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पटना :सावधान! शहर की आबोहवा में अब भी प्रदूषण का टेंशन बरकरार

पटना : पटना शहर में हवा की गुणवत्ता बनाये रखना अभी बड़ी चुनौती है. हालात ये हैं कि पटना शहर की आबोहवा में पीएम 2.5 सामान्य से कहीं ज्यादा है. इसके चलते खास तौर पर सांस लेने में दिक्कत और उससे जुड़ी दिक्कतें पहचानी भी गयी हैं.हालांकि मुजफ्फरपुर और गया में वायु प्रदूषण घटा है. […]

पटना : पटना शहर में हवा की गुणवत्ता बनाये रखना अभी बड़ी चुनौती है. हालात ये हैं कि पटना शहर की आबोहवा में पीएम 2.5 सामान्य से कहीं ज्यादा है. इसके चलते खास तौर पर सांस लेने में दिक्कत और उससे जुड़ी दिक्कतें पहचानी भी गयी हैं.हालांकि मुजफ्फरपुर और गया में वायु प्रदूषण घटा है. बिहार प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने उसे संतोषजनक की श्रेणी में रखा है. जहां तक पटना में हवा की इंडेक्स वैल्यू का सवाल है वह मोडरेट बनी हुई है.
डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया के शीर्ष प्रदूषित पांच शहरों में पटना और गया में पीएम 2.5 का लेवल क्रमश: 144 और 149 एमजी प्रति क्यूबिक मीटर था. हालांकि उस समय से आज की स्थिति सुधरी हुई है. इसके बावजूद संतोषजनक स्थिति में पहुंचने के लिए काफी कुछ करना होगा.
कई विभागों को जिम्मेदारियां : प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक्शन प्लान इसी साल अप्रैल में जारी हुई. इसके तहत हवा की गुणवत्ता के सुधार के लिए प्रभावी किये गये एक्शन प्लान में कई विभागों को जिम्मेदारियां दी गयी थीं. उदाहरण के लिए जून 2018 तक एलपीजी/सीएनजी जैसे साफ सुथरे ईंधन को शहर में लाना था. ऐसा अभी तक नहीं हो सका.
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक पटना में हवा का इंडेक्स वैल्यू 104 काफी दिनों से बना है. यह प्रदूषण की मोडरेट श्रेणी है. ये प्रदूषण के लिहाज से कतई संतोषजनक नहीं मानी जाती है. पीएम 2.5 की सहन योग्य नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम (माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर ) होती है. जबकि पटना में 16 सितंबर को इसकी मात्रा इससे कहीं ज्यादा 86 एमजीसीएम है.
हालांकि प्रदेश के दूसरे बड़े शहरों मसलन गया और मुजफ्फरपुर ने अपनी स्थिति में सुधार किया है. गया और मुजफ्फरपुर में हवा का इंडेक्स वैल्यू क्रमश: 71 और 99 है. ये दोनों ही संतोषजनक कैटेगरी में हैं. इन दोनों शहर में हवा की शुद्धता को प्रभावित करने वाले तत्व क्रमश: पीएम 10 और कार्बन ऑक्साइड हैं. ये आंकड़े 14 सितंबर से सोलह सितंबर के हैं.
क्या है पीएम 2.5 और उसका असर : पार्टिकुलेट मैटर 2.5 वायु के सबसे छोटे ठोस कण होते हैं. इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर होता है. यह साइज हवा की मोटाई से तीस गुना कम है. महीन होने की वजह से ये कण सीधे लिवर और लंग्स पर असर डालते हैं. खांसी, जुकाम, अस्थमा आदि बीमारियों की प्रबलता बढ़ जाती है. चूंकि पीएम 2.5 पार्टिकल गैस नहीं है इसलिए पेड़ के पत्ते भी इसकी प्रोसेसिंग नहीं कर पाते.
कैसे रोकें पीएम 2.5 के दुष्प्रभाव
कॉटन के मॉस्क का उपयोग करके कूड़े के ढेर को न जलाया जाये
डीजल की गाड़ियों की समय-समय पर जांच की जानी चाहिए
शहर में सोलर रेडिएशन भी चरम पर
प्रदूषण नियंत्रण बाेर्ड के आंकड़े बताते हैं कि शहर इस समय सामान्य से अधिक सोलर रेडिएशन झेल रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक शहर की आबोहवा में 16 सितंबर को सोलर रेडिएशन 404 वाट प्रति स्क्वेयर मीटर है जबकि इसकी अधिकतम आदर्श स्थिति इस सीजन में 95.72 वाट प्रति स्क्वेयर मीटर होनी चाहिए.

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