पिछले रविवार को फिलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के पांचवें भारत दौरे के क्रम में दोनों देशों ने कई समझौते पर हस्ताक्षर किये, जैसे कृषि, सूचना तकनीक एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, स्वास्थ्य, युवा मामले तथा खेल आदि, मगर क्या इतने भर से वह देश हमसे संतुष्ट हो पायेगा?
वर्तमान में भारत की राष्ट्रवादी सरकार प्रत्यक्ष रूप से न सही, मगर परोक्ष रूप से इस्राइलियों के ज्यादा करीब खुद को पाती है. जुलाई में मोदी जी इसराइल के दौरे पर जा रहे हैं. वहां वह फिलिस्तीनियों का पक्ष कितना रख पायेंगे, इसमें संदेह है, क्योंकि भारत आतंक के विरुद्ध लड़ाई में इसराइल का साथ चाहता है. ऐसे में फिलिस्तीन के मुद्दे को छोड़ इजराइल के साथ होना एक चुनौती ही है.
जंग बहादुर सिंह, इमेल से