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देश में निजीकरण को बढ़ावा दे सकती है राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019

डॉ विद्यार्थी विकास स्‍कॉलर, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट, पटना लगभग चार वर्ष के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 का मसौदा राष्ट्र को सुझाव के लिए आमंत्रित किया गया था. पहले 30 जून और बाद में 31 जुलाई तक का वक्त टिप्पणी के लिए दिया गया. वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 जो कि के. कस्तूरीरंगन समिति द्वारा […]

डॉ विद्यार्थी विकास
स्‍कॉलर, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट, पटना
लगभग चार वर्ष के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 का मसौदा राष्ट्र को सुझाव के लिए आमंत्रित किया गया था. पहले 30 जून और बाद में 31 जुलाई तक का वक्त टिप्पणी के लिए दिया गया. वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 जो कि के. कस्तूरीरंगन समिति द्वारा (24 जून 2017 – दिसंबर 2018) टीएस सुब्रहमण्यम समिति ( 31 अक्तूबर 2015 – मई 2016) के द्वारा तैयार शिक्षा नीति पर आधारित है जो वास्तविक रूप में व्यापक, दूरदर्शी और जमीनी है.
यह नीति राष्ट्रीय नीति 1996 के रिपोर्ट लर्निंग : थे ट्रेजर विदिन के अनुसार मानव विकास के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा के चार स्तंभों पर आधारित है – जानने के लिए सीखना, करने के लिए सीखना, साथ रहने के लिए सीखना को ध्यान में रखकर बनायी गयी है. भारतीय शिक्षा जगत की परंपरा बेहद ही उच्च कोटि की रही है. प्राचीन मौखिक रूप से शिक्षा का आदान-प्रदान से लेकर पत्तों एवं ताम्र पत्रों पर लिखित रूप से और अब इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी शिक्षा दी जा रही है. पहले शिक्षा का विषय उस समय की संस्कृति, समाज, अर्थव्यवस्था एवं राजनीति के हिसाब से होता था. देश में नालंदा, तक्षशिला, उज्जैन,विक्रमशिला विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात थे.
भारतीय शिक्षा परंपरा में चरक, सुश्रुत, भास्कराचार्य, चाणक्य, पतंजलि, पाणिनी, राजाराम मोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, चार्ल्स वुड , विलियम विल्सन हंटर, रवींद्रनाथ टैगोर, सावित्रीबाई फुले, सैयद अहमद खान, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, महात्मा गांधी जैसे विद्वान हुए जिन्होंने शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित सिद्धांत एवं गूढ़ विश्लेषण प्रतिपादित किये.
विभिन्न रिपोर्टों और शिक्षा नीतियों ने उतरोत्तर भारतीय शिक्षा की मजबूत आधारशिला रखी एवं शिक्षा का मानक बनाये रखा. नयी शिक्षा नीति (प्रारूप) 2019 के कुछ चिंताजनक पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा जैसे कि नीति ‘संवैधानिक प्रावधानों’ की बात नहीं करती है. पूरी रिपोर्ट (अंग्रेजी वर्जन) 484 पृष्ठों की है.
और केवल एक बार ‘ रिजर्वेशन’ शब्द आया है जो यह कहता है कि ‘निजी’ संस्थानों में रिजर्वेशन लागू नहीं होगा. जबकि यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि सार्वजनिक संस्थानों में लागू होगा. यदि ‘ऑटोनोमी’ शब्द को देखा जाये तो यह पूरे रिपोर्ट में 110 बार प्रयोग किया गया है लेकिन ऑटोनोमी के नाम पर या तो निजीकरण को बढ़ावा देने की बात है या नौकरशाही को.
इस नीति के अनुसार अब एक नयी संस्था ‘सेंट्रल एजुकेशन स्टैटिक्स डिवीजन’ शिक्षा से संबंधित आंकड़ों का संग्रहण करेगी लेकिन यह डाटा शेयर कुछ सावधानी के साथ करेगी. अब ‘शिक्षा के अधिकार कानून 2009’ की पुनर्रीक्षा होगी और अब इसके सेक्शन 12 (1) (C) निजी संस्थानों पर लागू नहीं होगा जिसमें कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाने की बात की गयी थी.
दूसरी ओर आइटीइ कानून 2009 को अधिक विस्तार देने की बात की जा रही है. इस नीति में ‘स्कूल काम्प्लेक्स मैनेजमेंट कमेटी’ बनाने की बात की गयी है लेकिन इसकी संरचना परिभाषित नहीं है. इसमें कहा गया है कि अब देश में उच्च शिक्षा को प्रशासित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग होगा एवं इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे एवं इसके सदस्य शिक्षा मंत्री, चयनित मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, नीति आयोग के उपाध्यक्ष, कैबिनेट सचिव और कम से कम 50% सदस्य शिक्षाविद, शोधार्थी एवंअन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों के प्रतिनिधि होंगे. इसी प्रकार राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन के भी अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे.
शोध कार्य के वित्त-पोषण के लिए केंद्र स्तर पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन होगा. इसमें उल्लेख है कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए जीडीपी के छह प्रतिशत को शिक्षा पर खर्च किया जाये. यह बात पूर्व की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 एवं 1986 में भी वर्णित था. राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने हेतु वित्त प्रबंधन शर्तिया है (पृष्ठ 406) जिसे कर-सकल घरेलू अनुपात, फिलांथ्रोपिक’ सपोर्ट (पृष्ठ-409), निगमों की सामाजिकजिम्मेदारी (पृष्ठ 412) आदि प्राप्त होने के दिशा में ही शिक्षा पर होने वाले निवेश को बढ़ाया जायेगा, इसदिशा में एक गंभीर कदम नहीं दिखता है. ‘इस नीति को लागू करने हेतु ‘वित्त प्रबंधन’ के स्तर पर दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव दिखता है. प्रस्तुत राष्ट्रीय शिक्षा नीति (प्रारूप) 2019 पर एक गहन विचार विमर्श की आवश्यकता है.

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