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जीत के जश्न में धर्म का नारा

भाजपा को चारों ओर से बधाई संदेश मिल रहे हैं. बिहार के सुशील मोदी जी का ट्वीट भी आया, जो इसे ‘हज पर राम का विजय’ करार दे रहे है. ठीक है कि चुनाव हर कोई जितने के लिए लड़ता है. जो जीता, वही सिकंदर कहलाता है, मगर धर्म को आधार बनाकर समाज को बांट […]

भाजपा को चारों ओर से बधाई संदेश मिल रहे हैं. बिहार के सुशील मोदी जी का ट्वीट भी आया, जो इसे ‘हज पर राम का विजय’ करार दे रहे है. ठीक है कि चुनाव हर कोई जितने के लिए लड़ता है.

जो जीता, वही सिकंदर कहलाता है, मगर धर्म को आधार बनाकर समाज को बांट कर चुनावी जीत का जश्न मनाना सही नहीं है. धर्म उस अफीम की तरह है, जिसे अगर समाज में छिड़क दिया जाये, तो सभी भक्ति में लीन हो जाते हैं. उसके बाद कोई चुनावी घोषणा-पत्र पर सवाल नहीं करता. कोई भुखमरी एवं बढ़ती बेरोजगारी पर बात नहीं करता.

कोई नहीं पूछता कि किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? कोई यह भी नहीं पूछता कि काला धन क्यों नहीं आया? धर्म एक अफीम है, जो देश, समाज, व्यक्ति, किसी के हित में नहीं है. क्या विपक्ष के बिना लोकतंत्र की कल्पना की जा सकती है? कांग्रेस मुक्त नारा ही अपने आप में तानाशाही शासन पद्धति को अंगीकार करने की पूर्वसूचना नहीं है? –

जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी.

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