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चिंता की बात: 55 दिनों की बजाय बिहार में हो रही केवल 40 दिन बारिश, धान की फसल पर पड़ेगा असर

पटना : बिहार में बारिश के दिनों की संख्या घट रही है. तीन दशक में प्रदेश में बारिश के दिनों की संख्या 55 से घट कर 37 से 40 दिन रह गयी है. बरसात का यह ट्रेंड स्थायी गिरावट के रूप में दर्ज हुआ है़ हालांकि बरसात की मात्रा कमोबेश तीस साल पहले की तरह […]

पटना : बिहार में बारिश के दिनों की संख्या घट रही है. तीन दशक में प्रदेश में बारिश के दिनों की संख्या 55 से घट कर 37 से 40 दिन रह गयी है. बरसात का यह ट्रेंड स्थायी गिरावट के रूप में दर्ज हुआ है़ हालांकि बरसात की मात्रा कमोबेश तीस साल पहले की तरह स्थिर है. उसमें कोई खास गिरावट दर्ज नहीं हुई है. दूसरे शब्दों में, पहले जितनी बरसात पचपन दिनों में होती थी, कमोबेश उतनी ही बारिश अब 37 से 40 दिन में दर्ज हो रही है.

बरसात के इस ट्रेंड में बदलाव की वजह जलवायु में परिवर्तन है. जिसने अपना रंग अब खुलकर दिखाना शुरू कर दिया है. इस बदलाव का सीधा असर खास तौर पर धान की फसल पर पड़ेगा. धान बिहार की इकोनॉमी का रीढ़ कहा जाता है. यह निष्कर्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और केंद्रीय पर्यावरण विभाग के हैं.

बढ़ रही है उच्च तीव्रता वाली बरसात
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक प्रदेश में बारिश की औसत मात्रा करीब 1200-1400 एमएम के बीच कमोबेश स्थिर है. फर्क इतना है कि इतनी मात्रा की बारिश 55 दिन की बजाय 37-40 दिनों के बीच हो रही है. दरअसल पांच एमएम से अधिक बरसात को बरसात का दिन कहा जाता है. बारिश के दिनों की घटती संख्या के चलते अब हैवी रैन (भारी बारिश ) अथवा हाई इंटेंसिटी रैन फॉल (उच्च तीव्रता वाली बरसात ) की दर अधिक हो रही है. दरअसल पहले बरसात का प्राकृतिक वितरण लगभग समान था. बरसात लंबे समय तक आहिस्ता-आहिस्ता होती रहती थी. कई दिनों तक बारिश होने के बाद भी वह विनाशक नहीं थी.

अब बरसात के बदलते ट्रेंड में कई दिनों की बारिश एक ही दिन में हो जाती है. उच्च तीव्रता वाली बारिश या भारी बरसात से आशय एक दिन में पचास मिलीमीटर से अधिक बारिश माना जाता है. ऐसे दिनों की संख्या साल में करीब 12- 14 दिन हो गयी है. जबकि पहले हैवी रैन डे केवल तीन या चार होते थे.

15 साल से नियमित अंतराल पर नहीं हुई बारिश
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के मेट्रोलॉजी डिपार्टमेंट के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 15 साल में नियमित अंतराल पर बारिश नहीं हुई है. बारिश के बदलते ट्रेंड में सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि बरसात अब जुलाई-अगस्त में अपेक्षाकृत कम हो गयी है. पिछले 10 साल के आंकड़े बताते हैं कि मई और जून में बारिश की मात्रा तुलनात्मक रूप में तीन से चार गुना अधिक हो गयी है. रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई और अगस्त में बारिश में सूखे दिन का अंतराल आठ से बारह दिनों तक हो रहे हैं. सितंबर में भी यह गैप आठ से दस दिन का हो गया है.

यह खतरनाक बदलाव है निश्चित
तौर पर प्रदेश में बरसाती दिन घटे हैं. यह एक खतरनाक बदलाव है. 55 दिन की बरसात 40-42 दिन में पूरी हो रही है. इससे धान की खेती को नुकसान होना तय है.

जलवायु परिवर्तन आहिस्ता-आहिस्ता हुआ है, लेकिन उनके प्रभाव तेजी से सामने दिख रहे हैं. मौसमी दशा में इस तरह के बदलाव पिछले 10 सालों में ही देखने को मिले हैं.
-डॉ ए सत्तार, मौसम वैज्ञानिक एवं नोडल अफसर, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा

भूजल रीचार्ज में कमी आयेगी, बाढ़ भी बढ़ेगी

-बारिश के दिनों की संख्या घटने से भूजल रीचार्ज में कमी आयेगी, क्योंकि उच्च तीव्रता वाली बरसात का पानी बह जायेगा. वह भूजल में तब्दील नहीं होगा.

-बाढ़ की विभीषिका बढ़ जायेगी. अचानक हुई ज्यादा बारिश का प्रबंधन संभव नहीं होगा.

-परंपरागत जलस्रोत बेमतलब साबित होंगे

-बारिश के दिनों की संख्या घटने और बढ़ रहे गैप के चलते धान की फसल पर विनाशक असर पड़ेगा, क्योंकि जुलाई अगस्त में बारिश कम हो रही है. जबकि इन्हीं दिनों में रोपनी की जाती है. समय पर बारिश न होने से दूसरी फसलों पर भी असर पड़ेगा.

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