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समय आत्ममंथन का

झारखंड स्थापना की 17वीं वर्षगांठ मना रहे हैं हम अर्थात अब हम बालिग होने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं. परंतु सवाल है कि क्या हम एक राज्य के तौर पर अब भी परिपक्व हो पाये हैं? राज्य गठन से लेकर अब तक कई बदलाव आये हैं, परंतु कई ज्वलंत मुद्दे आज भी कायम हैं, […]

झारखंड स्थापना की 17वीं वर्षगांठ मना रहे हैं हम अर्थात अब हम बालिग होने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं. परंतु सवाल है कि क्या हम एक राज्य के तौर पर अब भी परिपक्व हो पाये हैं?
राज्य गठन से लेकर अब तक कई बदलाव आये हैं, परंतु कई ज्वलंत मुद्दे आज भी कायम हैं, मसलन आज भी हमारी स्थानीयता परिभाषित नहीं हो पायी है. आज भी मूल निवासियों के रोजगार पर अनिश्चितता का खतरा है और शायद इस राज्य की विडंबना ही होगी कि दर्जनों पूर्व मंत्री-विधायकों के बाद अब स्थापना दिवस से एक दिन पूर्व राज्य के मुख्य सचिव रह चुके व्यक्ति को दोषी करार दिया गया.
सवाल यह उठता है कि मानव संसाधन और खनिज संपदा की भारी उपस्थिति के बावजूद क्या अब भी हम वह सब हासिल कर पाये हैं जिसकी पूर्ति हेतु हमने अलग राज्य का गठन किया था? आज सभी लोगों को अपने-अपने संकीर्ण हित और राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर झारखंड की बेहतरी के लिए मंथन, चिंतन और विचार करना चाहिए.
मनोज पांडेय, बोकारो

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