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लेट्स फुटबॉल” !

फुटबॉल काफी दिनों से हम खेल रहें हैं, मगर खेल के कैनवास पर मौजूदगी नहीं के बराबर है. बात क्रिकेट के दर्शकों से बराबरी की होगी, तो हालात ‘गंगू तेली’ जैसे लगेंगे. पान की दुकानों पर जब क्रिकेट कमेंट्री सुनने वालों का जमावड़ा होता था, फुटबॉल तब भी खेला जाता था, मगर ‘गोल’ तक न […]

फुटबॉल काफी दिनों से हम खेल रहें हैं, मगर खेल के कैनवास पर मौजूदगी नहीं के बराबर है. बात क्रिकेट के दर्शकों से बराबरी की होगी, तो हालात ‘गंगू तेली’ जैसे लगेंगे.
पान की दुकानों पर जब क्रिकेट कमेंट्री सुनने वालों का जमावड़ा होता था, फुटबॉल तब भी खेला जाता था, मगर ‘गोल’ तक न पहुंच पाया. सुनील छेत्री के एक भावुक अपील ने दर्शकों को स्टेडियम तक खींचने में सफलता हासिल की, तो तय हो गया कि दर्शक वही हैं, आकर्षित करने के तरीकों में कोई कमी है.
कुछ वर्षों पहले जब केरी पैकर ने क्रिकेट को लोगों से जोड़ने का तरीका ढूंढ निकाला, तो किरकिरी कम न हुई थी. मगर आज क्रिकेट लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गया है. मानें न मानें अपील का असर स्थायी नहीं हो सकता. खेल को मनोरंजन की चाशनी में डुबो कर परोसा जाना भी जरूरी हो गया है.
एमके मिश्रा, रांची

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