गंगा केवल नदी नहीं बल्कि आस्था का वह नाम है, जिसकी डुबकी मात्र से कष्टों का निवारण माना जाता है, पर अफसोस है कि गंगा जैसी पवित्र नदी दिनोंदिन मैली होती जा रही है. सैंकड़ों करोड़ों खर्च करने के बावजूद गंगा की सफाई की कोशिशों नाकाम साबित हो रही हैं.
राजीव गांधी के समय में भी ‘गंगा एक्शन प्लान’ बना था, जिससे उम्मीद जगी थी. आज की सरकार ने भी इशारा किया था कि गंगा की सफाई के लिए पुरजोर कार्य किये जायेंगे, लेकिन करीब चार साल बाद भी यह वादा पूरा नहीं हो सका. आज भी उद्योगों-फैक्ट्रियों द्वारा जहरीला पानी गंगा में छोड़ा जा रहा है, जिसे रोक पाने में सरकार असमर्थ है. गंगा को निर्मल बनाने के लिए सरकार को गंभीरता से कार्य करना होगा.
महेश कुमार, इमेल से