सरकार शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करना चाहती भी है या शिक्षा के नाम पर सिर्फ नाटक किया जाता है आम आदमी के समझ से परे है. यहां पढ़-लिख कर के लोग बेरोजगार घूम रहे हैं. सरकार नौकरी का सृजन न कर युवाओं से छल कर रही है. दुर्भाग्य की बात तो यह है कि तीन-चार साल पढ़ने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा जो डिग्री दी जाती है, उस प्रमाणपत्र को भी आसानी से मुहैया नहीं कराया जा रहा है.
प्रमाणपत्र लेने में छात्रों के पसीने छूट जाते हैं. बीएड में एडमिशन की काउंसेलिंग में छात्रों से स्नातक का मूल प्रमाणपत्र खोजा जाता है, जबकि उसे प्राप्त करने छात्र विश्वविद्यालय जाते हैं तो भीड़ ही भीड़ दिखती है. व्यवस्था इतनी लचर है की बड़े-बड़े संस्थान के बड़ी-बड़ी बिल्डिंग तुच्छ नजर आने लगती है.
मिथिलेश कुमार, बलुआचक (भागलपुर)