआ है. वर्ष 2001 में राज्य की साक्षरता दर 47 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 61.8 प्रतिशत हो गयी है.
पूर्ण विद्युतीकरण के करीब पहुंचा बिहार
पावरहोल्डिंग कंपनी के अनुसार बिहार में 39,073 गांव हैं. 12 साल पहले साल 2005 में राज्य के 70 से 80 फीसदी गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी. इसके अलावा 96 फीसदी घरों में अंधेरा था. वर्ष 2015 में सिर्फ 2747 गांवों में बिजली नहीं थी.
वर्ष 2015-16 व 2016-17 में इनमें 2310 गांवों में बिजली पहुंचायी गयी. साथ ही वर्ष 2017-18 में 326 गांवों में बिजली पहुंचायी गयी. अब सिर्फ 111 गांव रह गये हैं, जिनमें दिसंबर 2018 तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है.
सड़कों की स्थिति में हुआ सुधार
बिहार में सड़कों के निर्माण में पिछले एक दशक में काफी वृद्धि हुई है. राज्य के किसी कोने से पांच घंटे में पटना पहुंचने के लक्ष्य के अनुसार सड़कों का विकास हो रहा है.
इसमें नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे व जिला सड़कें शामिल हैं. सभी स्टेट हाइवे को सात मीटर चौड़ा करने का काम फेज वाइज हो रहा है. ढाई सौ की आबादी वाले टोले को भी बारहमासी सड़क से जोड़ने का काम हो रहा है. राज्य में वर्ष 2006-07 में नेशनल हाइवे 3629 किलोमीटर, स्टेट हाइवे 3232 किलोमीटर व जिला सड़कें 7714 किलोमीटर थीं.
वहीं 2017-18 में नेशनल हाईवे 4917 किलोमीटर, स्टेट हाईवे 4005 किलोमीटर व जिला सड़कें 11,145 किलोमीटर हो गयीं. राज्य में सभी प्रकार की कुल 20 हजार 68 किलोमीटर सड़कें हैं, जो पथ निर्माण विभाग के जिम्मे हैं.
सरकारी स्कूलों में ड्रॉप आउट घटकर 1.5%
राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ है. वर्ष 2005 में जहां सरकारी स्कूलों में ड्रॉप ऑउट रेट 22 फीसदी होता था, वह वर्तमान वर्ष में घटकर 1.5 फीसदी के आसपास रह गया है. यानी नामांकन के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या अब महज डेढ़ फीसदी रह गयी है.
मातृ-शिशु मृत्यु दर में आयी कमी
पिछले एक दशक के भीतर राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है. संस्थागत प्रसव में बढ़ोतरी और अस्पतालों में सुविधा बढ़ने से मातृ- शिशु मृत्यु दर में कमी आयी. राज्य में 2005-06 में संस्थागत प्रसव की दर 19.9 फीसदी थी, जो साल 2015-16 में बढ़कर 63.8 प्रतिशत हो गयी. इसी तरह 2001-03 में राज्य में मातृ मृत्यु दर 371 थी जो 2011-13 में घटकर 208 हो गयी. राज्य में टीकाकरण कवरेज भी बढ़ा है.
2002 में यह 11.6 प्रतिशत था जो 2016-17 में बढ़कर 84 प्रतिशत हो गया. 2010 के बाद राज्य में एक भी पोलियो का केस नहीं आया है.
2006-07 में सरकारी अस्पतालों में ओपीडी में 105 मरीज हर महीने आते थे. 2015-16 में यह संख्या 13 हजार हो गयी. 2005- 06 में सकल प्रजनन दर 4 थी जो 2015-16 में घटकर 3.4 हो गयी.
पंचायत और सरकारी नौकरी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
बिहार देश का पहला राज्य है, जहां सबसे पहले पंचायत व शहरी निकाय चुनावों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया गया है. वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार बनने के बाद लिये गये इस फैसले का असर काफी व्यापक हुआ और 27 साल बाद जब 2006 एवं 2007 में पहली बार पंचायत और नगर निकाये चुनाव हुए, तो बड़ी संख्या में महिला जनप्रतिनिधि जीत कर आयी.
इसने ग्रामीण स्तर पर महिला सशक्तीकरण को बड़ा बल दिया और ग्राम सरकार के गठन की सशक्त भूमिका का निर्वहन किया इसी तरह सरकारी नौकरियों में भी सभी वर्गों की महिलाओं को 35% आरक्षण लागू किया गया है. इसका सबसे बड़ा असर कई तरह की सरकारी नौकरियों में हुई बहाली में भी देखा गया. नियोजित शिक्षक, आंगनबाड़ी से लेकर सिपाही बहाली में बड़ी संख्या में महिलाएं बहाल होकर आयी.
विशेषज्ञों और जानाकरों की राय
कोई भी राज्य अपेक्षित तरक्की नहीं कर पाता है तो उसमें नीति आयोग की विफलता
नीति आयोग के इस बयान का राजनीतिक लाभ उठाने के बजाय हमें इसके गंभीर पहलुओं पर ध्यान देना होगा नीति आयोग के कहने का मतलब यह है कि बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के विकास का सच राष्ट्रीय औसत से कम है. निश्चित रूप से यदि किसी भी राज्य का विकास राष्ट्रीय औसत से कम होता है तो वह पूरी औसत विकास को कम कर देता है.
हमें ऐसे राज्य जिनका विकास का औसत राष्ट्रीय औसत से कम है उनके विकास के लिए विशेष प्रयास करने होंगे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई मौकों पर बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग की है. इस मांग को केंद्र सरकार को विशेष ध्यान देना होगा ताकि राज्य के विकास का औसत पश्चिम के राज्य के समकक्ष आ सके. बिहार हमेशा से औद्योगिकरण की दौड़ में पिछड़ा राज्य रहा है जबकि पश्चिम के राज्यों ने औद्योगिकरण में काफी प्रगति की है.
उद्योग न सिर्फ नये रोजगार का सृजन करता है बल्कि राज्य के राजस्व में भी बड़ी भागीदारी निभाता है लेकिन कई वजह से बिहार में उद्योग की स्थापना नहीं हो सकी, बल्कि कुछ पुराने उद्योग जैसे सिल्क इंडस्ट्री शुगर इंडस्ट्री इत्यादि कालांतर में बंद होते चले गये. आधारभूत संरचना के विकसित नहीं हो पाने की वजह से यहां पर उद्योग की स्थापना को लेकर बड़े उद्योगपतियों में उत्साह नहीं है.
राज्य सरकार ने कई मौकों पर प्रयास किये, लेकिन अपेक्षित पूंजी निवेश आकर्षित नहीं हो सका. आज भी यहां कई प्रकार के उद्योग पर्यटन इत्यादि के क्षेत्र में संभावना हैं. यदि केंद्र सरकार और नीति आयोग इस दिशा में नीतियां बनाकर प्रयास करें तो राष्ट्र के विकास दर को भी बहुत आगे ले जाने की क्षमता रखेंगे और सच है कि इन राज्यों को जब तक त्वरित विकास के लिए प्रवृत्त नहीं किया जायेगा तब तक राष्ट्रीय औसत भी नीचे ही रहेगा.
यदि कोई भी राज्य अपेक्षित तरक्की नहीं कर पाता है तो उसमें सरकार और विशेषकर नीति आयोग की विफलता माना जा सकता है. अतः जरूरी है कि नीति आयोग इस दिशा में गंभीर हो और अपने ही बयान का संज्ञान लेते हुए ऐसे राज्यों के लिए विशेष नीतियां तैयार करें.
राजेश खेतान, पूर्व अध्यक्ष, आईसीएआई, पटना ब्रांच
नीति आयोग को सतही कामों के लिए बनाया गया
केंद्र सरकार ने देश में कोई बौद्धिक मूल्यांकन व्यवस्था न रहे, इसलिए ही योजना आयोग को खत्म किया था. आज कुछ जो भी कहा जा रहा है यह अबौद्धिकिता की पराकाष्ठा है. हमें आश्चर्य नहीं हो रहा है कि नीति आयोग को सतही कामों के लिए बनाया गया, यहां पर बौद्धिक आलोचना की कोई गुंजाइश नहीं है और न ही सरकार ही नीति बौद्धिक आलोचना के लिए सहनशील है.
अगर ऐसा होता तो योजना आयोग को मजबूत किया जाता. उसे झटके में खत्म नहीं की जाता. नीति आयोग के सीओ का बयान विकास के आलोचनात्मक दृष्टि, वित्तीय आयोग के निष्कर्ष और क्षेत्रीय असामन्यताओं के निर्धारक तत्वों के विश्लेषण की अनदेखी है. बिहार जैसे गरीब और पिछड़े राज्यों को केंद्र से मिलने वाला सहायता और निवेश को बढ़ाने के बजाये सरकारी विद्यालय बंद हो रहे हैं. निजी उद्योग को सहुलियतें दी जा रही हैं.
छोटे उद्यमी और कारोबारी परेशान है. खेती बदहाल है. इन परिस्थितियों में विकास के मूल समस्याओं और उनके निर्धारक तत्वों की आलोचनात्मक समीक्षा के बजाये. गरीब राज्यों के ऊपर पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराना. यह बौद्धिक नासमझी और संस्थानिक जिम्मेदारी से आंख बंद करना है. आज देश जिस मोड़ पर खड़ा है.
जरूरत इसकी थी कि योजना आयोग के तर्ज पर नीति आयोग के तर्ज पर आयोग विकास की नीतियों की समीक्षा करता,और केंद्र सरकार को आलोचनात्मक मार्गदर्शन के साथ साहस पूर्ण कदम उठाने के लिए सलाह देते.
डीएम दिवाकर, पूर्व निदेशक, ए एन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान, पटना
राजनीति भी गरमायी
हैरत करनेवाला है नीति आयोग के सीईओ का बयान: संजय सिंह
जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का विचार हैरत पैदा कर रहा है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री अरुण जेटली तक बिहार की विकास गति के कायल हैं.
ऐसे में नीति आयोग के सीईओ का यह बयान कि देश के पिछड़ेपन का कारण बिहार जैसे राज्य हैं. सच तो यह है कि बिहार देश के पिछड़ेपन की नहीं, बल्कि विकास का वाहक है. जदयू प्रवक्ता ने कहा कि अमिताभ कांत की शिक्षा राष्ट्रीय राजधानी में हुई है. देश की सर्वोच्च सेवा में योगदान दिया है.
अब नीति आयोग में सीईओ के पद पर हैं. उन्हें दिल्ली से हटकर देश के दूसरे राज्यों की स्थिति और उन राज्यों के सामने मौजूद परिस्थितियों का भी आकलन करना चाहिए. देश की विकास गति से भी तेज विकास दर वर्तमान में बिहार का है. बिहार की भौगोलिक बनावट और उसकी चुनौतियों पर भी ध्यान देना होगा. बिहार की आधी से ज्यादा आबादी साल के चार महीने बाढ़ की त्रासदी को झेलती है. फिर भी एक आम बिहारी की मेहनत और उसके संकल्प पर संदेह नहीं किया जा सकता.
यह बिहारी श्रम ही है जो पंजाब और हरियाणा में कृषि क्रांति लेकर आया. सच तो यह है कि एक मां की कोख से जन्म लेने वाले बच्चों में असमानता होती है. इसका मतलब कतई यह नहीं होता कि मां कमजोर बच्चे को छोड़ देती है. कमजोर को ज्यादा अवसर और समर्थन मिलना चाहिए. दुर्भाग्य है कि पूर्व की सरकारों ने अपेक्षित समर्थन बिहार को नहीं दिया. बिहार का नेतृत्व जब से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संभाला है, तब से लगातार विकास की गति ने रफ्तार पकड़ी है.
नीति आयोग ने दिया गैर जिम्मेदाराना बयान: तेजस्वी
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि अमिताभ कांत ने अज्ञानतावश बड़े ही दुर्भाग्यपूर्ण रूप से एक गैरजिम्मेदाराना बयान दिया है. इसमें बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों ने ही देश में प्रगति के रफ्तार को कम कर दिया है.
यह साफ दिखाता है कि नीति आयोग के अधिकारी देश की सामाजिक-आर्थिक जमीनी हकीकत से एकदम अनजान हैं. यही कारण है कि अभी तक नीति आयोग ने सिर्फ बहानेबाजी और समस्याएं गिनाने के अलावा और कुछ नहीं किया है. तेजस्वी ने कहा कि नीति आयोग ने एक तरह से नीतीश कुमार के बिहार मॉडल की धज्जियां उड़ा दी हैं. एमपी, छत्तीसगढ़ में तो 15 साल से भाजपाई सरकारें हैं. बिहार और बिहारी बराबर टैक्स देते हैं. राष्ट्र निर्माण में बराबर हिस्सेदारी रखते हैं.
एनडीए को बिहार ने 33 सांसद दिये हैं. सात केंद्रीय मंत्री बिहार से आते हैं. केंद्र और बिहार एक ही गठबंधन की सरकार है. फिर बाबू (अफसर) कहते हैं कि बिहार पिछड़ा हुआ है जो कि राज्य में तेरह साल से भाजपा और जदयू की तथाकथित ब्रांड बिहार वाली सुशासन सरकार है.
नीति आयोग के इस बयान पर मुख्यमंत्री सामने आएं और बिहार की जनता को बताएं कि नीति आयोग झूठ बोल रहा है. जिस बिहार के लोग राष्ट्र की समृद्धि और सामरिक शक्ति में वृद्धि करते हैं, उनके योगदान को कमतर आंक कर नीति आयोग ने बिहारी अस्मिता और कर्मठता को अपशब्द कहा है.
इसके पीछे ऐतिहासिक और राजनीतिक कारण
नीति आयोग ने वहीं कहा है जिस बात को हम दशकों से कहते आ रहे है. भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में पूर्वी भारत के राज्यों का विकास उस गति से नहीं हुआ, जिस गति से पश्चिमी अौर दक्षिणी भारत का हुआ. जिसके पीछे ऐतिहासिक और राजनीतिक कारण है. आज तक ग्रामीण क्षेत्रों में वह बदलाव नहीं हो सका है जिसकी उम्मीद थी.
और न ही औद्योगिकरण भी नहीं हो सका बिहार में. वैसे आजादी के बाद कुछ आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास का आधार रखा गया. लेकिन लालू शासन में आर्थिक विकास का मुद्दा पूरी तरह गौण रहा. जबकि सामाजिक विकास पर विशेष फोकस रहा. नीतीश कुमार के शासन में आर्थिक विकास में प्रगति हुई. साथ ही सामाजिक और शैक्षणिक विकास हुआ.
एनके चौधरी, आर्थिक विशेषज्ञ

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