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बुद्धिजीवियों ने दी श्रद्धांजलि, कहा- साहित्य और राजनति के प्रतिबद्ध मार्क्सवादी पुल थे खगेंद्र ठाकुर

पटना : बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में प्रख्यात आलोचक खगेंद्र ठाकुर की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन शुक्रवार को किया गया. श्रद्धांजलि सभा का आयोजन राजधानी के जमाल रोड स्थित माध्यमिक शिक्षक संघ भवन सभागार में किया गया था. इसमें साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने भाग […]

पटना : बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में प्रख्यात आलोचक खगेंद्र ठाकुर की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन शुक्रवार को किया गया. श्रद्धांजलि सभा का आयोजन राजधानी के जमाल रोड स्थित माध्यमिक शिक्षक संघ भवन सभागार में किया गया था. इसमें साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.

पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर तरुण कुमार ने कहा ‘खगेंद्र जी जैसे सीधे, सरल और प्रगतिशीलता के लिए प्रतिबद्ध थे, वो विरले ही मिलते हैं.’ कथाकार संतोष दीक्षित ने उनके प्रति श्रद्धसुमन प्रकट करते हुए कहा, ‘खगेंद्र जी के नहीं रहने से एक बड़ी रिक्तता हुई है. आज मुझे भरोसा नहीं हो रहा है कि वे नहीं रहे.’

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा, ‘डॉ खगेंद्र ठाकुर मेरे शिक्षक थे. उन्होंने मुझे हिंदी सिखायी. उन्होंने मेरी पुस्तक की भूमिका भी लिखी है. उनसे मेरा पारिवारिक संबंध था और उनका नहीं रहना, मेरी अपूरणीय क्षति है. आज जो चुनौतियां हैं, उसका सामना करने के लिए उनका जीवन, लेखन हमारे लिए मशाल की तरह है.’

प्रगतिशील लेखक संघ में राज्य अध्यक्ष ब्रजकुमार पांडेय ने श्रद्धाजंलि सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘जीवन में मेरे दो बौद्धिक मित्र थे. दोनों मुझसे उम्र में छोटे थे. लेकिन, मुझसे अधिक बौद्धिक थे. एक गिरीश मिश्र और दूसरे खगेंद्र ठाकुर. दोनों ही मेरे अंतरंग मित्र थे. वे 60-65 के दौर में कम्युनिस्ट पार्टी में आये. उन्होंने साहित्य में जो मुकाम हासिल किया, वही मुकाम उन्होंने कम्युनिस्ट आंदोलन में हासिल किया. खगेंद्र जी की लोकप्रियता का इसी से पता चलता है कि उनके नहीं रहने पर भी लोगों को कई दिनों तक इस खबर पर भरोसा नहीं हुआ. बिहार या झारखंड का कोई स्थान नहीं है, जहां खगेंद्र जी नहीं गये. उनकी मृत्यु साधारण नहीं, ऐतिहासिक है. शायद ही किसी बौद्धिक व्यक्ति को ऐसे याद किया गया हो.’

प्रख्यात कवि आलोक धन्वा ने उन्हें याद करते हुए कहा, ‘मेरी खगेंद्र ठाकुर से 16 वर्ष की उम्र में भेंट हुई. वे मेरे घर भी आते थे. मुरारका कॉलेज में भी उनसे भेंट करने जाता था. अपने मतभेद को भी वे छिपाते नहीं थे. खुल कर बोलते थे. वे कवि तो थे ही, एक बड़े आलोचक भी थे. आलोज धन्वा ने एक लंबे समय तक अपने अंतरंग संबंधों का भी उल्लेख किया. एक पारिवारिक व्यक्ति की तरह आज उनकी कमी खल रही है.’ कथाकार व नाटकार ऋषीकेश सुलभ ने कहा, ‘मेरे जीवन के स्थायी दुखों में यह दुख भी जुड़ गया है. वे पुल की तरह थे, जिससे लोग पार उतरते रहे. वे सबको प्रिय थे. उनके सभी प्रिय थे.’

बिहार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव सत्यनारायण सिंह ने कहा, ‘वे सहजता के साधक थे. वे शिक्षक आंदोलन, पार्टी के स्तर पर और साहित्य के स्तर पर लगातार सक्रिय रहे. आज फासीवाद का हमला जब और तेज है, उनके नहीं रहने से बड़ा नुकसान हुआ.’ कहानीकार-उपन्यासकार अवधेश प्रीत ने कहा, ‘वे आज भी उपस्थित लगते हैं. इसीलिए शोक जैसा कुछ नहीं मेरे लिए. नये से नये लोगों को वे पढ़ते थे और खुल कर प्रशंसा भी करते थे. वे जितने गंभीर थे, उनमें उतना ही हास्यबोध भी था.

मुजफरपुर से आयीं कथाकार पूनम सिंह ने खगेंद्र ठाकुर को याद करते हुए कहा, ‘उनसे मेरा संपर्क 90 के दशक में हुआ. वे मेरे लिए पिता की तरह थे. हमेशा मुझे प्रोतसाहित करते रहे. मेरी पहली कहानी की पुस्तक की भूमिका उन्होंने ही लिखी थी. वे गति के हिमायती थे. उन्होंने मुझे प्रशिक्षित किया. उनके जैसी प्रतिबद्धता आज दुर्लभ है.’ कथांतर पत्रिका के संपादक राणाप्रताप ने कहा, ‘पटना से झारखंड तक कई कई गोष्ठियों, आंदोलनों में साथ-साथ रहे. साहित्य के साथ कोई एक्टिविस्ट होता है, तो उसकी दृष्टि अलग होती है. वह अकादमिक नजरिये से भिन्न होता है. यही हम सभी को प्रभावित करता है. उनसे लोग जो जुड़ाव महसूस करते हैं, वह उनके एक्टिविस्ट होने के कारण ही करते हैं. उनसे मेरा परिचय 70 के दशक से था. लेकिन, उनसे कभी सहमति नहीं बनी. आज जब असहमति का दौर समाप्त हो रहा हो, वैसे में खगेंद्र जी असहमति की आवाज बन हमेशा याद रहेंगे.’

बुजुर्ग कवि श्रीराम तिवारी ने खगेंद्र ठाकुर पर लिखी अपनी कविता का पाठ किया. उनका कहना था कि खगेंद्र ठाकुर प्रतिरोध की मजबूत आवाज थे.जनवादी लेखक संघ के सचिव विनिताभ जी ने भी खगेंद्र जी की लिखी कविता सुनायी. अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के नेता मंजुल कुमार दास ने खगेंद्र ठाकुर को अपना पड़ोसी बताते हुए कहा, ‘खगेंद्र जी मेरे पड़ोसी थे. मेरा पहला भाषण उनके सामने ही हुआ था. खगेंद्र जी का कहना था कि जहां तक विज्ञान नहीं पहुंचा, वहीं तक भगवान है. उन्होंने गोड्डा विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था.’

प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन ने खगेंद्र ठाकुर को याद करते हुए कहा, ‘खगेंद्र जी के साथ मेरा संबंध लंबा रहा. उनका संबंध मेरे साथ कई रूपों में था. साहित्य लेखन को उन्होंने पत्रकारिता के साथ जोड़ा. प्रगतिशील लेखक संघ, बिहार की चाबी खगेंद्र जी रहे. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि हर राज्य में एक खेगेंद्र ठाकुर हों, तो यह आंदोलन और सफल हो जायेगा. खेगेंद्र जी ने हर लेखक को तराशा. वे प्रगतिशील मूल्यों के साथ हमेशा खड़े रहे. एक अभियान का नाम थे खगेंद्र ठाकुर.’

जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष नीरज सिंह ने खगेंद्र ठाकुर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि खगेंद्र जी को लेकर मेरे पास बहुत सारी स्मृतियां हैं. उन्होंने विभिन्न आंदोलनों के अंतर संबंधों की चर्चा की. उनका कहना था कि ‘मेरा जुड़ाव उनसे अद्भुत था. हमने एक साथ अनेकों यात्राएं कीं. अलग-अलग संगठन से होते हुए भी उनसे कभी दुराव नहीं रहा. उनमें नेतृत्व क्षमता कमाल की थी. खगेंद्र जी ने साहित्य और वाम राजनीति की साधना की. इस प्रकार हम देखते हैं कि वे एक विरल व्यक्ति थे. वे हमेशा हमारे मार्गदर्शक रहेंगे.’

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर ने कहा, ‘मेरा खगेंद्र जी के साथ लंबा था. मैं कोई संगठन से जुड़ा नहीं हूं. लेकिन, खगेंद्र जी रचना को महत्व देते थे. उनका और मेरा साथ लगभग 50 वर्षों के था.’चर्चित कवि रमेश ऋतंभर ने कहा, ‘वे सबसे जुड़े रहे और सबको स्नेह बांटते रहे. खगेंद्र जी का व्यक्तित्व सबको जोड़ कर रखा. उनमें जो आत्मीयता थी, वह सबों को जोड़ कर रखती थी. वे पूर्णकालिक लेखक थे.’ रमेश ऋतम्भर ने अरुण कमल की खगेंद्र ठाकुर और लिखी कविता का पाठ किया.

श्रद्धांजलि सभा की शुरुआत खगेंद्र ठाकुर की तस्वीर पर माल्यार्पण के साथ हुई. राजधानी के जमाल रोड स्थित माध्यमिक शिक्षक संघ भवन सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ, अभियान सांस्कृतिक मंच, इप्टा और केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस श्रद्धांजलि सभा में पटना, मुजफ्फरपुर, आरा, गया, बेगूसराय, मधेपुरा सहित बिहार के कई जिलों से साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधि, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.

कार्यक्रम का संचालन बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य महासचिव रवींद्र नाथ राय ने किया.श्रद्धांजलि सभा के अंत में एक मिनट का मौन रखा गया.श्रद्धांजलि सभा को इसक्फ के महासचिव रवींद्र नाथ राय, मेहता नागेंद्र सिंह, राजकिशोर राजन, मधेपुरा से आये कवि अरविंद श्रीवास्तव, गया से आये परमाणु कुमार, साहित्यकार भावना शेखर, ‘फिलहाल’ की संपादक प्रीति सिन्हा, युवा रंगकर्मी जयप्रकाश, जन संस्कृति मंच के उपाध्यक्ष जितेंद्र कुमार, संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर, प्राथमिक शिक्षक संघ के भोला पासवान, भाकपा माले नेता राजाराम सिंह, बेगूसराय से आये सीताराम प्रभंजन, संजीव श्रीवास्तव ने भी संबोधित किया. सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में चर्चित कवि अरुण कमल, डॉ सत्यजीत सिंह, अनिल विभाकर, कथाकार सुशील कुमार भारद्वाज, हर्षवर्द्धन कुमार सिंह, सीवान के राकेश कुमार, गौतम गुलाल, एआईएसएफ के राष्ट्रीय महासचिव विश्वजीत कुमार, गोपाल शर्मा, सर्वेश कुमार सिंह, अमरनाथ, प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह, रंगकर्मी मृत्युंजय शर्मा, बीएन विश्वकर्मा आदि उपस्थित थे.

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