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सारंगी के सुर !

सुना था जंगल से कटी एक लकड़ी से बनी सारंगी जब बजती है, तो एक ही सुर निकलते थे. बार-बार बजने वाले एक ही सुर से राजा भी तिलमिला उठा था. वर्तमान में हमारी प्रगतिशील सरकार से जब आवाज निकलती है, तो सत्तर सालों का ही राग सुनाई देता है. न्यू इंडिया का सपना जो […]

सुना था जंगल से कटी एक लकड़ी से बनी सारंगी जब बजती है, तो एक ही सुर निकलते थे. बार-बार बजने वाले एक ही सुर से राजा भी तिलमिला उठा था. वर्तमान में हमारी प्रगतिशील सरकार से जब आवाज निकलती है, तो सत्तर सालों का ही राग सुनाई देता है. न्यू इंडिया का सपना जो हम आज देख रहे हैं, क्या वह सत्तर सालों की मजबूत बुनियाद पर खड़ा नहीं है?
दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क, उद्योगों का जाल और अंतरिक्ष में हमारी धमक उपलब्धि मानी जाये या मिली हुई विरासत? तीन सालों में जो हमने पाया है, उसकी नींव कब पड़ी थी, याद है? क्या सत्तर सालों में देश की रीढ़ कमजोर होने की वजह से 2014 में बदलाव हुए है? राजनीति को औजार बना कर अपनी बुनियाद को खोदना सही नहीं है.
एमके मिश्रा, रातू, रांची

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