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भारत-चीन संबंधों का नया दौर

भारत-चीन संबंधों की सरगर्मी क्षेत्रीय शांति व विकास की शुरुआत का एक बड़ा कदम माना जा सकता है. सीमा विवाद, कश्मीर और तिब्बत से जुड़े मतभेदों को दरकिनार कर द्विपक्षीय आर्थिक और राजनैतिक हितों को आगे बढ़ाना सकारात्मक कदम है. 1962 की जंग के बाद दोनों देशों में पैदा हुई अविश्वास की खाई लंबे वक्त […]

भारत-चीन संबंधों की सरगर्मी क्षेत्रीय शांति व विकास की शुरुआत का एक बड़ा कदम माना जा सकता है. सीमा विवाद, कश्मीर और तिब्बत से जुड़े मतभेदों को दरकिनार कर द्विपक्षीय आर्थिक और राजनैतिक हितों को आगे बढ़ाना सकारात्मक कदम है.
1962 की जंग के बाद दोनों देशों में पैदा हुई अविश्वास की खाई लंबे वक्त तक नहीं भरी जा सकी है. इसका खामियाजा दोनों देशों को चुकाना पड़ा है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल से रिश्तों में सुधार लाने के प्रयास किया गया, जो आज तक जारी है.
नतीजा गंभीर सीमा विवाद के बावजूद सीमा पर एक भी गोली नहीं चली. यह दोनों की सूझ-बूझ का एक बेहतर उदाहरण है. मोदी-शी की यह मुलाकात से विश्वास बहाली और व्यापारिक हितों को बल मिलेगा. चीन और भारत की भूमिका दक्षिण एशिया-दक्षिण पूर्व एशिया की शांति व विकास के लिए एक अनिवार्य पक्ष है.
सुमन कुमार, रांची

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