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तहजीब है, तभी तरक्की है
विज्ञान के इस युग में हम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे हैं, परंतु हमारे संस्कार, हमारी तहजीब हमसे, हमारे बच्चों से दूर होती जा रही है. वर्तमान शिक्षा संस्कारों का पूर्णतः अनुगमन नहीं करती और संस्कारों की बात करने पर, तहजीब की बात करने पर हमारे बच्चे ही हमें मूर्ख समझते हैं. […]
विज्ञान के इस युग में हम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे हैं, परंतु हमारे संस्कार, हमारी तहजीब हमसे, हमारे बच्चों से दूर होती जा रही है. वर्तमान शिक्षा संस्कारों का पूर्णतः अनुगमन नहीं करती और संस्कारों की बात करने पर, तहजीब की बात करने पर हमारे बच्चे ही हमें मूर्ख समझते हैं. इतिहास साक्षी है कि प्रत्येक युग ने एक उचित सीमा तक तरक्की की है.
यह तरक्की सिर्फ हमने नहीं की. संस्कारों के साथ जब हम विकास की राह में अग्रसर होते हैं, तो ज्यादा दूर तक जाने की संभावना बढ़ जाती है. अतः तरक्की और तहजीब दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं. तरक्की तहजीब के बिना प्राप्त नहीं हो सकती. तहजीब है, तभी तरक्की है. बच्चों को संस्कार दें, आधुनिकता एवं सुसंस्कार का समुचित समन्वय राष्ट्र को एक नयी दिशा दे पाने में सक्षम होगा, इसमें कोई दो राय नहीं.
अनिल कुमार मिश्र, रांची, झारखंड
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