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क्रिकेट की तीसरी आंख

विश्व में क्रिकेट दर्शकों की एक बड़ी संख्या है. फिर भी शायद दुनिया में दर्शकों की बहुत बड़ी जमात क्रिकेट के नियमों से वाकिफ नहीं है, मगर नियम से जुड़े कुछ ऐसे सवाल हैं, जो हमें झकझोरते हैं और जिनसे हम बार-बार रूबरू होते हैं. मसलन बल्लेबाज के आउट होने पर यह देखने के लिए […]

विश्व में क्रिकेट दर्शकों की एक बड़ी संख्या है. फिर भी शायद दुनिया में दर्शकों की बहुत बड़ी जमात क्रिकेट के नियमों से वाकिफ नहीं है, मगर नियम से जुड़े कुछ ऐसे सवाल हैं, जो हमें झकझोरते हैं और जिनसे हम बार-बार रूबरू होते हैं. मसलन बल्लेबाज के आउट होने पर यह देखने के लिए कि ‘नो बॉल’ तो नहीं है, ‘तीसरी आंख’ का इस्तेमाल किया जाता है.

नियमानुसार बॉल फेंकते ही अंपायर बोल कर व हाथ के इशारे से ‘नो बॉल’ की जानकारी देता है. ऐसे में खिलाड़ी के आउट होने या बॉल डेड होने के बाद ‘नो बॉल’ चेक करने का प्रावधान तर्कहीन लगता है. इसी तरह ‘डिसीजन रिव्यू सिस्टम’ (डीआरएस) में ‘अंपायर कॉल’ के खिलाफ मांगी गयी रिव्यू पर थर्ड अंपायर का फैसला ‘अंपायर कॉल’ के रूप में छोड़ देना कितना सही है? क्रिकेट की तीसरी आंख का इस्तेमाल सही फैसले के लिए हो, न कि फैसले को सही ठहराने के लिए.

एमके मिश्रा, रातू, रांची

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