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फर्जीवाड़ा : चार वर्षों में नियोजित शिक्षकों के 2.13 लाख दस्तावेजों की हुई जांच, रोज एक प्राथमिक शिक्षक पर दर्ज हो रहा एफआइआर

राजदेव पांडेय पटना : बिहार के नियोजित शिक्षकों की जांच को करीब चार साल से अधिक समय हो चुका है. अब तक नियोजित शिक्षकों के 2.13 लाख दस्तावेजों की ही जांच हो पायी है. 10 लाख से अधिक दस्तावेजों की जांच बाकी है. नियोजन के प्रमाणपत्र फर्जी साबित होने से अब तक पिछले चार वर्षों […]

राजदेव पांडेय
पटना : बिहार के नियोजित शिक्षकों की जांच को करीब चार साल से अधिक समय हो चुका है. अब तक नियोजित शिक्षकों के 2.13 लाख दस्तावेजों की ही जांच हो पायी है. 10 लाख से अधिक दस्तावेजों की जांच बाकी है. नियोजन के प्रमाणपत्र फर्जी साबित होने से अब तक पिछले चार वर्षों में 1521 शिक्षकों पर प्राथमिकी दर्ज करायी जा चुकी है.
इस तरह पिछले करीब चार वर्षों (1460 दिन) में रोजाना एक से अधिक शिक्षकों पर प्राथमिकी दर्ज की जा रही है. ये सभी आंकड़े शिक्षा और निगरानी विभाग के अगस्त, 2019 तक के हैं. आधिकारिक जानकारी के मुताबिक तीन लाख 65 हजार 152 प्रारंभिक शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच की जा रही है. 2006 से 2015 के बीच नियुक्त हुए प्रारंभिक शिक्षकों की जांच पूरी हो चुकी है. तब इनके प्रमाणपत्रोें की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठे थे. शुरुआत में शिक्षा विभाग ने इसकी जांच शुरू की थी. उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद इस मामले में निगरानी विभाग जांच कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक प्रत्येक शिक्षक के कम -से -कम चार दस्तावेजों की जांच की जा रही है. ये चार दस्तावेज कक्षा 10 से ग्रेजुएशन तक के सर्टिफिकेट और ट्रेनिंग सर्टिफिकेट शामिल हैं.
दस्तावेजों में मिल रहा है फर्जीवाड़ा
सूत्रों के मुताबिक अब तक की जांच में सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा शैक्षणिक दस्तावेजों में किया गया. पंचायतों एवं प्रखंड स्तर पर आनन- फानन में रिकाॅर्ड जमा किये गये. टीइटी जैसे प्रतिष्ठित सर्टिफिकेट में जबरदस्त धांधली सामने आ रही हैं.
10 लाख से अधिक दस्तावेजों की जांच बाकी
हालात ये हैं कि बिहार में डिग्री देने वाला ऐसा कोई संस्थान नहीं है, जो ईमानदारी से इस मामले में जांच में सहयोग कर रहा हो. अगस्त, 2019 तक 2.41 लाख शिक्षकों के रिकाॅर्ड विभिन्न बोर्डों एवं शैक्षणिक संस्थाओं से मांगे गये हैं. लेकिन, वे संस्थाएं निगरानी को रिकाॅर्ड तक उपलब्ध नहीं करा पायी हैं. सूत्रों के मुताबिक संस्थाओं से प्रमाणपत्रों के रिकाॅर्ड आने में भारी दिक्कत आ रही है. हजारों शिक्षकों के फोल्डर गायब हैं. हैरत की बात यह है कि जिन नियोजन इकाइयों के फोल्डर गायब हैं, वे सभी कानूनी शिकंजे से बाहर हैं.
राज्य के सभी 38 जिलों में जांच की जा रही है
राज्य के सभी 38 जिलों में जांच की जा रही है. निगरानी के पास प्रत्येक जिले में दो अधिकारी हैं. उन्हें अपने रेगुलर कार्य के साथ यह काम करना है. जांच की मंथर गति का आलम अकेले पटना जिले के आंकड़ों से समझा जा सकता है.पटना जिले में बारह हजार प्राइमरी शिक्षकों की जांच की जानी है. सूत्रों के अनुसार अब तक केवल दो से तीन हजार मामलों का ही जांच हो पायी, जिनमें बीस शिक्षकों के प्रमाणपत्र फर्जी निकले.

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