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जेल से चुनाव जीतने का भी इतिहास रहा है पलामू में, जानें

अविनाश कामेश्वर बैठा, मधु सिंह, संतु सिंह जेल में रह कर जीत चुके हैं चुनाव मेदिनीनगर : पलामू में जेल में रह कर चुनाव जीतने या फिर जेल जाने के बाद जनता की सहानुभूति से अपने प्रतिद्वंद्वियों की परेशानी बढ़ा देने का भी राजनीतिक इतिहास रहा है. यदि गौर किया जाये, तो पलामू में 2009 […]

अविनाश
कामेश्वर बैठा, मधु सिंह, संतु सिंह जेल में रह कर जीत चुके हैं चुनाव
मेदिनीनगर : पलामू में जेल में रह कर चुनाव जीतने या फिर जेल जाने के बाद जनता की सहानुभूति से अपने प्रतिद्वंद्वियों की परेशानी बढ़ा देने का भी राजनीतिक इतिहास रहा है.
यदि गौर किया जाये, तो पलामू में 2009 के चुनाव में कामेश्वर बैठा जेल में थे. कांग्रेस, झामुमो और नवजवान संघर्ष मोरचा के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में वह मैदान में उतरे थे. इस चुनाव में कामेश्वर बैठा जेल में रह कर ही चुनाव में जीत दर्ज की थी और राजद के तत्कालीन सांसद व प्रत्याशी घुरन राम को हराया था. इस बार के चुनाव में कामेश्वर मैदान में नही हैं. वह कांग्रेस में शामिल हुए थे.
लेकिन यह सीट राजद के खाते में चली गयी. कामेश्वर बैठा पलामू की राजनीति के ऐसे पहले शख्स नही हैं, जिनका जेल में रह कर चुनाव जीतने का इतिहास रहा है. सबसे पहले एकीकृत बिहार के जमाने में 1990 में मधु सिंह (अब स्वर्गीय) ने पहली बार जब चुनाव लड़ा था, तब वे जेल में थे. जेल से ही उन्होंने विधायक का चुनाव जीता था. दो दफा वह पांकी विस से चुनाव जीते थे. दूसरी बार जब वह विधायक बने, उसके बाद अलग झारखंड राज्य भी बना.
झारखंड में मधु सिंह बाबूलाल मरांडी व अर्जुन मुंडा दोनों के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे. पांकी विस से ही कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने से नाराज संकटेश्वर सिंह उर्फ संतु बाबू (अब स्वर्गीय) ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था. चुनाव के प्रक्रिया के दौरान ही किसी मामले में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. तब उनका चुनाव चिह्न रेल इंजन छाप था.
उस समय के चुनाव में यह नारा काफी मशहूर हुआ कि संतु बाबु जेल में मोहर मारो रेल में इस चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी संतु सिंह पांकी विस से चुनाव भी जीता. बात यदि जेल में जाने के बाद उपजी सहानुभूति की हो, तो 2004 के विधानसभा चुनाव में झारखंड के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी चुनाव लड़ रहे थे. राजद के टिकट की प्रत्याशा में अनिल चौरसिया (अब स्वर्गीय) थे.
लेकिन अनिल चौरसिया को राजद ने टिकट नहीं दिया. बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अनिल चौरसिया चुनाव लड़ रहे थे. इस विधानसभा चुनाव में राजद ने ज्ञानचंद पांडेय को अपना प्रत्याशी बनाया था. चुनाव प्रचार चल रहा था. इसी बीच एक पुराने मामले में निर्दलीय प्रत्याशी अनिल चौरसिया का गिरफ्तारी हो गयी. उसके बाद वह जेल चले गये. इसे लेकर उस समय के रणनीतिकारों ने नारा गढ़ा. दो पूंजीपतियों के खेल में गरीब का बेटा जेल में. इसका यह असर हुआ था कि चौरसिया ने नामधारी को कड़ी टक्कर दी.
नामधारी लगभग ढाई हजार के अंतर चुनाव जीत पाये थे. बात यदि 2019 की लोकसभा चुनाव की जाये, तो इस बार पलामू के पूर्व सांसद व कर्पूरी ठाकुर के मंत्रिमंडल में एकीकृत बिहार के जमाने में राज्य मंत्री रह चुके जोरावर राम भी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं.

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