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जातिवाद को मिटाना जरूरी

आजादी के 70 साल बाद भी जातिवाद देश की गंभीर समस्या है. जाति सामाजिक व्यवस्था का एक घटक है, इसमें कोई विवाद नहीं है, किंतु इसका राजनीतिक इस्तेमाल सही नहीं है. इससे समाज टूटता है और देश बिखरता-पिछड़ता है. हिंदू धर्म इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें सबसे अधिक जातीय विभाजन हुआ. इसके पीछे राजनीतिक […]

आजादी के 70 साल बाद भी जातिवाद देश की गंभीर समस्या है. जाति सामाजिक व्यवस्था का एक घटक है, इसमें कोई विवाद नहीं है, किंतु इसका राजनीतिक इस्तेमाल सही नहीं है.
इससे समाज टूटता है और देश बिखरता-पिछड़ता है. हिंदू धर्म इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें सबसे अधिक जातीय विभाजन हुआ. इसके पीछे राजनीतिक और कतिपय धार्मिक संगठनों की साजिश मुख्य कारक है.
दीर्घकाल से ही सांप्रदायिकता और जातिवाद राजनीतिक मुद्दा रहा है, लेकिन आजादी के बाद इसे और हवा मिली. राजनीतिक हित साधने के लिए कुछ लोगों ने राष्ट्रहित को भुलाकर जातीय गौरव को ही सब कुछ मान लिया है. इसलिए जरूरी है कि प्रबुद्ध समाज नेताओं के जातीय सम्मेलनों से अलग रहे, जाति की रक्षा करें, मगर जातिवाद का समर्थन न करे.
दिवाकर कुमार, ई-मेल से

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